जहाँ चाह वहाँ राह "प्रिया मसाले का सफर"

Jun 10, 2020 - 20:13
Jun 11, 2020 - 13:39
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जहाँ चाह वहाँ राह "प्रिया मसाले का सफर"

  प्रिया मसाले का सफर

इंसान अगर ठान ले कि उसे अमुक कार्य करना है या कुछ बनकर दिखाना है और वह फिर उसी दिशा की ओर कदम बढ़ाता है तो एक न एक दिन सफलता उसके कदम चूमने लगती है। कुछ इसी तरह की कहानी चित्रकूट जनपद के ब्रजेश त्रिपाठी की है जो 12-13 साल पहले पानीपत (हरियाणा) में एक बेडसीट की फैक्ट्री में काम करता था और काम करने के दौरान ही उसने फैक्ट्री मालिक से कहा था कि मैं तुम्हारे यहां आजीवन कार्य नहीं करूंगा बल्कि मुझे खुद कारखाना खोलना है, ब्रजेश की बात को फैक्ट्री मालिक व काम करने वाले अन्य कर्मियों ने हंसी में उड़ा दिया था लेकिन ब्रजेश ने संकल्प लिया था उसे पूरा किया और वह आज प्रिया मसाले की फैक्ट्री का मालिक बन गया है। उसकी फर्म प्रिया मसाले के अलावा अचार, चाय, हींग, टाॅयलेट क्लीनर बनाती है और उनका उत्पाद इस समय कौशाम्बी, इलाहाबाद, चित्रकूट, बांदा सहित पांच जिलो में बिक रहा है।

आइडिया -

 उनका कहना है कि मैं हमेशा सोचता था कि मुझे कोई न कोई फैक्ट्री खोलना है। आज 12-13 साल पहले मैं पानीपत में एक फैक्ट्री मे बेडशीट में डिजाइनिंग का काम करता था। आगे बढ़ने की चाहत ने मुझे हमेशा आगे बढ़ाया। चार पांच साल पानीपत में काम किया। वहीं पर कर्मचारियों की मदद के लिए एक स्वयंसेवी संस्था बनाई। यह संस्था कर्मचारियों का आर्थिक रूप से मदद करती थी। उसी में सिलाई सेन्टर खोला जिसके माध्यम से महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई। अब यह संस्था बड़ा रूप ले चुकी है। जो पाॅवर लूम सेवा समिति के नाम से चल रही है। उनका कहना है कि वह आगे बढ़कर रिस्क लेते थे कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। असफलता तभी होती है जब ऑप्शन रहता है।

चुनौती -

वह बताते है कि अभी भी आइडिया के अपोज होते है। वैसे तो इस समय सरकारी तंत्र का सपोर्ट मिलता है लेकिन शुरुआत में सरकारी तंत्र ने बहुत परेशान किया पर मैने हार नहीं मानी। हमारी फैक्ट्री में एक साल में नौ सेम्पल भरे गए जिससे मुझे लगा कि अब हम अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर पायेंगे लेकिन तभी तत्कालीन डीएम का सहयोग मिला जिससे सब कुछ सामान्य हो गया। अब उत्पाद बेंचने में दिक्कत नहीं होती है हम अपना उत्पाद सीधे दुकानदार को बेंचते है।

टर्निग पाइंट -

काम शुरू करने के बाद तीन साल पैर जमाने में लग गए। तीन साल अपनी जगह बनाने और लोगों का विश्वास जीतने में लग गए। काम शुरू होने के कुछ दिन तक पैकेजिंग में दिक्कत रहीं। इस बीच लोगों को क्वालिटी में विश्वास दिलाने में भी समय लगा। वह बताते है कि हमारे उत्पाद को गोल्डी से सामना करना पड़ा लेकिन धीरे-धीरे 200 किमी के दायरे में प्रिया के आगे गोल्डी रंग फीका पड़ने लगा और आज हम इस क्षेत्र में सबसे बेहतर पोजीशन में है। मार्केट में मसाला के अलावा हमारा अचार भी खूब बिक रहा है अपने आचार में हम केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते है। अगर आदमी एक बार खा लेता है और उसे क्वालिटी अच्छी लगती है तो फिर वह 4-5 रूपये मंहगा नहीं देखता है। इस तरह हमारी क्वालिटी के आगे दूसरे उत्पाद कम होते चले गए।

यू.एस.पी.-

हमारे उत्पाद की सबसे खासियत उसकी बेहतर क्वालिटी हैं जिससे दिनोदिन मांग बढ़ती जा रही है। हमारी फर्म डिमाण्ड को समय से पूरा करती है। फैमिली सपोर्ट  में मेरी धर्मपत्नी श्रीमती रीता त्रिपाठी फैक्ट्री का कार्य देखती है और मेरी दोनो बेटियां प्रियंका और प्रिया पढ़ाई के साथ-साथ बैंकिंग और हिसाब से सम्बन्धित कार्य में मेरा सहयोग करती हैं। कुछ फेरी लगाकर उत्पाद बेंचते थे तो लोग उनसे सामान बिकवा रहे थे वह बड़े डिस्ट्रीव्यूटर है लेकिन अब वह फेरी लगाने वाले हमारे यहां से प्रिया मसाले व आचार आदि लेकर फेरी लगा रहे है वह सवेरे पांच बजे से ही सामान लेने आ जाते है।

फयूचर विजन -

वह बताते है कि अब हमारा फोकस विज्ञापन पर है। बिना विज्ञापन के आगे बढ़ पाना मुश्किलहै। भविष्य में हम कानपुर में शिफ्ट होंगे, वहां पर डिपो बनाकर पूरे  में अपने उत्पाद को पूरे देश में फैलायेंगे। उनका कहना है कि पैसे से पैसा बनाने में कम विष्वास रखते है बल्कि दिमाग से देखते है कि पैसा कहां है।

स्ट्रगल स्टोरी -

एक बार शुरुआत में एक प्राथमिक स्कूल में अपना मसाला आदि सप्लाई करने का प्लान कर रहे थे। इसके लिए जिलाधिकारी से मिलकर निवेदन किया कि एक बार वह हमारी फैक्ट्री में आए उन्होंने हमारे मसाले के बारे में शायद पहले से सुन रखा था। उन्होंने फैक्ट्री में आने के लिए सहमति जताई। इस बीच मेरी बेटी का जन्म दिन आया तभी डीएम साहब फैक्ट्री में आ गये उसी समय मै एक मशीन भी लाया था। उन्होंने सलाह दी कि कोई भी काम करने के लिए एग्मार्क जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि वह दिन दूर नहीं जब आप एक सफल उद्यमी बन जाओंगे। उनकी सलाह पर ही मैने एग्मार्क लिया और बिजनेस का नाम बेटी के नाम पर रखा।

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