बुन्देलखण्ड का एकमात्र स्टार्टअप - एसलाॅन बायोटेक
बाँदा के जितेन्द्र अवस्थी अपनी आयुर्वेद दवा के बलबूते पूरे विश्व में आयुर्वेद का झंडा गाड़ने में जुटे हैं। वो मानते हैं कि आयुर्वेद में हर मर्ज का इलाज है। उनकी दवा पेटेंट है जो डेंगू, मलेरिया सरीखे मर्जों पर बेहतर तरीके से कार्य करती है।
अंग्रेजी दवाओं के कालांतर में दुष्प्रभाव की आशंका के मद्देनजर लोग सौन्दर्य प्रसाधन से लेकर भोजन तक में हर्बल उत्पाद का प्रयोग करने लगे हैं। आज शायद ही कोई घर होगा जहां आयुर्वेद से जुड़ा एकाध उत्पादन न हो। अनियमित जीवनशैली से परेशान लोग हर्बल उत्पाद के प्रति न सिर्फ उन्मुख हो रहे हैं बल्कि सुबह के व्यायाम में योग से लेकर खान-पान और उपचार में आयुर्वेदिक दवाइयों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बुन्देलखण्ड के जनपद बांदा में रहने वाले सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सक डाॅ. जे.पी. अवस्थी के बेटे जितेन्द्र अवस्थी ने अपनी बीमारी को न सिर्फ आयुर्वेदिक दवा से ठीक किया बल्कि आयुर्वेदिक दवा बनाने तथा अनुसंधान का कार्य भी शुरू किया। इनके पिता बांदा राजकीय मेडिकल कालेज अतर्रा में प्रोफेसर तथा एच.ओ.डी. थे। जितेन्द्र भी पिता की राह पर चलकर एमबीबीएस करना चाहते थे, लेकिन सन् 2000 में मेडिकल की कोचिंग करते समय इनकी तबियत खराब हो गई थी। जब इनका इलाज शुरू किया गया तो एलोपैथिक दवाओं के सेवन से इनको कुछ साइड इफैक्ट हो गये। जिनको ठीक होने में काफी समय लग गया। अस्वस्थता के कारण इन्हें अपनी पढ़ाई भी कुछ समय के लिए बन्द करनी पड़ी। इसी बीच इन्होंने अपना मेडिकल स्टोर सन् 2003 में खोला। इन्होंने देखा कि इनके पिता जी की आयुर्वेदिक चिकित्सा द्वारा कई ऐसे मरीज ठीक हुए जिनको माॅडर्न चिकित्सा पद्धति द्वारा कोई लाभ नहीं मिल पा रहा था। इन्होंने स्वयं आयुर्वेद का अध्ययन शुरू किया। अपने पिता के मार्गदर्शन में इन्होंने स्वयं को आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा ठीक किया तथा इन्होंने देखा कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में कई ऐसी बीमारियों का इलाज है जिनका माॅडर्न चिकित्सा शास्त्र में कोई कारगर ईलाज नहीं है।
जितेन्द्र अवस्थी ने ग्रन्थों के अध्ययन में यह पाया कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पूर्णतया वैज्ञानिक है। साथ ही आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। आज सम्पूर्ण विश्व एकमत होकर इस बात को स्वीकार करता है कि विश्व के सर्वप्रथम सर्जन आयुर्वेद महर्षि सुश्रुत थे। बुन्देलखण्ड न्यूज से बातचीत में जितेन्द्र अवस्थी बताते हैं कि सुश्रुत संहिता में 1120 बीमारी तथा विभिन्न प्रकार की सर्जरी का वर्णन है जिसमें फ्रैक्चर्स की सर्जरी, कैटरेक्ट सर्जरी, रीनोप्लास्टी तथा प्लास्टिक सर्जरी आदि का भी उल्लेख है। एक प्रमुख बात यह भी बताई कि ब्रिटिश सर्जन सर जोसेफ कारप्यु ने आयुर्वेद चिकित्सक कुमार वैद्य से 20 साल तक भारत में नाक की प्लास्टिक सर्जरी सीखी। इस बात को जेंटलमैन मैग्जीन ने सन् 1794 में अपने एक अंक में प्रमुखता से छापा था। तो जिस आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्र ने विश्व को प्लास्टिक सर्जरी का ज्ञान दिया वह अवैज्ञानिक कैसे हो सकती है?
इन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों की रिसर्च एवं मार्केटिंग के लिए सन् 2011 में अपनी आयुर्वेदिक कम्पनी एसलाॅन बायोटेक प्रा.लि. के तहत अपने पिता के मार्गदर्शन में एक ऐसे आयुर्वेदिक फार्मुलेशन को तैयार किया, जिससे वाइरल फीवर, चिकुनगुनिया, टाईफाइड, मलेरिया तथा डेंगु को बिना किसी माडर्न मेडिसन के ठीक किया जा सकता है। इन्होंने इस दवा का पेटेन्ट भी करवा रखा है। अपनी इस आयुर्वेदिक औषधि की प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए ड्रग एंड काॅस्मेटिक एक्ट मानकों के अनुसार विजनानम इन्सट्ीट्यूट आफ क्लीनिकल रिसर्च पुणे में पायलट स्टडी भी करवाई है। यह रिसर्च डाॅ. दयानेश्वर मोटे (एमडी, आयुर्वेद) तथा डाॅ. कुटाडुन्ड (एमडी, मेडिसिन) द्वारा की गई थी।
यह रिसर्च आईईसी (इंडीपेंडेंट एथिकल कमेटी) द्वारा प्रमाणित थी। इस पायलट स्टडी के रिजल्ट बहुत ही उत्साहवर्धक थे। जितेन्द्र अवस्थी बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि यदि आयुर्वेदिक औषधियों को भी माॅडर्न मेडिसिन की तरह फंडिंग एवं सपोर्ट मिले तो आयुर्वेदिक औषधियों की रिसर्च करवाकर जनमानस को अधिक कारगर, सस्ती तथा दुष्प्रभाव रहित औषधियां उपलब्ध करवाई जा सकती है।
भारत सरकार के मंत्रालय (डिपार्टमेंट आॅफ इंडस्ट्रियल पाॅलिसी एंड प्रमोशन) द्वारा स्टार्टअप इन्डिया प्रोग्राम के तहत जितेन्द्र अवस्थी की यह योजना बुन्देलखण्ड की एकमात्र प्रमाणित स्टार्टअप है। अपने इस आयुर्वेदिक फार्मूलेशन को बड़े स्तर पर रिसर्च करने के लिए आयुष मंत्रालय से रिसर्च के लिए विभिन्न मंत्रियों से मदद मांगी पर कहीं पर भी सरकार द्वारा किसी प्रकार की मदद नहीं मिली। जितेन्द्र ने बताया कि सरकारी विभागों द्वारा मदद करना तो दूर की बात है, इनके पत्रों या ई-मेल का उत्तर तक नहीं दिया गया।
जितेन्द्र जन-मानस से यह भी कहना चाहते है कि आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग बिना आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लिए बिना नहीं करना चाहिए। क्योंकि आयुर्वेद में भी कुछ ऐसी औषधियाँ होती हैं जिनका निश्चित मात्रा में एक निश्चित समय तक ही प्रयोग किया जाता है। इन्होंने बताया कि कभी भी टीवी, पत्र-पत्रिकाओं में प्रचार देखकर आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन नहीं करना चाहिए, इनसे लाभ की जगह हानि भी हो सकती है। वो सेनेगल एम्बेसी में भी अपना प्रोजेक्ट प्रेजेंटेशन दे चुके हैं तथा बैंगलोर के वेन्चर कैप्टिलिस्ट द्वारा इनको इंक्यूबेटी सेलेक्ट किया जा चुका है।
सरकार द्वारा किसी प्रकार की मदद न मिलने के बाद भी ये आयुर्वेदिक औषधियों की मार्केटिंग एवं अनुसंधान में निरन्तर लगे हुए हैं। वर्तमान में ये इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट की ट्रेनिंग ले रहे हैं तथा बहुत ही जल्द आयुर्वेदिक औषधियों का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट शुरू करने वाले हैं। इनकी इच्छा है कि ये एक बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष अपनी बनाई हुई आयुर्वेदिक दवा का प्रेजेंटेशन दे पाएं।
जितेन्द्र मानते हैं कि आयुर्वेदिक औषधियों की भी अंग्रेजी दवाइयों की तरह रिसर्च की जाए तो जनमानस को बहुत ही सस्ती एवं तुरन्त प्रभावशील दवाइयाँ उपलब्ध करा सकते हैं।यदि उनके आयुर्वेदिक फार्मूलेशन की रिसर्च हो जाती है तो भारत विश्व का पहला देश होगा जो डेंगू तथा मलेरिया जैसी भयावह बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज खोज पायेगा। यदि हम ऐसा करने में सफल हेाते हैं तो सम्पूर्ण विश्व में आयुर्वेद की स्वीकार्यता बढ़ जाएगी।