क्या अब हिंदू होना गुनाह है?
जब हम अपने ही देश में जाति, भाषा और क्षेत्र के नाम पर एक-दूसरे से टकरा रहे होते हैं, तभी कहीं दूर, धर्म के नाम...

शोभित निगम, वरिष्ठ सॉफ्टवेयर डेवलपर, इंदौर ...
जब हम अपने ही देश में जाति, भाषा और क्षेत्र के नाम पर एक-दूसरे से टकरा रहे होते हैं, तभी कहीं दूर, धर्म के नाम पर कुछ ऐसा हो जाता है जो मानवता को शर्मसार कर देता है। एक बार फिर निर्दोष मासूमों की लाशें ज़मीन पर बिछा दी गईं — सिर्फ इसलिए कि वे "हिंदू" थे?
क्या अब इस देश या इस दुनिया में हिंदू होना गुनाह बन गया है?
घटना दिल दहला देने वाली है। मासूम बच्चों तक को नहीं बख्शा गया। घरों में मातम पसरा है, आँखों में आँसू हैं, और सीने में एक ऐसा दर्द, जिसका कोई मरहम नहीं।
मीडिया को एक बार फिर एक नया तमाशा मिल गया है — स्टूडियो में बहसें होंगी, एंकर चीखेंगे, गले फाड़ कर न्याय की मांग होगी…
सड़क पर मोमबत्तियाँ जलेंगी, श्रद्धांजलि सभाएँ होंगी, सोशल मीडिया पर ट्रेंड चलेंगे…
पर क्या इन सबसे कुछ बदलेगा?
जिन्होंने अपने अपनों को खो दिया — माँ-बाप, बहन, भाई या नन्हे बच्चों को — क्या उनके जीवन की वह रिक्तता कभी भर पाएगी? क्या उनके जीवन का यह सन्नाटा कभी टूट पाएगा?
हकीकत यही है कि न पहले कुछ बदला था… न अब बदलेगा… शायद कभी भी नहीं।
कुछ दिनों बाद लोग भूल जाएँगे — जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
पर जिनकी दुनिया उजड़ गई है, उनके लिए हर सुबह एक नए दर्द के साथ होगी, और हर रात एक न खत्म होने वाली तन्हाई में डूबेगी।
वो मासूम चेहरों की तस्वीरें, वो लहूलुहान ज़मीन, वो चीखें — शायद समय के साथ धुंधली हो जाएँ,
पर दिल में हमेशा एक ज़ख्म की तरह जिंदा रहेंगी।
इस सबके बीच, एक प्रश्न हर ज़मीर को झकझोरता है —
"कब तक?"
कब तक धर्म की आड़ में इंसानियत का कत्ल होता रहेगा?
यही समय है, जब हमें आत्मचिंतन करना होगा — एक समाज के रूप में, एक देश के रूप में, और सबसे बढ़कर एक इंसान के रूप में।
भगवद गीता का श्लोक आज फिर याद आता है —
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽअत्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।"
शायद… अब फिर समय आ गया है।
लेखक : शोभित निगम, वरिष्ठ सॉफ्टवेयर डेवलपर, इंदौर ...
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