ईमानदारी व सादगी के कारण इन्हें बुंदेलखंड के गांधी के रूप में मिली पहचान

जनपद बांदा में ईमानदारी की मिशाल रहे समाजवादी नेता जमुना प्रसाद बोस ताउम्र सादगी में जिए, चार बार विधायक और दो बार..

ईमानदारी व सादगी के कारण इन्हें बुंदेलखंड के गांधी के रूप में मिली पहचान

जनपद बांदा में ईमानदारी की मिशाल रहे समाजवादी नेता जमुना प्रसाद बोस ताउम्र सादगी में जिए, चार बार विधायक और दो बार कैबिनेट मंत्री रहने के बाद भी उन्होंने अपने लिए अपना निजी मकान तक नहीं बनवाया।  विधायकी और मंत्रित्वकाल  के अलावा पूरा जीवन उन्होंने अपने बच्चों के साथ किराए के मकान पर गुजारा।उनकी इसी सादगी के कारण उन्हें बुंदेलखंड के गांधी के रूप में पहचान मिली।

शहर के खिन्नीनाका मोहल्ले में 1925 में जन्मे जमुना प्रसाद के पिता ब्रिटिश शासन काल में  नगर पालिका में मुंशी के पद पर कार्यरत थे। 1945 में बहन की शादी के लिए पैतृक मकान 500 रुपए में बेच दिया था। तब से उनका परिवार किराए के मकान में ही गुजर बसर करता रहा। वरिष्ठ पत्रकार सुधीर निगम बताते हैं कि बोस जी ईमानदारी और सादगी के लिए जाने जाते थे। आजीवन खादी के कपड़े कुर्ता धोती पहनने वाले बोस जी सामाजिक और क्रांतिकारी स्वभाव के थे। 

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उन्होंने सबसे पहले 1939 में छात्र कांग्रेस की नींव रखी थी। उस समय  कक्षा 9 के इस छात्र ने हमीरपुर महोबा और चित्रकूट में इस संगठन को खड़ा करके छात्रों को संगठित किया था। 1962 में जमुना प्रसाद बोस ने सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई। दोबारा इसी पार्टी से उन्होंने 1974 में किस्मत आजमाई और जनता ने भरपूर समर्थन करते हुए बांदा सदर से विधायक बना दिया।

जिससे उन्हें 1977 में उत्तर प्रदेश सरकार में ग्राम विकास व पंचायती राज मंत्री बनाया गया। 1985 में पुनः विधायक चुने गए और 1989 में मुलायम सिंह यादव सरकार में श्री बोस को पशुपालन व मत्स्य मंत्री बनाया गया। राजनीति के खिलाड़ी के साथ बोस जी अच्छे पत्रकार भी थे, इंग्लिश के एक बड़े अखबार के रिपोर्टर रहे। 1975 में देश में इमरजेंसी लगने पर बोल जी को भी जेल जाना पड़ा। उनकी इस जेल यात्रा पर सपा सरकार ने लोकतंत्र रक्षक सेनानी का दर्जा दिया।

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  • कोरोना ने इन्हें भी छीना 

पिछले वर्ष कोरोनाकाल में अपने घर के बाथरूम में गिर जाने से इनकी कूल्हे की हड्डी टूट गई थी। उन्हें लखनऊ ले जाया गया जहां कई माह इलाज होने के बाद वापस लौट आए। सितंबर 2020 में तबीयत बिगड़ने पर फिर इन्हें एक नर्सिंग होम में दिखाया गया जहां इन्हें कोरोना पाज़िटिव पाया गया।इलाज के लिए कोविड-19  अस्पताल डॉ राम मनोहर लोहिया लखनऊ भेजा गया जहां 94  वर्षीय इस गांधीवादी नेता का निधन हो गया।

बताते हैं कि उन्होंने जितने बार भी विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन पैसे के बल पर चुनाव नहीं लड़ा। किराए के मकान में रहने के बावजूद कभी उन्होंने मकान के लिए प्रयास भी नहीं किया। उनके टूटे-फूटे घर में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह और पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह सहित कई हस्तियां आ चुकी हैं। पूर्व मंत्री शिवपाल ने तो उनको मकान देने का प्रस्ताव भी किया था जिसे बोस जी ने धन्यवाद कहते हुए ठुकरा दिया था।

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