वृन्दावन लाल वर्मा

May 26, 2020 - 19:32
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वृन्दावन लाल वर्मा

प्रकृति-चित्रण और मानव-प्रकृति के सफल चितेरे ऐतिहासिक कहानीकार व लेखक के रूप में प्रसिद्ध वृन्दावन लाल वर्मा बुन्देलखण्ड के मध्यकालीन इतिहास के सफल साहित्यकार हैं। इनका जन्म 9 जनवरी 1889 ई. को उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के मऊरानीपुर कस्बे में एक कुलीन कायस्थ परिवार में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा भिन्न-भिन्न स्थानों पर हुई। बी.ए. पास करने के बाद उन्होंने कानून की परीक्षा पास की और झाँसी में वकालत करने लगे। उन्हें बचपन से ही बुन्देलखण्ड की ऐतिहासिक विरासत में रूचि थी। उन्होंने 19 साल की उम्र में ही ‘महात्मा बुद्ध का जीवन चरित’ (1908) लिख डाला था। इसके बाद जब उन्होंने ‘सेनापति ऊदल’ (1909) लिखा तो अंग्रेजों ने इस नाटक में प्रयुक्त विद्रोही तेवरों को देखते हुए प्रतिबन्ध लगा दिया था। उन्होंने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास, नाटक, लेख आदि गद्य रचनाएं लिखीं, साथ ही कुछ निबन्ध एवं लघु कथाएं भी लिखी हैं।

इनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई’ 1946 में प्रकाशित हुआ। झाँसी की रानी के बाद इन्होंने कचनार, मृगनयनी, टूटे कांटे, अहिल्या बाई, भुवन विक्रम, अचल मेरा कोई, हंस मथूर, पूर्व की ओर, ललित विक्रम, राखी की लाज आदि उपन्यास एवं नाटकों का प्रकाशन किया। ‘मृगनयनी’ वृन्दावन लाल वर्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह 15वीं शती में ग्वालियर राज्य के मान सिंह तोमर तथा उनकी रानी मृगनयनी की कथा है। इनके द्वारा लिखित सामाजिक उपन्यास ‘संगम’ और ‘लगान’ पर हिन्दी फिल्में भी बन चुकी हैं। कुछ उपन्यासों पर आधारित धारावाहिक सीरियल भी बन चुके हैं।

डा. वृन्दावनलाल वर्मा की मृत्यु के 28 साल बाद भारत सरकार ने इनके सम्मान में 9 जनवरी 1997 को एक डाक टिकट जारी किया

इनके उत्कृष्ट साहित्य कार्य के लिए हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें क्रमशः ‘साहित्य वाचस्पति’ तथा मानद डाॅक्टरेट की उपाधि से विभूषित किया। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से भी अलंकृत किया गया। भारत सरकार ने इनके उपन्यास ‘झाँसी की रानी’ को भी पुरास्कृत किया है। अन्तर्राष्ट्रीय जगत में इनके हिन्दी लेखन कार्य को सराहा गया है। जिसके लिए इन्हें सोवियत रूस से पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। सन् 1969 में इन्होंने भौतिक संसार से विदा ले ली। इनकी मृत्यु के 28 साल बाद इनके सम्मान में भारत सरकार ने 9 जनवरी 1997 को एक डाक टिकट जारी किया।

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