अंग्रेजों का बनाया गजेटियर बतायेगा भंवरपुर की घरार नदी का सच

कई दिनों से जारी बाँदा जनपद का भंवरपुर गांव सुर्खियों में है। नरैनी तहसील की ग्राम पंचायत बिल्हरका का यह मजरा भंवरपुर तब सुर्खियों में आया जब एक सामाजिक संस्था के बैनर तले कुछ मजदूरों ने इस गांव से निकल रहे गहरार नाले में सफाई की और इसे घरार नदी बताकर नदी पुनर्जीवन की कथा गढ़ी।

अंग्रेजों का बनाया गजेटियर बतायेगा भंवरपुर की घरार नदी का सच

कई दिनों से जारी बाँदा जनपद का भंवरपुर गांव सुर्खियों में है। नरैनी तहसील की ग्राम पंचायत बिल्हरका का यह मजरा भंवरपुर तब सुर्खियों में आया जब एक सामाजिक संस्था के बैनर तले कुछ मजदूरों ने इस गांव से निकल रहे गहरार नाले में सफाई की और इसे घरार नदी बताकर नदी पुनर्जीवन की कथा गढ़ी। सुनने में तो एकबारगी यह सच प्रतीत हुआ पर इसे मानने या ना मानने में भी विरोधाभास है। गांव के लोग भी अलग-अलग तरह की बातें कह रहे हैं तो वहीं मीडिया का एक धड़ा इसे प्रवासी मजदूरों का श्रमदान बता रहा है तो दूसरा धड़ा इसे सिरे से खारिज करने में जुटा है।

झूठ और सच की इस लड़ाई के बीच इस मुद्दे ने स्थानीय सहित राष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। मीडिया और समाजसेवियों की आपसी खींचतान ने इसे यूपी सीएम तक पंहुचा दिया और सीएम योगी ने इस घटना की सत्यता जांचकर उन मजदूरों को सम्मानित करने की बात कह दी। बस यहीं से पूरा खेल शुरू हुआ और अंग्रेजों के समय का गरारा नाला आज घरार नदी बन गया। 

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दरअसल बुन्देलखण्ड के साथ विगत कई दशकों से छल का खेल किया जा रहा है। मानवीय संवेदनाओं की आड़ में कुछ लोगों की रोटियां बुन्देलखण्ड की तपती धरती पर दशकों से सिंक रही हैं। तो क्यों न इस खेल में अन्य लोग भी आते, लिहाजा लोग आते गये और बुन्देलखण्ड को छलते गये। दादू-डकैत के दौर के बाद शुरू हुआ बुन्देलखण्ड में भूख और प्यास का खेल। इस पर भी जब मन नहीं भरा तो किसानों की आत्महत्याओं से पूरा देश दहल उठा। धीरे-धीरे बुन्देलखण्ड ने इसे नियति ही मान लिया। और लोगों को भी इसकी आदत पड़ते देर नहीं लगी। पर वक्त करवट लेता जरूर है, और यही वह समय है जब वक्त करवट ले रहा है। लोग भी जान रहे हैं कि अब ये खेल और दिन नहीं चलने वाला।

बुन्देलखण्ड न्यूज ने हमेशा ही सकारात्मक ढंग से मुद्दों को उठाकर जनता का ध्यान आकर्षित किया है और हम लगातार यह करते रहेंगे। बुन्देलखण्ड में हम उन चीजों को आगे लाना चाहते हैं जो दशकों से से चली आ रही या बनाई गयी समस्याओं के पीछे कहीं खो गयी थीं।

इसी क्रम में यह तथाकथित कहानी भी है, जो भंवरपुर की है। हो सकता है कि कुछ लोग इससे परिचित न हों पर अधिकतर लोगों ने जरूर इस बात को पढ़ा होगा कि कैसे भंवरपुर में वापस आये प्रवासी मजदूरों ने श्रमदान कर एक नदी, जिसे घरार नाम दिया गया, को पुनर्जीवित कर दिया गया। अगर यह सही है तो वो मजदूर निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। लेकिन अगर यह गलत है तो इस खेल के पीछे छिपे लोगों को पहचानना होगा। ये काम हमारा नहीं है पर हम आपको सच बता सकते हैं।

अंगे्रजों के समय जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था, तब एक आई.सी.एस. अधिकारी डी.एल. ड्रेक ब्राॅकमैन ने सन् 1909 में बाँदा गजेटियर बनाया। दरअसल बाँदा का नाम इसके पहले सन् 1874 में बने नाॅर्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज गजेटियर में ही आया था, तब बाँदा को इसके पहले भाग में थोड़ी सी जगह मिली लेकिन सन् 1909 में जब गजेटियर बनाया गया तो बाँदा का अपना एक पूरा गजेटियर था। जिसमें बाँदा की उस समय की पूरी जानकारी दर्ज की गयी थी। बाद में इसके अन्य संशोधित संस्करण भी प्रकाशित होते रहे। 20वीं सदी की शुरूआत के इसी गजेटियर में उस रहस्यमयी नाले का भी ज़िक्र है जो 21 सदी में नदी बन गया। वही गहरार नाला, जिसे कुछ लोगों ने परिश्रम से नदी बना दिया।

दरअसल बाँदा गजेटियर के पेज नं. 11 में अंकित दूसरा पैराग्राफ बता रहा है कि उस वक्त यह एक नाला था, जिसे गरारा के नाम से लोग पुकारते थे, वही नाम इस गजेटियर में अंकित किया गया। गजेटियर साफ-साफ बताता है कि यह नाला है। आप के पढ़ने के लिए हम इसका स्क्रीनशाॅट दे रहे हैं -

सन 1909 में प्रकाशित बांदा गजेटियर का वह हिस्सा जिसमें गरारा नाले का जिक्र है

नाला और धाराओं में अन्तर है। इसी प्रकार धाराओं और नदी में अन्तर होता है। कई प्राकृतिक धाराओं से एक नदी का निर्माण होता है, और कई छोटी-छोटी नदियां मिलकर एक बड़ी नदी में तब्दील हो जाती हैं। पर नाली-नालों को नदियों की श्रेणी में तो कतई नहीं रखा जा सकता। हां, कहीं कहीं नदियों से नहरें निकाली जाती हैं जो सिंचाई इत्यादि के काम आती हैं। बरसात में भी ऐसे कई नाले बन जाते हैं जिनमें पूरे बरसात भर इतना पानी होता है जिसे देखकर नदी भी कह दिया जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन ऐसे बरसाती नालों का भविष्य भी बरसाती मेढकों के की तरह गायब हो जाता है।

भंवरपुर की इस कहानी में कई पेंच हैं, पर उन्हें विस्तार से बाद में समझेंगे, फिलहाल के लिए इतना ही।

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