5 करोड़ की हेरा फेरी 36 लाख में कैसे बदल गई, जानकार हर कोई हैरान
डिस्टिक कोऑपरेटिव बैंक की शाखा ओरन में 5 करोड़ 54 लाख का फर्जीवाड़ा हुआ था। जांच शुरू हुई तो केवल 36 लाख का गवन पाया गया। इस मामले में...
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बांदा,
डिस्टिक कोऑपरेटिव बैंक की शाखा ओरन में 5 करोड़ 54 लाख का फर्जीवाड़ा हुआ था। जांच शुरू हुई तो केवल 36 लाख का गवन पाया गया। इस मामले में कैशियर समेत तीन बैंक कर्मियों को जेल भेज दिया गया। यह जानकर हर कोई हैरान है कि 5 करोड़ से अधिक का फर्जीवाड़ा आखिर 36 लाख में कैसे अटक गया। इस बारे में कोई भी जानकारी देने तैयार नहीं है। इसमें मुख्य घोटालेबाज कैशियर नीरज त्रिपाठी को बताया जा रहा है।
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डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक की शाखा और उनमें वर्ष 2012 से 2018 के बीच कैशियर और शाखा प्रबंधकों की आपस में मिलीभगत से खाताधारकों के खाते से लगभग सवा पांच करोड़ की हेराफेरी की गई है। बताया जाता है कि अलग-अलग तारीख में खाताधारकों के फर्जी विड्रॉल भरकर और चेक के जरिए तीन करोड़ 17 लाख रुपये निकाले गए। इसके अलावा दो करोड़ 37 लाख 56 हजार 505 रुपये की वित्तीय अनियमितताएं की गईं। इस तरह कुल 5 करोड़ 54 लाख का घोटाला प्रकाश में आया था। इस मामले में उप महाप्रबंधक उदरेज कुमार प्रजापति के नेतृत्व में 4 सदस्यीय टीम ने जांच की और रिकॉर्ड खंगाले तो बैंक कैशियर से लेकर प्रबंधक तक इस घोटाले में शामिल पाए गए। इनके खिलाफ थाना बिसंडा में मुकदमा भी पंजीकृत करा दिया गया था साथ ही वर्ष 2012 से 2018 के बीच शाखा प्रबंधक रहे विजय शुक्ला और कैशियर नीरज त्रिपाठी को बर्खास्त कर दिया गया और शाखा प्रबंधक प्रशांत पांडे, हरिहर प्रसाद कुशवाहा और सर्वेश शुक्ला को निलंबित किया गया था।
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इस घोटाले में कौन-कौन शामिल थे इसके लिए जांच का क्रम जारी रहा। चित्रकूट धाम मंडल के उपायुक्त और उप निबंधक ने फर्जी बड़ा करने वाले आरोपियों को नोटिस भेज कर तलब किया था। साथ ही 500 खाता धारकों को भी बुलाया गया था। इस तरह यह जांच चलती रही। लेकिन 2020 में इस पूरे मामले को दबा दिया गया। तब इस पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा लेकिन जांच और आंच का ऐसा घाल -मेल हुआ की गबन का मामला 5 करोड़ 54 लाख से तीस लाख में आ गया। ले देकर जांच प्रभावित कर दी गई।
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बैंक में घोटाले का मुख्य सूत्रधार कैशियर नीरज त्रिपाठी को माना जा रहा है। इनके पिता रमाकांत त्रिपाठी कोऑपरेटिव बैंक शाखा ओरन के बैंक संचालक रहे हैं। इन्हीं के भवन में कई दशकों से बैंक शाखा संचालित हो रहा है। नीरज त्रिपाठी को वर्ष 2009 में चपरासी के पद पर नियुक्त किया गया था लेकिन एक साल के अंदर उसे कैशियर का चार्ज दिलवा दिया गया। नीरज के पास ग्राहक पैसा जमा करने आते थे। तो वह रसीद पकड़ा देता था और पूरा पैसा पिता के खाते में ट्रांसफर कर देता था। इस तरह 500 खाता धारकों के धन की हेरा फेरी की गई थी।
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इस बारे में जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पंकज अग्रवाल ने कहा कि यह पुराना मामला है मुझे अध्यक्ष बने हुए केवल एक माह हुआ है अभी इस बारे में मुझे पूरी तरह से जानकारी नहीं है।बताते चलें कि बुधवार की रात कोऑपरेटिव सेल लखनऊ की तीन सदस्यीय टीम ने पहुंचकर जांच पड़ताल शुरू की और गुरुवार को सवेरे पुलिस की मदद से बैंक के कैशियर समेत तीन कर्मचारियों को गिरफ्तार कराया। जिन्हें सीजेएम के अदालत में पेश किया गया। कोर्ट ने तीनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया।
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