डाकू से रामायण के रचनाकार कैसे बने महर्षि वाल्मीकि
वाल्मीकि जी जब तप कर रहे थे तब दीमकों ने उन पर घर बना लिया था इसलिए उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया। डाकू रत्नाकर से वह महर्षि बन गए और आगे जाकर महान कवि के तौर पर विख्यात हुए--
वाल्मीकि जी जब तप कर रहे थे तब दीमकों ने उन पर घर बना लिया था इसलिए उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया। डाकू रत्नाकर से वह महर्षि बन गए और आगे जाकर महान कवि के तौर पर विख्यात हुए और महर्षि वाल्मीकि ने ही संस्कृत में रामायण की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा-
महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ। महर्षि वाल्मीकि के भाई महर्षि भृगु भी परम ज्ञानी थे। महर्षि वाल्मीकि की जीवन गाथा काफी सुप्रसिद्ध रही है। पौराणिक कथा के अनुसार वाल्मीकि महर्षि बनने से पूर्व उनका नाम रत्नाकर था। रत्नाकर अपने परिवार के पालन के लिए दूसरों से लूटपाट किया करते थे। एक समय उनकी भेंट नारद मुनि से हुई।
रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने का प्रयास किया तो नारद मुनि ने उनसे पुछा कि वह यह कार्य क्यों करते हैं? रत्नाकर ने उत्तर दिया कि परिवार के पालन-पोषण के लिए वह ऐसा करते हैं। नारद मुनि ने रत्नाकर से कहा कि वह जो जिस परिवार के लिए अपराध कर रहे हैं और क्या वे उनके पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे? असमंजस में पड़े रत्नाकर ने नारद मुनि को पास ही किसी पेड़ से बांधा और अपने घर उस प्रश्न का उत्तर जानने हेतु पहुंच गए।
यह भी पढ़ें - चित्रकूट के बाल्मीकि आश्रम को लगेंगे विकास के पंख
उनके परिवार ने उनके पापों में भागीदार होने से इनकार कर दिया। यह जानकर उन्हें निराशा हुई। । यह सुन रत्नाकर वापस लौटे, नारद मुनि को खोला और उनके चरणों पर गिर गए। तत्पश्चात नारद मुनि ने उन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें परामर्श दिया कि वह राम-राम का जाप करे। फिर रत्नाकर ने धुनी रमा ली और वह राम नाम का तप करने लगे।
ध्यान में मग्न वाल्मीकि के शरीर के चारों ओर दीमकों ने अपना घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूर्ण हुई तो वे दीमकों के घर से बाहर निकले। चूंकि दीमकों के घर को वाल्मीकि कहते हैं, तो वे वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए। राम नाम जपते-जपते ही रत्नाकर महर्षि बन गए और आगे जाकर महान महर्षि वाल्मीकि के नाम से विख्यात हुए।
संस्कृत का पहला श्लोक
महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी एक और घटना है जिसका वर्णन अत्यंत आवश्यक है. एक बार महर्षि वाल्मीकि एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे. वह जोड़ा प्रेम करने में लीन था. पक्षियों को देखकर महर्षि वाल्मीकि न केवल अत्यंत प्रसन्न हुए, बल्कि सृष्टि की इस अनुपम कृति की प्रशंसा भी की. इतने में एक पक्षी को एक बाण आ लगा, जिससे उसकी जीवन -लीला तुरंत समाप्त हो गई. यह देख मुनि अत्यंत क्रोधित हुए और शिकारी को संस्कृत में कुछ श्लोक कहा. मुनि द्वारा बोला गया यह श्लोक ही संस्कृत भाषा का पहला श्लोक माना जाता है।
यह भी पढ़ें - बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे, लीजिये पूरी जानकारी
- मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है. जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी)
वाल्मीकि रामायण
महर्षि वाल्मीकि ने ही संस्कृत में रामायण की रचना की. उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई. रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है. वाल्मीकि रामायण में भगवान राम को एक साधारण मानव के रूप में प्रस्तुत किया गया है. एक ऐसा मानव, जिन्होंने संपूर्ण मानव जाति के समक्ष एक आदर्श उपस्थित किया. रामायण प्राचीन भारत का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
यह भी पढ़ें - खत्री पहाड़ : नंदबाबा की बेटी ने इस पर्वत को दिया था कोढी होने का श्राप
महर्षि वाल्मीकि आश्रम
मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट के प्रवेश द्वार के नाम से विख्यात झाँसी -मिर्जापुर राष्ट्रीय राजमार्ग में जिले के बगरेही गांव के समीप स्थित लव-कुश की जन्मभूमि एवं रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की कर्मस्थली बाल्मीकि आश्रम है। भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश की जन्मभूमि एवं रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली होने के कारण धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समूचे विश्व में महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। घने जंगल के ऊपर पहाडी में स्थित इस आश्रम में आज भी त्रेतायुग के तमाम साक्ष्य मौजूद है।