बुंदेलखंड की चरखारी रियासत अदम्य साहस, तोपों के नाम से डरते थे दुश्मन: रोजाना तीन बार दी जाती थी सलामी

बुंदेलखंड की चरखारी रियासत न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर थी...

बुंदेलखंड की चरखारी रियासत अदम्य साहस, तोपों के नाम से डरते थे दुश्मन: रोजाना तीन बार दी जाती थी सलामी

पंकज पाराशर, छतरपुर

बुंदेलखंड की चरखारी रियासत न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर थी, बल्कि अपनी सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से भी अभेद्य मानी जाती थी। दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए चरखारी में ऐसी तोपें थीं, जो न केवल अपनी मारक क्षमता के लिए जानी जाती थीं, बल्कि उनके नाम भी इतने डरावने थे कि दुश्मन उनका नाम सुनकर ही भाग खड़े होते थे।

जगतराज ने मुड़िया पर्वत सिद्ध स्थल पर बनवाया मंगलगढ़

दुर्ग चंदेलों के गुजर जाने के सैकड़ों वर्ष बाद, राजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज ने चरखारी के मुड़िया पर्वत सिद्ध स्थल पर किले का निर्माण शुरू कराया। ऐसी मान्यता है कि जगतराज को एक दिन लक्ष्मी ने स्वप्न में आदेश देकर मुड़िया पर्वत पर किला बनवाने को कहा था। उन्होंने मंगलवार को किले का निर्माण शुरू करने को कहा था, इसलिए दुर्ग का नाम मंगलगढ़ रखा गया।

अष्टधातु की तोपों के लिए प्रसिद्ध रहा है चरखारी

चरखारी दुर्ग की सैन्य व्यवस्था को चाक-चौबंद रखने और दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए किले के अंदर अलग-अलग मारक क्षमता की तोपें थीं। इन तोपों के नाम ही उनकी भयावहता को दर्शाने के लिए काफी थे। चरखारी रियासत में गर्भ गिरावन, धरती धड़कन, कड़क बिजली, सिद्ध बख्शी, और काली सहाय जैसी तोपें थीं, जिनकी दूर-दूर तक ख्याति थी। कोई भी दूसरा राजा चरखारी पर हमला करने से पहले कई बार सोचता था।

फिलहाल बची है सिर्फ एक तोप

वक्त के थपेड़ों के बाद चरखारी में केवल एक तोप काली सहाय बची है, जिसकी मारक क्षमता 15 किलोमीटर है। सैकड़ों वर्ष पहले तोप की यह मारक क्षमता बहुत मायने रखती थी। चरखारी रियासत में प्रतिदिन तीन बार अलग-अलग समय पर तोपें दागी जाती थीं। पहली तोप सुबह चार बजे लोगों को जगाने के लिए दागी जाती थी, दूसरी तोप दोपहर में 12 बजे विश्राम के लिए सूचित करने के लिए, और तीसरी तोप रात में सोने के लिए। तीसरी तोप दागने के बाद चरखारी नगर का मुख्य फाटक बंद कर दिया जाता था।

भगवान कृष्ण को तीन बार दी जाती थी तोपों से सलामी

तीन बार तोपें दागने के पीछे एक बड़ा कारण मंदिरों के पट खुलने, मंगला आरती, मंदिर के पट बंद करने और शयन आरती के लिए लोगों को सूचित करने और भगवान कृष्ण को तोपों की सलामी देना था। चरखारी का मंगलगढ़ दुर्ग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण, पूरा दुर्ग कई सालों से सेना के हवाले है और आम आदमी के लिए दुर्ग में प्रवेश प्रतिबंधित है।

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