उज्जैन : आज रात्रि 12 बजे खुलेंगे नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट, वर्ष में एक बार खुलते हैं 24 घण्टे के लिए

देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में एक महाकाल मंदिर के द्वितीय तल पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी पर...

उज्जैन : आज रात्रि 12 बजे खुलेंगे नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट, वर्ष में एक बार खुलते हैं 24 घण्टे के लिए
फ़ाइल फोटो

उज्जैन। देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में एक महाकाल मंदिर के द्वितीय तल पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी पर 24 घण्टे के लिए खुलते हैं। आज गुरूवार रात्रि 12 बजे पट खुलेंगे और शुक्रवार रात्रि 12 बजे पूजन पश्चात एक वर्ष के लिए पुन: बंद हो जाएंगे। वर्ष में एक बार सिर्फ 24 घण्टे के लिए पट खोलने को लेकर पौराणिक मान्यताएं भी हैं। जो कथा स्वरूप में है तथा इसे लेकर किसीप्रकार का धार्मिक मतभेद नहीं है।

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यह है पौराणिक कथा और महात्म्य

ज्योतिषाचार्य पं.हरिहर पण्ड्या के अनुसार-सर्पराज तक्षक ने भगवान शंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पराज तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राज ने प्रभु के सान्निध्य में ही रहना करना शुरू कर दिया। महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो। अत: महाकाल मंदिर के द्वितीय तल पर उनका वास हो गया। तभी से यह परंपरा रही कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। नागचंदे्रेश्वर की जिस प्रतिमा का पूजन वर्तमान में होता है,उसे लेकर मान्यता है कि यह नेपाल से लाई गई थी। इसमें सर्प के आसन पर भगवान शंकर, मां पार्वती,गणेश एवं कार्तिकेय विराजे हैं। सूर्य एवं चंद्र भी हैं। समीप के कक्ष में नागचंद्रेश्वर भगवान का शिवलिंग है,जहां पूजन अवश्य करना चाहिए।

यह मान्यता है कि नाग पंचमी पर नागचंद्रेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति सभी प्रकार के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है। इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर में दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतार लगती है।

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यह है इतिहास

पं.हरिहर पण्ड्या के अनुसार यह मंदिर काफी प्राचीन है। इतिहास में उल्लेख है कि परमार वंश के राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद तत्कालिन सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर शिखर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। आज भी नागपंचमी के दिन यहां त्रिकाल पूजा होती है। वहीं तहसील पूजा एवं महाकाल मंदिर प्रबंध समिति की ओर से पण्डे-पुजारियों द्वारा पूजा की जाती है। यहां पट खुलने पर पूजन का अधिकार पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा को है। जो भेंट आती है,उसका अंश भाग महाकाल मंदिर प्रबंध समिति का रहता है,बाकी चढ़ावा अखाड़े को जाता है। अखाड़े के महंत ही भस्मार्ती में बाबा को गाय के गोबर से बने उपलों की राख अर्पित करते हैं। यह परंपरा भी सदियों से है। मंदिर परिसर में अखाड़े के स्थायी कक्ष हैं। यहां वर्तमान में महंत विनित गिरि जी महाराज गादीपति है। पूर्व में वर्षो तक महंत प्रकाशपुरीजी महाराज विराजते थे। उनके निधन के बाद अखाड़े ने विनितगिरिजी महाराज को नियुक्त किया। वे ही आज गुरूवार रात 12 बजे पट खुलते ही पूजन करेंगे तथा शुक्रवार रात 12 बजे पट बंद होने से पूर्व पूजा करेंगे। नागपंचमी को दोपहर 12 बजे कलेक्टर पूजन करेंगे। यह सरकारी पूजा होगी। यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है। रात 8 बजे महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा पूजन होगा।

हिन्दुस्थान समाचार

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