बुन्देलखण्ड को बदनाम करना बन्द करो

Jun 2, 2020 - 19:49
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बुन्देलखण्ड को बदनाम करना बन्द करो

#StopDefamingBundelkhand

@ सचिन चतुर्वेदी

पीढ़ियां गुजर गयीं बुन्देलखण्ड को बदनामी का दाग ढोते देखकर, पर उफ नहीं की। हम सबने देखा है कि एक लम्बे समय से बुन्देलखण्ड में भूख, गरीबी, लाचारी, बदहाली, बेबसी जैसे विशेषणों का सहारा लेते हुए इसे जमकर भुनाया गया। किसानों की आत्महत्या हो, पानी का संकट हो, घास की रोटी हो, जो भी हो, जमकर रोटियां सिकीं बुन्देलखण्ड की तपती पीठ पर। पर बुन्देलखण्ड को सहानुभूति के निवाले ही नसीब हो सके। असली मलाई तो उसने पाई जिसने इसकी लाचारी दिखाई। क्या ऐसा है बुन्देलखण्ड? 

जो यहां का निवासी है या बुन्देलखण्ड को अच्छे से जानता है, उसे भी पता है कि कम से कम ऐसा बुन्देलखण्ड तो उसने केवल अखबारों में पढ़ा या फिर टीवी पर ही देखा है। वास्तविक जिन्दगी में बुन्देलखण्ड की एक अलग ही सूरत है, जिसे या तो देखने का प्रयास ही नहीं किया गया या फिर योजनाओं की आड़ में जो मोटी रकम उन आंखों में सपना बन चुकी थी, उसने बुन्देलखण्ड के उस उजियारे पक्ष पर बदनामी का पर्दा डालकर उसे हमेशा के लिए बदहाल बना दिया। जिसके बाद इसका नया नामकरण हुआ, बदहाल बुन्देलखण्ड। 

कितनी अच्छी तुकबन्दी लगती है जब लिखा जाता है बदहाल बुन्देलखण्ड, बेबस बुन्देलखण्ड, भूखा बुन्देलखण्ड आदि-आदि। शुरू में ये तुकबन्दी उन्हें अच्छी लगती थी, जिन्होंने इसकी आड़ में अपनी जेबें भरने की योजना बनाईं पर धीरे-धीरे इसकी गिरफ्त में हम भी आये और हमें भी इन शब्दों में अपनापन झलकने लगा। लगा कि यही तो मंजिल है, यहां की बदहाली की खबर जब सरकार के कानों में जायेगी तो यहां की तकदीर सुधरेगी, तस्वीर बदलेगी। इसे अपना मानकर बुन्देलियों ने भी इसकी मार्केटिंग में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। क्या ये चाहते थे आप अपने बुन्देलखण्ड के बारे में? सोचिये, तो पता लगेगा कि कितनी बड़ी गलती कर चुके हैं हम! अपने बुन्देलखण्ड को उन कसाईयों के हाथों में सौंप दिया था हमने जिन्होंने हमें पाला ही इसीलिए था कि एक दिन समय आने पर उनकी उदरतृप्ति कर पायें। दरअसल ये थी हमारी नियति, पर अब इसे बदलने का वक्त है। ऐसे धोखेबाजों को पहचानिये और अपने बुन्देलखण्ड की छवि खराब करने वालों के खिलाफ मुखर हो जाईये। क्योंकि ये बुन्देलखण्ड हमारा है, कोई इसे बदहाल कहे, बदनाम करे, ये हमें बर्दाश्त नहीं होना चाहिए।

बुन्देलखण्ड वो खूबसूरत क्षेत्र है जहां भगवान राम ने अपने वनवास का समय बिताया। जो गोस्वामी तुलसीदास, महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास, आचार्य चाणक्य जैसी महान विभूतियों की जन्म/कर्म स्थली रही। रानी दुर्गावती और रानी लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनायें यहां की पहचान हैं। आदिकाल में यह भारत के सबसे समृद्ध क्षेत्रों में से एक था। चन्देल राजाओं के बनवाये विश्वप्रसिद्ध खजुराहो के मन्दिर, कालिंजर, अजयगढ़, देवगढ़, पपौरा, गुलाब बाग, हीरों की नगरी पन्ना जैसे स्थान बुन्देलखण्ड की एक अलग ही कीर्ति बखान करते हैं। खनिज का सर्वाधिक भण्डार इसी क्षेत्र में है। वर्तमान में राजस्व की गणना करें तो यूपी और एमपी में बंटा बुन्देलखण्ड इन दोनों प्रदेशों को इतना राजस्व दे देता है कि इसी के अकेले दम पर दोनों प्रदेश की अर्थव्यवस्था चल सकती है।

परन्तु इतना सब होने के बावजूद पूरे देश में सर्वाधिक जलधाराओं वाला बुन्देलखण्ड आज प्यासा क्यों है? एकाएक क्या हुआ कि समृद्ध बुन्देलखण्ड बदहाली की कगार पर पहुंच गया। ये निश्चित ही एक गम्भीर विषय है, जिसमें सभी को मंथन करना होगा। आखिर इसके जिम्मेदार कौन लोग हैं? कौन लोग हैं जो यह नहीं चाहते कि बुन्देलखण्ड की एक सकारात्मक छवि पूरे विश्व में जानी जाये। जबकि यहां के लोग मेहनती हैं, अनुभवी हैं, ज्ञानवान हैं, तभी तो पूरे देश में कुशल श्रमिक के रूप में अपनी क्षमता का लोहा मनवा रहे हैं।

हमें पहचानना होगा, अपने दुश्मनों को, बुन्देलखण्ड की नकारात्मक छवि दिखाने वालों को, इसे बदनाम करने वालों को। वरना बुन्देलों और बुन्देलखण्ड के दोहन का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा।

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