अन्ना प्रथा का इलाज ‘पांजरा-पोल’

अन्ना प्रथा बुन्देलखण्ड की भीषण समस्या है, जिससे यहां के किसान और यहां की खेती प्रभावित होती है। गुजरात के पांजरा पोल माॅडल को अपनाने से इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

अन्ना प्रथा का इलाज ‘पांजरा-पोल’

बुन्देलखण्ड कृषि प्रधान क्षेत्र है। बीते कुछ वर्षों से असमय व अल्प वर्ष ने इस क्षेत्र को तबाह कर दिया, जिससे हमारे अन्नदाता भुखमरी के शिकार हुए। पेट भरने के लिए कर्ज लिया और कर्ज अदा न करने पर मौत को गले लगाना शुरू कर दिया। इधर लगभग एक दशक से अन्ना पशु किसानों की गले की फांस बन गए। किसान जो फसल उगाते हैं उन्हें अन्ना पशुओं का झुण्ड चट कर जाता है, जिससे अन्ना प्रथा एक अभिशाप बन गई। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने तमाम योजनाएं शुरू की। गौशाला बनाने को अनुदान दिया ताकि लोग अपने पालतू पशु को लावारिस ना छोड़े, इसके लिए सरकार ने प्रति पशु 30 रूपये प्रतिदिन देने की घोषणा भी की, फिर भी यह समस्या जस की तस बनी हुई है। इस समस्या से निपटने के लिए बहस शुरू हुई, तमाम स्वयंसेवी संस्थाएं भी आगे आई लेकिन अन्ना प्रथा की सफल समस्या मात्र गोष्ठियों में सिमट कर रह गई।

इस समस्या से निपटने के लिए बेहद जरूरी है कि, प्रत्येक व्यक्ति अन्ना मवेशियों के प्रति कृतज्ञ होकर उनके लिए ऐसे उपाय करें जिससे समाज के लिए अत्यंत जरूरी गौ वंश सुरक्षित व संरक्षित रहें। ऐसा नहीं है कि यह समस्या मात्र बुन्देलखण्ड में है, यह समस्या देश के अन्य हिस्सों में भी है। लेकिन वहां के निवासियों ने इस समस्या से निपटने के लिए कारगर तरीके अपनाएं और उन्हें सफलता भी मिली, जिससे उन्हें अन्ना प्रथा जैसी समस्याओं से निजात मिल गई। इस जटिल समस्या से निपटने में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान ने ‘पांजरा-पोलमॉडल को अपनाया, और इसी मॉडल के सहारे उन्हें अन्ना प्रथा जैसी समस्या से निपटने में सफलता मिली।

क्या है पांजरा-पोल मॉडल

मॉडल ‘पांजरा-पोलबेसहारा व बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले सेंटर को कहते हैं, इसमें बीमार और आवारा घूम रहे मवेशियों को रखा जाता है। इसमें उनके खान-पान का विशेष ध्यान दिया जाता है। लगभग डेढ़ सौ साल से इन इलाकों में पांजरा-पोल व्यापक काम कर रहा है। इधर उधर घूमने वाले अन्ना गाय व अन्य मवेशी जो लावारिस घूम रहे हैं, उन्हें ‘पांजरा-पोलमॉडल के तहत काम कर रही संस्थायें आश्रय दे रही है। ‘पांजरा-पोलमॉडल के तहत काम कर रहे गौशालाओं में अन्ना पशुओं को शरण मिलने से वह अन्ना नही घूमते। यही वजह है जिससे किसानों की फसल अन्ना पशु बर्बाद नही कर पाते। इस तरह गुजरात, राजस्थान व महाराष्ट्र के किसानों के लिए पांजरा पोल गौशाला वरदान साबित हो रही है।

आय का स्रोत भी है ‘गौवंश’

जो अन्ना पशु गौशाला में रखे जाते हैं, वही आय का स्रोत भी बन जाते हैं। उनके गोबर और गोमूत्र से दवा बनाकर बेचने के अलावा गोबर और गोमूत्र से अन्य वस्तुएं भी बनाई जाती हैं, जिससे गौशाला का खर्च निकलता है। गोबर व गौमूत्र के अलावा दूध और दूध से बने उत्पादन भी आय का स्रोत बनते हैं, जिससे गौशाला में रहने वाले गोवंश किसी पर बोझ नहीं बनते हैं। इसमें किसी सरकारी मदद की जरूरत भी नहीं होती है। सामाजिक संस्थाएं या स्वयंसेवी अपने बूते पर इस तरह के गौशालाओं को स्थापित करके गोवंशो को संरक्षित करने में अपना योगदान दे सकती हैं। कुल मिलाकर इस तरह के गौशाला बुन्देलखण्ड के लिए वरदान साबित हो सकते हैं।

आई जी राजाबाबू की पहल

बुन्देलखण्ड का जनपद बाँदा भी अन्ना प्रथा जैसी जटिल समस्या से ग्रस्त है। इस समस्या से निपटने के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने गौशालाओं के लिए धन भी आवंटित किया है। लेकिन ज्यादातर गौशाला कागजों में चल रही हैं या फिर गौशालाओं के रख-रखाव में संस्थाएं लापरवाही बरत रही हैं, जिससे उन गौशालाओं में रखी गायें बेमौत मर रही हैं। ठंड में सैकड़ों गाय ठंड की चपेट में आकर मौत के मुंह में समा गई। ऐसे में इस इलाके में एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो बेजुबान गोवंशो के संरक्षण के लिए निःस्वार्थ भाव से काम करें। ऐसे व्यक्तित्व के धनी और सामाजिक सेवा में अग्रणी एडीजी राजा बाबू ने पहल की है, उन्होंने कुरसेजा धाम में 25 बीघा क्षेत्रफल में गौशाला बनाने की घोषणा करते हुए 30 जनवरी को भूमि पूजन भी किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस गौशाला में 1000 गायों को रखा जाएगा और बीमार होने पर इलाज के लिए ‘लिफ्ट-वाकरजैसी आधुनिक मशीनें भी लगाई जाएंगी।

अगर एडीजी राजा बाबू सिंह जैसे व्यक्ति गौ संरक्षण के लिए कदम बढ़ाए तो वह दिन दूर नहीं जब बुन्देलखण्ड के किसानों के गले की फांस बन चुके अन्ना पशुओं से निजात मिलेगी, और किसानों की नष्ट हो रही फसल बच जायेगीं। तब किसान बेहतर ढंग से अन्न का उत्पादन करेंगे और उनका जीवन भी खुशहाल हो जाएगा।

  जयराम सिंह

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