दलित महिला की जमीन पर कब्जा कर मस्जिद बनाना गैरकानूनी है !?

हिन्दू आस्था के बामदेवेश्वर पर्वत पर एक मस्जिद बनाये जाने का जैसे ही समाचार फैला वैसे ही लोगों में भी उत्सुकता है कि आखिर दो साल से यह मस्जिद बन रही है, तो लोगों को कैसे पता नहीं चला?

दलित महिला की जमीन पर कब्जा कर मस्जिद बनाना गैरकानूनी है !?

हिन्दू आस्था के बामदेवेश्वर पर्वत पर एक मस्जिद बनाये जाने का जैसे ही समाचार फैला वैसे ही लोगों में भी उत्सुकता है कि आखिर दो साल से यह मस्जिद बन रही है, तो लोगों को कैसे पता नहीं चला? और सबसे बड़ी बात कि वह जमीन एक अनुसूचित जाति की महिला की है, जैसे कि वो दावा करती है, उसे कैसे कोई खरीद सकता है या कब्जा कर सकता है?

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दलित महिला सिमिया देवी की जिस जमीन (चूंकि वो महिला उस जमीन पर अपना दावा करती है, वो कहती है कि वो जमीन उसने वर्षों पहले जमा खानदान से खरीदी थी) पर कब्जा कर मस्जिद बनाई गयी है, उसके लीगल पक्ष को देखें तो पता चलता है प्रयागराज हाईकोर्ट भी अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन के मामले में इसी प्रकार का निर्णय दे चुका है। अनुसूचित जाति के भूमिधर की जमीन खरीदने से पहले नियमानुसार अनुमति लेना अनिवार्य है, भले ही जमीन खरीदने वाला स्वयं अनुसूचित जाति का सदस्य ही क्यों न हो।

हाईकोर्ट ने खारिज की थी दलील और दिया था यह निर्णय
दरअसल गत 3 जून को एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रयागराज हाईकोर्ट ने इस बावत अपना निर्णय सुनाया था, चूंकि अनुसूचित जाति के याची रामलाल ने अपने गांव में एक अन्य अनुसूचित जाति के व्यक्ति से उसकी दो कृषि भूमि खरीदी थीं। बेचने वाले को यह भूमि ग्राम सभा से आवंटित की गयी थी, जिस पर उसे स्थानान्तरणीय भूमिधरी का अधिकार प्राप्त था। याची की सेल डीड को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि उसने जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम की धारा 157ए के तहत अनुसूचित जाति की भूमि खरीदने से पूर्व आवश्यक अनुमति प्राप्त नहीं की थी इसीलिए उसकी सेड डीड खारिज कर जमीन राज्य सरकार में समाहित कर ली गयी थी। इसके खिलाफ एसडीएम वित्त और कमिश्नर ने उसकी अर्जी तथा अपील खारिज की दी, जिसे रामलाल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

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हाईकोर्ट ने याची की वह दलील भी सुनी जिसमें उसने कहा कि वह स्वयं अनुसूचित जाति का है इसीलिए दूसरे अनुसूचित जाति के व्यक्ति से जमीन खरीदने के लिए पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। हालांकि याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि याची भूमिहीन है, वास्तविक कब्जा भी उसी का है, उसे कानून की जानकारी भी नहीं है, इसलिए उसे इक्विटी का लाभ दे दिया जाये। परन्तु हाईकोर्ट ने सारी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि कानून की जानकारी न होना कोई बचाव नहीं हो सकता। कानून में ऐसा कोई भी उपबंध नहीं है, जिससे यह कहा जा सके कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन खरीदने के लिए अनुसूचित जाति के क्रेता को अनुमति आवश्यक नहीं है।

यह निर्णय स्वयं प्रयागराज हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने दिया था तो इस मामले में भी अब यह बात शीशे की तरह साफ हो जाती है कि अनुसूचित जाति के किसी भी व्यक्ति की जमीन खरीदना तो दूर कब्जा भी नहीं किया जा सकता। जब एक अनुसूचित जाति का व्यक्ति किसी दूसरे अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन नहीं खरीद सकता तो फिर भला इस दलित महिला सिमिया देवी की जमीन पर कब्जा करके यह मस्जिद आखिर कैसे बना ली गयी? ये एक सवाल है, जिसे कई लोग पूंछ रहे हैं। अब जब यह चर्चा आम हुई है तो लोगों में भी इस बावत कौतूहल बढ़ गया है।

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वरिष्ठ अधिवक्ताबार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अशोक त्रिपाठी जीतू कहते हैं कि उस महिला की शिकायत के आधार पर आगे कानूनी कार्यवाही का रास्ता खुलेगा। चूंकि वह महिला ही उस जमीन पर अपना दावा कर रही है, लिहाजा उसे ही आगे आकर इस बात की शिकायत करनी होगी।

वहीं अधिवक्ता  मनोज दीक्षित का भी कहना है कि खेती वाली जमीन तो बिना जिलाधिकारी की अनुमति के क्रय नहीं की जा सकती, पर आवासीय भूमि को तो किसी भी प्रकार से न बेंचा जा सकता है और न ही अन्य कोई व्यक्ति उसे खरीद सकता है। यानि जिलाधिकारी की अनुमति अत्यंत आवश्यक है मस्जिद के लिए भी और मन्दिर के लिए भी।

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