अनागत काव्य-गोष्ठी में देश भर के कवियों का जमावड़ा 

अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होने वाली अनागत काव्य-गोष्ठियों की कड़ी में आयोजित अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी में देश भर के कवियों का जमावड़ा हुआ।

अनागत काव्य-गोष्ठी में देश भर के कवियों का जमावड़ा 

अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होने वाली अनागत काव्य-गोष्ठियों की कड़ी में आयोजित अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी में देश भर के कवियों का जमावड़ा हुआ। इंटरनेट पर चलने वाली इस काव्य-गोष्ठी में अनागत कविता आंदोलन के प्रवर्तक और अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान, लखनऊ के संस्थापक डॉ. अजय प्रसून ने अपने अनागत गीतों के माध्यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

डॉ. अजय के गीत- “शून्यता को सिर झुकाना छोड़ के जिंदगी के बंधनों को तोड़ के...आँधियों का सर झुकाएँगे कभी लेखनी का सर उठाएँगे कभी” को  श्रोताओं ने खूब सराहा। कठिन वर्तमान को जीते हुए स्वर्णिम भविष्य की कल्पना पर लिखी जाने वाली अनागत काव्य-रचनाओं की कड़ी में डॉ. अजय की हिंदी ग़ज़ल- “यातना के अंधकूपों में उतरने के लिए / कर रही दुनिया विवश बेमौत मरने के लिए मैं परीक्षित उत्तरा के गर्भ में पलता हुआ आ रहा ब्रह्मास्त्र कोई नष्ट करने के लिए...” को भी श्रोताओं ने खूब सराहा।

अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित फर्रुखाबाद के वरिष्ठ कवि और गीतकार नीरज राही दीक्षित ने अपने सस्वर गीतों के माध्यम से काव्य-गोष्ठी को रोचक बना दिया।

अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी में हरदोई से व्यंग्यकार और गजलकार आर.बी. शर्मा ‘पागल’ ने अपनी सुमधुर अनागत हिंदी गजल से समा बाँध दिया। उनकी गजल- “गुजरती जा रहीं दिलकश बहारें, तुम नहीं आए  हमें उम्मीद थी शबरी प्रतीक्षा खत्म होगी अब झरे झरबेरियों के बेर सारे तुम नहीं आए..।” बहुत रोचक रही। 
हिंदी की दशा पर आधारित उनकी रचना-  “उपेक्षित निज घर में पागल कितनी लाचार है हिंदी पीर सहे महादेवी सी नित्य निराला सी बीमार है हिंदी..” ने श्रोताओं का ध्यान खींचा। आर.बी. शर्मा ‘पागल’ की जुगाड़ की तकनीक पर आधारित व्यंग्य रचना भी खूब सराही गई।

लखनऊ की कवयित्री और गीतकार अलका अस्थाना ने काव्य-गोष्ठी में देशभक्ति के भाव भरते हुए- “मैं भारत माँ का तिरंगा हूँ, मैं शिव की निकली गंगा हूँ / जहाँ भारत मंगलगान करे, सुखदेव-भगत सिंह-राजगुरु विकसित कलियों का बखान करे संस्कृतियों का तब मान करे..।” ने सभी को देशभक्ति के भाव से ओतप्रोत कर दिया। अलका अस्थाना के गीत- “तुम कहो तो साथ चल दूँ, छोड़ दूँ सारे विधान / हाथ पकड़ो तब मेरा रख हथेली करके प्राण / घुमड़-घुमड़कर तब मेघ गरजे हृदय की सब धड़कनों से.. तुम कहो तो गीत मिल के बाँसुरी के सुर से..” को भी खूब सराहा गया।

अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी डॉ. जे.पी. मिश्र शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मुंगेली (छत्तीसगढ़) के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने की।  वरिष्ठ कवि डॉ. सिंह ने अपने अक्ष्यक्षीय काव्यपाठ में सुमधुर गीत- “जीवन में अवसरों की आवाज तुम सुनो, धुन के धनी बनो और सपने मधुर बुनो..अपने अब सपने हुए हैं, सपने कब अपने हुए../ सपने भी अपने हुए हैं, पाँव जमीं पे जब हुए...” को श्रोताओं ने खूब सराहा।

अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी का संयोजन और संचालन बाँदा के वरिष्ठ साहित्यकार और समीक्षक डॉ. राहुल मिश्र ने किया। मानद विश्वविद्यालय केंद्रीय बौद्ध विद्या संस्थान, लेह (लदाख) में हिंदी के प्राध्यापक के रूप में कार्यरत डॉ. मिश्र ने- “युगों-युगों की अकथ कहानी, शबरी मीरां गोपी दीवानी / प्रेम सदा चिर शाश्वत जग में, हम भी अमर कथा-सी हो लें... आओ सखे अंतरपट खोलें..” गीत के माध्यम से अध्यात्म के पक्ष को उतारा। डॉ. मिश्र के संचालन में चली इस काव्य-गोष्ठी में देश के विभिन्न स्थानों से  श्रोता और दर्शकगण जुड़े रहे। अंतर्जालिक पटल पर आयोजित इस काव्य –गोष्ठी का सजीव प्रसारण देश के विभिन्न भागों में देखा गया।
 

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