नरसंहार और अत्याचार के अंत का प्रतीक है हैदराबाद मुक्ति दिवस

वर्ष 2022 लगभग पूर्ण होने को है। वर्ष के अंत तक भारत में विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अथवा स्वदेश निर्मित..

नरसंहार और अत्याचार के अंत का प्रतीक है हैदराबाद मुक्ति दिवस

वर्ष 2022 लगभग पूर्ण होने को है। वर्ष के अंत तक भारत में विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अथवा स्वदेश निर्मित आईएनएस विक्रान्त को नौ सेना में शामिल करने का, भारत ने हर क्षेत्र में इतिहास रचने का कार्य किया है। इसके साथ आजादी के 75 किया है जिसने आजादी के एक वर्ष बाद ही भीषण नरसंहार देखा था। वर्ष 1948 का प्रारम्भ था और अलग राष्ट्र का स्वप्न पाले हुये हैदराबाद के निजाम मीर उसमान अली खान ने अपनी सेना रजाकार को खुले भेड़ियों की तरह हैदराबाद की गैर मुस्लिम जनसंख्या पर छोड़ दिया। कहा जाता है हैदराबाद की सेना रजाकार ने हैदराबाद के अन्दर भीषण नरसंहार मचा दिया था जिसमें एक लाख से अधिक गैर देश अपनी स्वतंत्रता का एक वर्ष मना रहा था। और भारत में हैदराबाद के विलय की पूरी कहानी समझने के लिये हैदराबाद अथवा तेलंगाना राज्य की ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनैतिक स्थिति का विश्लेषण करना आवश्यक है। 
जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय यह देश 550 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों में बटा था। जिसमें अधिकांश रियासतों ने स्वतः ही भारत के साथ अपना विलय कर लिया। अपवाद स्वरूप हैदराबाद, जूनागढ़, भोपाल और कश्मीर ने स्वयं को स्वतंत्र रखना चाहा। भोपाल और जूनागढ़ भी कुछ समय में भारत में विलय हो गये। किन्तु कश्मीर और हैदराबाद ने नरसंहारों जैसी घटना को देखा। कश्मीर में हुये नरसंहार को तो हम सभी ने जाना और पढ़ा लेकिन हैदराबाद का नरसंहार इतिहास के पन्नों में कहीं दबा रह गया जिसके निशान वहाँ की असंख्य जनसंख्या के दिलों पर और शरीर पर आज भी देखने को मिलते हैं। बात करें हैदराबाद की सामाजिक स्थिति की तो वर्ष 1948 ई० तक वहाँ की 90 प्रतिशत आबादी हिन्दू थी तथा 10 प्रतिशत आबादी में अन्य लोग थे। वर्ष 2011 की जनसंख्या जनगणना के अनुसार हैदराबाद में आज हिन्दू आबादी 64 प्रतिशत तथा मुस्लमान आबादी 30 प्रतिशत और 6 प्रतिशत में अन्य लोग हैं।
वर्ष 1947 में जब देश आजाद हो गया तब इस देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सबसे पहले इन रियासतों के विलय का कार्य किया जो उस समय की सबसे बड़ी चुनौती थी अपनी सूझ बूझ और अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण वो 550 से अधिक रियासतों का विलय करने में सफल हो सके। जिसके कारण उन्हें लौहपुरुष कहा जाता है। यदि संघर्ष की स्थिति कहीं पर सबसे अधिक थी तो वह हैदराबाद रियासत थी, जिसका नवाब मीरउस्मान अली खान था तथा इसने भारत में विलय होने से मना कर दिया था। कहा जाता है उसके पास इतना धन था जो उस समय के भारत की अर्थव्यवस्था से भी अधिक था हैदराबाद को स्वतंत्र रखने पूर्ण कर सकते थे। के लिये वह अंग्रेजों के भी संपर्क में था। उसने अपनी दौलत के सहारे ही हैदराबाद में एक विशाल सेना का निर्माण किया जिसे रजाकार मुस्लमानों को जिसमें अधिकांश हिन्दू थे, अपनी जान गवानी पड़ी थी यह भीषण नरसंहार तब हुआ था जब भारत नरसंहार क्या था हैदराबाद जो प्राचीन काल में भाग्य नगर नाम से प्रचलित था।
भारत का एक प्रमुख नगर था तथा इसको दक्षिण का द्वार भी कहा जाता है और यह अपनी आर्थिक सम्पन्नता के लिये जाना जाता था। सन 1198 से 1261 ई० के बीच यहाँ काक्तीय वंश के नरेश गणेश गणपति का शासन हुआ करता था गणेश गणपति ने यहाँ की गोलकुंडा की पहाड़ी पर एक आलीशान किले का निर्माण भी करवाया था। सन् 1482 ई० में बहमनी राज्य के एक सूबेदार सुल्तान कुलिकुतुब ने यहाँ शासन किया। उसी समय से भाग्य नगर को हैदराबाद के नाम से जाना जाने लगा हम सभी जानते हैं कि अंग्रेज इस देश से जाते-जाते भी इसका ेखण्ड-खण्ड करने का मसौदा तैयार कर गये कहा जाता था। रजाकार की स्थापना वकील थे। जिसका परिणाम पश्चिमि पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (जिसको बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है) था तथा यहाँ की देसी रियासतें जिसे अंग्रेजों ने प्रिंसली स्टेट नाम दिया। दरअसल अंग्रेज इन प्रिंसली स्टेट्स के माध्यम से भारत में अपने हस्तक्षेप को बनाये वर्ष बाद उस राज्य को न्याय दिलाने का कार्य रखना चाहते थे।
कासिम रिजवी द्वारा भारत का विरोध करने के लिये बनायी गयी थी जिसने एक समय में नरसंहार, लूट, हत्या और बलात्कार की सारी हदें पार कर दी थी। वर्ष 1948 अगस्त माह में जब भारत अपनी स्वतंत्रता की एक वर्ष मनाने की तैयारी कर रहा था उस समय वकील कासिम रिजवी के नेतृत्व में रजाकार ने व्यापक स्तर पर नरसंहार आरम्भ कर दिया। गांव के गांव मौत के घाट उतार दिये गये तथा हत्या, लूट व बलात्कार हैदराबाद के अन्दर आम बात हो गयी थी। इसके पीछे का उद्देश्य हिन्दू जनसंख्या को प्रताड़ित कर भारत के हृदय में भय उत्पन्न करना था। यह नरसंहार इतने बड़े पैमाने पर हुआ था कि इसकी खबर इंग्लैण्ड और अमेरिका के समाचार पत्रों में छपने लगी थी। अतः तत्कालीन ग्रहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत की सेना को हरी झण्डी दिखा दी तथा भारतीय सेना का नेतृत्व करने वाले मेजर जनरल चे०एन० चौधरी ने हैदराबाद को तीन ओर से घेर लिया और ऑपरेशन पोलो के माध्यम से तीन दिन के संघर्ष के बाद हैदराबाद में तिरंगा फहरा दिया गया।
इस सैन्य कार्यवाही के विरोध में निजाम संयुक्त राष्ट्र संघ तक मदद माँगने गया किन्तु किसी प्रकार की सहायता प्राप्त न होने पर उसे सरदार पटेल जी के आगे झुकना पड़ा और 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हो गया। वर्तमान ग्रहमंत्री अमित शाह  ने इसीलिये इस दिन को हैदराबाद मुक्ति दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की है। इसके माध्यम से जनसंहार में प्रताड़ित परिवारों को कुछ हद तक न्याय की अनुभूति होगी। गृहमंत्री अमित शाह जी द्वारा यह निर्णय तब लिया गया है जब देश आजादी के 75 वर्ष हर्षाेल्लास से मना रहा है अगर कहा जाये कि यह गृहमंत्री जी द्वारा देश के प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदीजी को उनके जन्म दिन 17 सितंबर को दिया गया एक उपहार है तो यह एक अच्छा संदेश और एक अच्छा उपहार होगा। 

लेखक जयकरन स्वतंत्र विचारक एवं सामाजिक
कार्यकर्ता

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