दिव्यांग विश्वविद्यालय का हुआ अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध, शिक्षा एवं शोध में उत्कृष्ट पहल
। आवश्यकता इस बात की है की दोनों संस्थाएं संस्कृति के उन पहलुओं पर काम करें जिनकी हमारी विरासत को आवश्यकता है। इसीलिए समझौते पर हस्ताक्षर किया है। विशिष्ट वक्ता डॉ अवधेश कुमार चैबे ने बताया कि विरासत से विकास और समत्व योग दो विषय होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं।

चित्रकूट। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान लखनऊ व संस्कृति विभाग उप्र द्वारा जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय के मध्य समझौता ज्ञाप के पुनीत अवसर एवं योग दिवस के पूर्व विरासत से विकास समत्व योग विषय पर परिचर्चा का आयोजन संस्थान परिसर लखनऊ में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो शिशिर कुमार पांडेय कुलपति रहे। इस अवसर पर मधुरेन्द्र कुमार पर्वत कुलसचिव, एमओयू के नोडल अधिकारी डॉ रजनीश कुमार सिंह, दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ हरिकांत मिश्र, विशिष्ट वक्ता प्रो अवधेश कुमार चैबे अध्यक्ष बौद्ध दर्शन विभाग केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय त्रिपुरा, प्रो अभय कुमार जैन उपाध्यक्ष जैन विद्या शोध संस्थान के सदस्य भिक्षु शील रतन डॉ. वेन जुलाम्पिटिये पुण्यासार महास्थविर, विद्यारतन विश्वविद्यालय श्रीलंकाय महंत संतोष दास खाकीय विमल जीय सिक्ख संगत से सरदार मंजीत सिंह, निदेशक संस्थान डॉ राकेश सिंह, अरुणेश मिश्र सहित संस्थान के छात्र-छात्राएं, अध्यापक, कर्मचारी, गणमान्य नागरिक एवं बौद्ध विद्वान मौजूद रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन, माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि के साथ हुआ। परिचर्चा के मुख्य वक्ता प्रो शिशिर कुमार पांडेय ने बताया कि संस्थान के साथ मिलकर शैक्षणिक आदान प्रदान के साथ-साथ विविध प्रकार की गतिविधियों पर ध्यान आकृष्ट करेंगे। आवश्यकता इस बात की है की दोनों संस्थाएं संस्कृति के उन पहलुओं पर काम करें जिनकी हमारी विरासत को आवश्यकता है। इसीलिए समझौते पर हस्ताक्षर किया है। विशिष्ट वक्ता डॉ अवधेश कुमार चैबे ने बताया कि विरासत से विकास और समत्व योग दो विषय होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं। विरासत से अभिप्राय संस्कृति से है। संस्कृति को छोड़कर जिस विकास की ओर बढ़े। उसमें अनेक प्रकार की विषमताएं है। उससे समाज को बाहर निकालने की जरुरत है। डॉ. वेन जुलाम्पिटिये पुण्यासार महास्थविर ने कहा कि भगवद गीता में योगरू कर्मसु कौशलम् यह भगवान बुद्ध के उपदेशो से मिलता जुलता है। कुशल और अकुशल कर्मो पर बौद्ध धर्म में व्यापक चर्चा है। अकुशल को छोड़कर कुशल कर्मों पर ध्यान देना आवश्यक है। यही बौद्ध योग है। अरुणेश मिश्र ने बताया की विपश्यना भी ध्यान की एक विधि है। जिसमे योग, प्राणायाम सब समाहित हो जाता है। योग को धीरे-धीरे आदत बना लेने से योग का लाभ अच्छे से प्राप्त होता है। संस्थान के सदस्य भिक्षु शीलरतन ने कहा कि योग एवं विपश्यना से स्वस्थ रह सकते हैं। योग हमारी विरासत है। जिसको अपनाकर आज पूरा विश्व योग के लाभ को मानता है। महंत सतोष दास खाकी ने भगवान के मत्स्य अवतार से भगवान बुद्ध तक के सभी अवतारों के गुणों को योग से जोड़ते हुए विस्तार से बताया। सरदार मंजीत सिंह ने सिक्ख गुरुओं द्वारा फैलाये गए प्रेम-योग की चर्चा की। कहा की धर्म की रक्षा के लिए सिक्ख गुरुओं के योगदान को याद करना आवश्यक है। यही आध्यात्मिक विरासत है। निदेशक संस्थान डॉ राकेश सिंह ने संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस समझौते ज्ञापन से संस्थान को बौद्ध शिक्षा संस्कृति एवं शैक्षणिक गतिविधियों के आदान-प्रदान बढ़ाने में सहायता होगी। निदेशक ने अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।
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