महराजगंज में बनेगा प्रदेश का पहला स्वतंत्र ‘लैपर्ड रेस्क्यू सेंटर’
जिले के सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के उत्तरी चौक रेंज में ‘लैपर्ड रेस्क्यू सेंटर’ बनेगा...
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महराजगंज
सोहगी बरवा वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी कार्यालय द्वारा इसके लिए 02.65 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार कर रही है।
डीपीआर को मंजूरी के लिए जल्दी ही पीसीसीएफ वाइल्ड-लाइफ सुनील कुमार पाण्डेय के कार्यालय को भेजी जाएगी। तकरीबन 05 हेक्टेयर वन्यभूमि पर निर्मित होने वाले इस लैपर्ड रेस्क्यू सेंटर में 25 डे-नाइट सेल बनाए जाएंगे।
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सोहगीबरवा वन्यजीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी पुष्प कुमार कांधला के मुताबिक ‘लैपर्ड रेस्क्यू सेंटर’ में फर्स्ट एड रूम, सिंगल इंट्री गेट, डबल इंट्री गेट, आरसीसी सड़कें, नाईट सेल, 25 डे-नाइट सेल, चौकीदार रूम का निर्माण होगा। चाहरदीवारी भी निर्मित होगी। डे-नाइट सेल में वन्य-जीवों के संरक्षण और बेहतर उपचार का इंतजाम भी होगा। लोक निर्माण विभाग प्रांतीय खण्ड के अधिशासी अभियंता की मदद से डिटेल प्रोजेक्टर रिपोर्ट बनाई जा रही है। जल्दी ही मंजूरी के लिए मुख्यालय के माध्यम से भेजा जाएगा।
यहां-यहां चल रही कवायद
मानव व वन्य जीव संघर्ष को रोकने को प्रदेश में चार नए रेस्क्यू सेंटर स्थापित किये जाने हैं। एक रेस्क्यू सेंटर गोरखपुर या महरागंज एवं तीन अन्य मेरठ, चित्रकूट, पीलीभीत में स्थापित करने की योजना बन रही है।
महराजगंज में बनने की ज्यादा है उम्मीद
गोरखपुर में निर्माणाधीन शहीद अशफाक उल्लाह खॉ प्राणि उद्यान में वन्यजीव क्वारंटीन सेंटर एवं रेस्क्यू सेंटर निर्मित किया जा रहा। इस वजह से अब सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग में ‘लैपर्ड रेस्क्यू सेंटर’ बनाए जाने की अधिक उम्मीद है। फिलहाल यहां लैपर्ड की मौजूदगी भी है।
प्रदेश का पहला 'स्वतंत्र रेस्क्यू सेंटर' होगा
यूं तो वन्य जीव रेस्क्यू सेंटर इटावा लॉयन सफारी में पहले से ही संचालित है, लेकिन महराजगंज जिले में बनने वाला यह ‘लैपर्ड रेस्क्यू सेंटर’ प्रदेश का पहला स्वतंत्र रेस्क्यू सेंटर होगा।
बता दें कि महराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर में आबादी के बीच तेंदुए के आमद की खबरें आती रहती हैं, इस वजह से यहां बनाये जाने की उम्मीद भी अधिक है। स्थिति तो ऐसी हो जाती है कि कई बार मानव एवं वन्य जीव द्वंद की घटनाओं में किसी एक को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ जाती है।
यह भी जानिए
सोहागी बरवां वन्यजीव प्रभाग में एक अनुमान के मुताबिक 47 लैपर्ड हैं। इनमें 16 नर, 19 मादा और 12 शावक मिले थे। हालांकि इस अनुमान का आंकड़ा 3 साल पूर्व हुई गणना के आधार पर है। अब यह अनुमानित संख्या 50 से भी ज्यादा बताई जा रही है। ज्ञातव्य हो कि 10 साल में 07 लैपर्ड की प्राकृतिक एवं चोट लगने से मौतें हुईं हैं। वर्ष 2015 में 24 अप्रैल से 09 दिसंबर के बीच सर्वाधिक 04 लैपर्ड मरे थे
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कहते हैं जानकर
हेरिटेज फाउंडेशन के चंदन प्रतीक एवं नरेंद्र मिश्र कहते हैं कि जंगल में बढ़ते मानव हस्तक्षेप, भोजन के लिए जानवरों एवं पानी की तलाश में आदतन तेंदुआ समेत अन्य जंगली जानवर आबादी के बीच आ रहे हैं। पिछले दिनों प्रदेश में ऐसी कई घटनाएं सामने आई, कई स्थानों पर तेंदुआ और दूसरे जानवर लोगों ने मार डाले थे। इस पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी वन विभाग के अधिकारियों को कदम उठाने के निर्देश दिए थे।
गोरखपुर प्राणि उद्यान के पशु चिकित्साधिकारी डॉ. योगेश प्रताप सिंह कहते हैं कि ऐसे वन्य जीव को ट्रेक्यूलाइज कर नियमानुसार रेस्क्यू सेंटर में रखा जाना चाहिए। सामान्य होने पर उन्हें जंगल में छोड़ा जाना चाहिए। लेकिन इन सेंटर्स के अभाव में इन्हें अलग-अलग प्राणी उद्यान में भेज दिया जाता है। कई बार मजबूरन वापस जंगल में भी छोड़ना पड़ जाता है।
(हिन्दुस्थान समाचार)
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