भारतीय न्याय संहिता दण्ड की जगह न्याय को प्राथमिकता देने वाला : सभापति

सांविधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय शाखा विधान भवन लखनऊ की ओर से भारतीय न्याय...

Mar 24, 2025 - 10:02
Mar 24, 2025 - 10:05
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भारतीय न्याय संहिता दण्ड की जगह न्याय को प्राथमिकता देने वाला : सभापति

जेआरएचआरयू में भारतीय न्याय संहिता 2023 समाविष्ट राष्ट्र निर्माण संकल्प की 

सकारात्मक अवधारणा विषय पर दो दिवसीय विचार गोष्ठी का हुआ समापन

चित्रकूट। सांविधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय शाखा विधान भवन लखनऊ की ओर से भारतीय न्याय संहिता-2023 समाविष्ट राष्ट्र निर्माण संकल्प की सकारात्मक अवधारणा’ विषय पर दो दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन जगदगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय के अष्टावक सभागार मे सभापति विधान परिषद कुंवर मानवेन्द्र सिंह की अध्यक्षता एवं रजिस्ट्रार राजेश सिंह, कुलपति दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय के प्रो शिशिर कुमार पांडेय की उपस्थिति में समापन हुआ। समापन के अवसर पर मणिशंकर  शंकर पांडेय, महेश आर्या, शिवबोध राम, वीणा पांडेय पूर्व एमएलसी, डॉ बृजेश चंद्रा, डॉ अरुण यादव संपादक, राजकुमार चोपड़ा वरिष्ठ पत्रकार, डॉ राजेश्वर प्रसाद यादव आदि ने भारतीय न्याय संहिता समाविष्ट राष्ट्र निर्माण संकल्प की सकारात्मक अवधारणा विषय पर अपने विचार व्यक्त किये। सभी विद्वानों ने कहा कि ऐसी राष्ट्र का विकास हो जो अपनी मूल्यों को पिरोए हो। कहा कि जिससे इकाई से प्रारंभ होकर हम राष्ट्र निर्माण का कार्य कर सकें। समाज के स्थापना के लिए न्याय की आवश्यकता होती है। इसको न्याय पालिका की मजबूती के साथ खड़े रहने की आवश्यकता है।

विचार गोष्ठी में भारतीय न्याय संहिता, समाविष्ट राष्ट्र निर्माण संकल्प की सकारात्मक अवधारणा’ विषय पर सभापति ने समापन भाषण में कहा कि समाविष्ट राष्ट्र निर्माण संकल्प की सकारात्मक अवधारणा देश के न्यायिक व्यवस्था के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक है। कहा कि विचारणीय विषय निःसन्देह समाज और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करने वाला है। उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय संहिता में 2024 के संशोधन भारत के न्याय और समानता को स्थापित करने में परिवर्तनकारी मील के पत्थर साबित होंगे। भारत तेजी से विकसित हो रहे कानूनी परिदृश्य की जटिलताओं को संचालित कर रहा है और इन परिवर्तनों के बीच भारतीय न्याय संहिता में इन संशोधनों का महत्व अतुलनीय है। वे न केवल विधायी कौशल को दर्शाते हैं, बल्कि मानव की गरिमा को बनाए रखने, कमजोर लोगों की रक्षा करने और ऐसे भविष्य को बढ़ावा देने के प्रति गहन प्रतिबद्धता को भी दर्शाते हैं। जहां न्याय और समानता का प्रभुत्व हो। कानूनी प्रभावों से परे 2024 के संशोधन व्यापक सामाजिक परिवर्तन को उत्प्रेरित करते हैं जो स्थापित मानदण्डों को चुनौती देते हैं और उत्तरदायित्व तथा सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय संहिता में होने वाले संशोधनों का भारत में महिलाओं और बच्चों के लिए प्रभाव गहरा और व्यापक है। लैंगिक आधारित हिंसा और शोषण करने वाले अपराधियों के खिलाफ कानूनी सुरक्षा को मजबूत करके और कड़े उपायों को लागू करके ये सुधार एक सुरक्षित और अधिक न्यायसंगत समाज की दिशा में एक निर्णायक कदम का संकेत देते हैं। संबंधित कानूनी ढांचा महिलाओं को मौन अपराधों, घरेलू हिंसा और ऑनलाइन शोषण के खिलाफ मजबूत सुरक्षा प्रदान करता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रावधानों को मजबूत करके महिलाओं के वैवाहिक सम्बन्धों के भीतर अधिकारों की पुष्टि करते हैं और दुर्व्यवहार के मामलों में उपचार के लिए मार्ग सुनिश्चित करते हैं। दण्ड के यह प्रावधान संभावित अपराधियों को हतोत्साहित करते हैं और सम्मान और सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाले सामाजिक मानदण्डों को मजबूत करते हैं। कहा कि अनिवार्य न्यूनतम दण्ड की शुरूआत ऐसे अपराधों की गंभीरता को रेखांकित करती है। कहा कि डिजिटल प्लेटफार्मों के प्रसार के साथ, संशोधनों में बच्चों के खिलाफ ऑनलाइन अपराधों को विशेष रूप से लक्षित करने वाले प्रावधान शामिल हैं। उन्होंने कहा कि साइबर बुलिंग, बाल अश्लीलता और ऑनलाइन ग्रूमिंग जैसी समस्याओं को सम्बोधित करने वाले नये अनुभागों को भारतीय न्याय संहिता में शामिल किया गया है। जिन्हें संगठित अपराध के तौर पर स्थापित किया गया है जो डिजिटल युग में नाबालिगों की सुरक्षा के लिए एक सक्रिय रूख दर्शाते हैं। ये उपाय मौजूदा कानूनों में खामियों को बंद करने और तकनीकी प्रगति का नापाक उद्देश्यों के लिए शोषण करने वाले अपराधियों के खिलाफ मजबूत कानूनी उपाय प्रदान करने का लक्ष्य रखते हैं। कहा कि भारतीय न्याय संहिता में विधायी परिवर्तनों के साथ-साथ न्याय वितरण को तेज करने और पीड़ित समर्थन प्रणालियों को बढ़ाने के उद्देश्य से सुधार किए गए हैं। उन्होंने कहा कि यौन अपराधों और बाल शोषण के मामलों को संभालने के लिए समर्पित फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना कार्यवाही को सुव्यवस्थित करने और मामलों के बैकलॉग को कम करने का लक्ष्य रखती है। दण्ड की जगह न्याय को प्राथमिकता देने वाला यह भारतीय न्याय संहिता समाज और राष्ट्र के लिए वर्तमान परिदृश्य में अति महत्वपूर्ण है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शिशिर कुमार पांडेय ने कहा कि चित्रकूट न्याय और तप की भूमि है। भारतीय न्याय संहिता 2023 की खूबियों, उपलब्धियों के लिए उन्होंने सभापति के माध्यम से प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया।

इस मौके पर विशेष सचिव एवं वित्त नियंत्रक शिवेन्द्र सिंह, विशेष सचिव प्रताप नारायण द्विवेदी, उप सचिव भुवनेश कुमार, अनु सचिव धर्मेन्द्र कुमार मिश्रा, समीक्षा अधिकारी पुनीत द्विवेदी, रजिस्टार राजेश सिंह, मणिशंकर शंकर पांडेय, महेश आर्या, शिवबोध राम, वीणा पांडेय, डॉ बृजेश चंद्रा, डॉ अरुण यादव, राजकुमार चोपड़ा, डॉ राजेश्वर प्रसाद यादव आदि मौजूद रहे।

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