आचार्य नवलेश दीक्षित ने गोस्वामी तुलसीदास के बारे में बताया गूढ़ रहस्य
भागवत कथा प्रवक्ता आचार्य नवलेश दीक्षित ने गोस्वामी तुलसीदास के बारे में बताया कि चित्रकूट में आना उनके जीवन...

चित्रकूट। भागवत कथा प्रवक्ता आचार्य नवलेश दीक्षित ने गोस्वामी तुलसीदास के बारे में बताया कि चित्रकूट में आना उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी। प्रभु श्रीराम की उन पर अनन्य कृपा थी। गोस्वामी जी को निमित्त बनाकर मानव मात्र के कल्याण के लिए कलिकाल में भक्ति मार्ग का सरल सुगम पथ प्रदर्शित करना प्रभु की ही परमलीला है। इसलिए उनकी प्रेरणा से हनुमान जी की परम कृपा रूपी अमृत प्रसाद भी तुलसीदास को यहीं चित्रकूट की पावन भूमि में प्राप्त हुआ। युगो-युगो तक तप करने वाले ऋषियों को भी जो दुर्लभ है ऐसे प्रभु राम के नित्य दर्शन भी गोस्वामी जी को चित्रकूट में प्राप्त हुए। संत तुलसी की जन्मभूमि चित्रकूट परिक्षेत्र है। यहां के समीप कालिंदी तट पर बसे राजापुर में जन्म हुआ था। जहां से वैराग्य पथ अनुगामी बनकर वे प्रयागराज, अयोध्या, काशी आदि तीर्थो का भ्रमण किया और राम भक्ति में निरंतर प्रवृत्त हो चुके तुलसीदास वापस चित्रकूट में आकर परम पावनी श्रीराम कथा को लेखनीबद्ध करना प्रारंभ किया। इसी ऊर्जा भूमि से ही उन्होने अनेकानेक साहित्य रचे। उन्होंने मंदाकिनी तट रामघाट को अपनी साधना स्थली बनाया तो श्रीराम की प्रेरणा से श्रीराम चरित मानस जैसी रचना संभव हुई। चित्रकूट में प्रभु राम 11 वर्ष 6 माह 6 दिन तक प्रवास किया था। इसलिए संत तुलसी रामकथा को इसी पुण्य धरती पर लिखा था।
कामदगिरि पर्वत की दैनिक प्रदक्षिणा, संतो की संगति, ध्यान, भजन, कीर्तन का आनंद लेते हुए महान सद्ग्रंथ स्वयमेव निर्मित होते चले गए। उनके पूज्यपाद गुरु नरहरिदास की कुटिया भी कामदगिरि तट पर ही थी। गुरु की सेवा और उनके आश्रम के निकट तुलसीदास जी द्वारा आरोपित पीपल वृक्ष आज भी विद्यमान है। चित्रकूट का आलौकिक वातावरण कण-कण में श्रीराम की स्मृति और भक्तिभाव से तुलसीदास बहुत प्रभावित थे। वे स्फटिक शिला, रामशैया, हनुमान धारा, जनक टीला, सती अनुसुइया में भी साधना करते थे।
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