क्षत्रियों से दुश्मनी भाजपा को पड़ेगी भारी ?

2017 के चुनावों में भाजपा ने पूरे बुन्देलखण्ड की सभी 19 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। उस चुनाव में भाजपा ने सभी जाति-वर्ग का..

क्षत्रियों से दुश्मनी भाजपा को पड़ेगी भारी ?

सचिन चतुर्वेदी, प्रधान सम्पादक

  • बुन्देलखण्ड से क्षत्रिय प्रत्याशी न घोषित करना क्या भाजपा की भूल है?

2017 के चुनावों में भाजपा ने पूरे बुन्देलखण्ड की सभी 19 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। उस चुनाव में भाजपा ने सभी जाति-वर्ग का ध्यान रखकर प्रत्याशी घोषित किये थे। और इसी का परिणाम था कि भाजपा की लहर में किसी भी प्रत्याशी को जीतने से कोई विरोधी दल रोक न पाया। सभी 19 की 19 सीटें बुन्देलखण्ड के मतदाताओं ने भाजपा की झोली में डाल दी थीं। पर इस बार भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग का पेंच कहां फंस रहा है? ये समझ से परे है। इस बार सभी जाति-वर्गों को भाजपा ने भागीदार बनाया है सिवाय क्षत्रियों को छोड़कर। 

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  • भाजपा के पास क्षत्रियों को रिझाने का अन्तिम मौका: हमीरपुर सीट

अभी कुछ दिन पहले तक तिंदवारी सीट और हमीरपुर सीट में जब तक प्रत्याशी घोषित नहीं किये गये थे, तब तक तिंदवारी से पूर्व विधायक दलजीत सिंह को टिकट पाने का प्रबल दावेदार समझा जा रहा था, पर भाजपा ने यहां से अपने जिलाध्यक्ष और निषाद वर्ग से आने वाले रामकेश निषाद को प्रत्याशी बनाकर सारी सम्भावनाओं पर विराम लगा दिया था। इस नाते हमीरपुर सीट पर क्षत्रियों का दावा और भी मजबूत हो गया था।

परन्तु हमीरपुर सीट अभी भी चुनावी भंवर में फंसी नजर आ रही है। जहां अन्य दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी की घोषणा कर दी है तो वहीं भाजपा अभी भी हमीरपुर सीट पर प्रत्याशी न चुन पाने के कारण क्षत्रियों का कोपभाजन बन सकती है। सूत्र तो ये भी बता रहे हैं कि भाजपा यहां से किसी नये चेहरे पर दांव लगाने जा रही है, पर भाजपा के लिए ये खुदकुशी के समान होगा। 

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आपको बता दें कि हमीरपुर सदर विधानसभा सीट मौजूदा समय में भाजपा के कब्जे में है। इचौली के निवासी युवराज सिंह जो पूर्व में भी दो बार विधायक रह चुके हैं, वो यहां से वर्तमान विधायक हैं। उन्हें यहां से 2019 में हुए उपचुनाव में जीत मिली थी। पुराने इतिहास की बात करें तो यहां 2012 में साध्वी निरंजन ज्योति ने कई दशक बाद कमल खिलाया था। वह दो साल तक ही विधायक रहीं, फिर वह 2014 के लोकसभा चुनाव में फतेहपुर क्षेत्र से सांसद चुनी गई। उनके जाने के बाद खाली हुई इस सीट पर 2014 में ही उपचुनाव कराए गए जिसमें यह सीट सपा के खाते में चली गयी थी।

लेकिन 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में दल बदलकर भाजपा में आये पूर्व सांसद अशोक सिंह चंदेल को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया तो जातीय समीकरण में अशोक सिंह चंदेल भारी मतों से विजयी हुए। पर वो भी दो साल ही विधायक रह पाये। हाईकोर्ट से एक पुराने सामूहिक हत्याकांड के मामले में उम्रकैद की सजा होने पर अशोक सिंह चंदेल को जेल जाना पड़ा। इसके बाद पुनः 2019 में इस सीट के लिए उपचुनाव कराए गए। इस उपचुनाव में भी भाजपा ने दोबारा कमल खिलाया। और यहां से युवराज सिंह चुनाव जीत कर विधायक बने।

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पर अभी तक हमीरपुर विधानसभा की सदर सीट पर भाजपा से प्रत्याशी घोषित न होने पर टिकट की दौड़ में आगे चल रहे तमाम दिग्गजों में मायूसी देखी जा रही है। कहीं इसका खामियाजा भाजपा को न भोगना पड़े, इसके लिए जरूरी है कि जल्द ही भाजपा को यहां से अपने उम्मीदवार का नाम घोषित करना ही होगा। जबकि एक दिन ही शेष रह गया है नामांकन की अंतिम तिथि के लिए।

फिलहाल सदर सीट में प्रत्याशियों के चयन को लेकर भाजपा में घमासान मचा हुआ है। हालांकि दावेदारी वो भी कर रहे हैं, जो हाल ही में सपा की साइकिल से उतरकर कमल के फूल पर बैठ चुके हैं। सपा के टिकट पर 2014 और 2019 का चुनावी चेहरा बनकर भाजपा प्रत्याशी से हारने वाले मनोज प्रजापति भाजपा का दामन थाम चुके हैं पर ऐन वक्त पर दल बदलने वाले प्रत्याशी को टिकट देने से पार्टी में भितरघात की सम्भावना बल पकड़ रही है, इसीलिए टिकट कन्फर्म होने में देरी हो रही है। 

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फिलहाल जिन नामों पर सर्वाधिक चर्चा बनी हुई है, उनमें से वर्तमान विधायक युवराज सिंह और राजीव शुक्ला के बीच कड़ा मुकाबला है। लेकिन सोशल इंजीनियरिंग की महारथी भाजपा के लिए एकमात्र यही सीट बची है जहां से वो किसी क्षत्रिय प्रत्याशी को अपना उम्मीदवार बना सकती है, नहीं तो क्षत्रियों की नाराजगी भाजपा को कहीं भारी न पड़ जाये। राजीव शुक्ला का पलड़ा कमजोर जान पड़ रहा है, क्योंकि बुन्देलखण्ड में भाजपा ने 3-3 ब्राह्मण प्रत्याशियों पर दांव लगाया है, झांसी से रवि शर्मा, महोबा से राकेश गोस्वामी तो वहीं बांदा से प्रकाश द्विवेदी पर दांव लगाकर भाजपा ने ब्राह्मण वर्ग को भरपूर रिझाने की कोशिश की है, पर अभी तक किसी भी क्षत्रिय प्रत्याशी को मैदान पर न उतारना भाजपा के लिए गले की फांस बनता जा रहा है।

वहीं जबकि एक समय टिकटार्थियों की रेस में बराबरी से चल रहे बाबूराम निषाद व कुलदीप निषाद अब दौड़ में काफी पिछड़ गये हैं, क्योंकि जब से भाजपा ने तिंदवारी विधानसभा सीट पर अपने जिलाध्यक्ष रामकेश निषाद को मैदान में उतारा है तब से इन दोनों ही निषादों का पिछड़ना तय माना जा रहा है।  पार्टी सूत्रों ने बताया कि दिल्ली में पिछले कई दिनों से संभावित प्रत्याशियों के नामों को लेकर लगातार मंथन चल रहा है। और आज ही शाम तक इस सीट पर फैसला आ सकता है।

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