बांदा अब भी केंद्रीय विद्यालय से वंचित

बुंदेलखंड के मंडलीय मुख्यालय बांदा के लाखों बच्चों का सपना एक बार फिर टूटता नजर आ रहा है...

Aug 5, 2025 - 17:55
Aug 5, 2025 - 17:57
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बांदा अब भी केंद्रीय विद्यालय से वंचित

12 साल से सिर्फ वादे, आठ एकड़ ज़मीन नहीं मिली; चित्रकूट में भूमि पूजन तक हो गया

बांदा। बुंदेलखंड के मंडलीय मुख्यालय बांदा के लाखों बच्चों का सपना एक बार फिर टूटता नजर आ रहा है। जहां पड़ोसी जनपद चित्रकूट में केंद्रीय विद्यालय भवन के लिए भूमि पूजन हो गया है, वहीं बांदा अब तक आठ एकड़ ज़मीन की व्यवस्था भी नहीं कर सका है। शिक्षा जैसे बुनियादी विषय पर प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने जिले को एक अहम राष्ट्रीय शैक्षिक संस्था से वंचित कर दिया है।

केंद्रीय विद्यालय की स्थापना की मांग बांदा में वर्ष 2011-12 से की जा रही है। इस दौरान केंद्र और प्रदेश में कई सरकारें आईं और गईं—लेकिन हालात जस के तस हैं। वर्ष 2013 में तत्कालीन डीएम द्वारा प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन केवीएस ने भूमि और भवन दोनों को मानकों के अनुरूप न पाकर अस्वीकार कर दिया।

केंद्रीय विद्यालय संगठन की शर्तें बिल्कुल स्पष्ट हैं—या तो मानक अनुरूप भवन दिया जाए या फिर मुफ्त भूमि उपलब्ध कराई जाए। बांदा प्रशासन की ओर से कई विकल्प दिए गए, लेकिन सभी खारिज कर दिए गए। कभी कृषि विश्वविद्यालय परिसर, कभी मॉडल इंटर कॉलेज... हर बार कोई न कोई तकनीकी या संरचनात्मक बाधा आड़े आई।

चित्रकूट आगे निकला, बांदा पिछड़ा
जहां बांदा में अब तक केवल फाइलें घूम रही हैं, वहीं चित्रकूट में केंद्रीय विद्यालय का भूमि पूजन अधीक्षण अभियंता, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा किया जा चुका है। तय समयानुसार विद्यालय भवन 15 महीनों में बनकर तैयार होगा।

प्रशासन की सुस्ती, जनप्रतिनिधियों की चुप्पी
पूर्व सांसद आर.के. सिंह पटेल ने भी यह मामला लोकसभा में उठाया था, लेकिन नतीजा शून्य रहा। कई बार आरटीआई के जवाब में केवीएस ने स्पष्ट किया है कि 2011 से पत्राचार हो रहा है, लेकिन ज़मीन को लेकर कोई ठोस पहल नहीं हुई।

डीआईओएस का दावा—जल्द होगा भूमि पूजन
बांदा के जिला विद्यालय निरीक्षक दिनेश कुमार का कहना है कि “कृषि विश्वविद्यालय परिसर में विद्यालय खोले जाने की संभावना पर कार्य जारी है। प्रयास किए जा रहे हैं कि शीघ्र भूमि पूजन की प्रक्रिया पूरी हो।”

आखिर सवाल ये है…

  1. जब बांदा जैसे मंडलीय मुख्यालय में भी बच्चों को केंद्रीय विद्यालय की सुविधा नहीं मिल पा रही, तो शिक्षा की समानता का दावा कितना वास्तविक है?

  2. क्या प्रशासन और जनप्रतिनिधि मिलकर आठ एकड़ ज़मीन का भी इंतजाम नहीं कर सकते?

  3. और कब तक बांदा के बच्चों को केवल वादों के सहारे शिक्षा का सपना देखना होगा?

निष्कर्ष:
देशभर में केंद्रीय विद्यालयों का विस्तार तेजी से हो रहा है। लेकिन बांदा जैसे शैक्षिक रूप से पिछड़े इलाके में 12 वर्षों में एक विद्यालय तक न खुलना शिक्षा नीति की जमीनी असफलता को उजागर करता है। अब देखना यह है कि क्या आगामी महीनों में वादे हकीकत बनेंगे, या यह मामला फिर किसी फाइल में दब जाएगा।

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