बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल की धरोहरें और एतिहासिक वस्तुएं हो रही हैं गायब
जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर स्थित धुबेला म्यूजियम में संजोकर रखी गई महाराजा छत्रसाल की यादें जिम्मेदारों की..
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जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर स्थित धुबेला म्यूजियम में संजोकर रखी गई महाराजा छत्रसाल की यादें जिम्मेदारों की अनदेखी व लापरवाही से धूमिल हो रही हैं। छत्रसाल की बेशकीमती विरासत को दीमक चट कर रही है। इतिहास गवाह है कि महाराजा छत्रसाल उन वीर यौद्धाओं में से थे जिन्होंने मुगलों को कई बार बुंदेलखंड की धरती से खदेड़कर अपनी वीरता से इतिहास में विशिष्ट पहचान बनाई है। उनके शौर्य व पराक्रम की कहानियां इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं।
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ऐसे पराक्रमी बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल की पोशाक, अस्त्र-शस्त्र सहित उनके उपयोग की कई ऐतिहासिक वस्तुओं को धुबेला म्युजियम में संजोकर रखा गया है। इस म्यूजियम का उदघाटन 12 सितंबर 1955 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने किया था। तब से तक यहां बड़ी संख्या में सैलानी महाराजा छत्रसाल की शौर्यगाथा का दीदार करने पहुंचते हैं। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इस समय इस म्यूजियम का अस्तित्व खतरे में है।
लोगों का कहना है कि धुबेला म्यूजियम के रखरखाव के लिए मिलने वाले बजट का सदुपयोग न होने से छत्रसाल की यादें धूमिल होती जा रही हैं। यहां दिखावे की निगरानी की जाती है। इस कारण महाराजा छत्रसाल की धरोहरें और उनसे जुड़ी एतिहासिक वस्तुएं बर्बादी की कगार पर हैं। यदि पर्यटन व पुरातत्व विभाग चाहे तो महाराजा छत्रसाल से जुड़ी एतिहासिक और अद्वितीय वस्तुओं को सुरक्षित करके, जर्जर हो रहे महलों, मकबरों व म्यूजियम की मरम्मत पर ध्यान देकर धुबेला को और भी आकर्षक बनाया जा सकता है।
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महाराजा छत्रसाल की यादों को उनके जमाने की एतिहासिक चीजों से सुसज्जित धुबेला म्यूजियम का अस्तित्व ही खतरे में है। उनकी यादों से जुड़ी ऐसी कई वस्तुऐं जो म्यूजियम में देखी जाती थीं, वे धीरे-धीरे गायब हो गई हैं। म्यूजियम के कई कमरों के फर्श उधड़ने लगे हैं। दीवारों में दरारों से पानी रिसकर जमीन पर आता है। नमी के कारण दीमक का प्रकोप बढ़ने लगा है।
कई ऐतिहासिक पोशाकों व अन्य सामानों को दीमक चट कर रही है। यहां लगे सीसीटीवी कैमरे शोपीस बने हैं। जिससे यहां की निगरागी पर ब्लैकस्पाट बना रहता है। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग की है, मगर ये विभाग इस धरोहर को नहीं सहेज पा रहे हैं। शासन द्वारा हर वर्ष धुबेला म्यूजियम की देखरेख के लिए विशेष बजट दिया जाता है। मगर इस बजट का समुचित उपयोग न होने से विरासत के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
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