खुली गाड़ी में ढोया जा रहा Bio-Medical Waste, प्रशासन को नहीं आ रही बदबू

अस्पतालों से रोजाना निकलने वाले बायोमेडिकल कचरा के निस्तारण के उचित प्रबंध न होने से जिला अस्पताल के बाहर खुले में बायो-वेस्ट जलाया जा रहा है...


अस्पतालों से रोजाना निकलने वाले बायोमेडिकल कचरा के निस्तारण के उचित प्रबंध न होने से जिला अस्पताल के बाहर खुले में बायो-वेस्ट जलाया जा रहा है। जिसके धुएं से अस्पताल में भर्ती मरीज और नवजात शिशुओं की सेहत को खतरा हो गया है।

सीबीडब्ल्यूटीएफ झांसी की कंपनी है जो बायोमेडिकल कचरा के निस्तारण का प्लांट झांसी में लगाये हुए है। लेकिन यह कम्पनी जनपद बाँदा के सरकारी व निजी अस्पतालों का कचरा न उठाकर केवल कागजी खानापूर्ति कर हर माह लाखों-करोड़ों रूपये के बंदरबांट में लिप्त है। जानकार अधिकारी व डाॅक्टर भी खामोशी से देखते हुए इसके इस खेल में शरीक होते दिखाई दे रहे हैं।

इस सनसनीखेज मामले का खुलासा तब हुआ, जब जिलेभर का बायोमेडिकल कचरा एकत्र करने के लिए गाड़ी (यूपी 90 एटी 1391) निकली। मामला उत्तर प्रदेश जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबन्धन नियम 2016 (बीएमडब्ल्यू नियम 2016) के प्रावधानों का घोर उल्लंघन का है। नियम के मुताबिक, बायो-वेस्ट एकत्र करने के लिए बंद गाड़ी प्रयोग में लायी जाती है लेकिन ये गाड़ी ऊपर से पूरी खुली थी। लोगों को मूर्ख बनाने के इस गाड़ी में पीछे दरवाजे लगे थे, जिनमें ताला पड़ा था, ताकि समझ में आये कि बंद गाड़ी है।

एक नियम ये भी है कि अस्पताल चाहे निजी हो या सरकारी, सभी को अपने यहां का बायोमेडिकल कचरा पूरी सावधानी के साथ एकत्र करके जिस कम्पनी को इसके निस्तारण का ठेका दिया गया है, उसके सुपुर्द करना होता है। फिर उस कम्पनी की एक बंद गाड़ी में बने अलग-अलग सेक्शन (4 भिन्न रंगों के) में उस कचरे को कैटेगरी के अनुसार रखते हुए प्लांट तक ले जाती है। जहां उस हानिकारक कचरे का निस्तारण किया जाता है। ये अस्पतालों की जिम्मेदारी है कि अपने यहां का पूरा कचरा उस कम्पनी के प्रतिनिधि को दे, जो एकत्र करने आया है। पर यहां अस्पतालों ने भी लापरवाही दिखाई और कम्पनी तो लापरवाह है ही।

गाड़ी के चालक अमित व जीतू से जब हमने वास्तविकता पूंछी तो उसने बताया कि दो दिन में एक बार गाड़ी झांसी के लिए जाती है। और सुबह से 6 नर्सिंग होमध्अस्पताल जाकर उसने बायोमेडिकल कचरा एकत्र किया है। पर इस गाड़ी में देखने पर मात्र 2-3 छोटे बैग पड़े थे, जिनका वनज अधिक से अधिक 2 से 3 किलो ही होगा। ऐसे में समझा जा सकता है कि छः नर्सिंग होम का दो दिन का कचरा क्या 2-3 किलो ही निकलता है? यदि ये लोग इस हानिकारक बायोमेडिकल कचरे को वहां से झांसी स्थित प्लांट में निस्तारण के लिए नहीं ले जा रहे हैं तो ऐसी घोर लापरवाही व भ्रष्टाचारपूर्ण रवैये के कारण यहां के लोगों के स्वास्थ्य के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है, ये सोचने की बात है।

आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि छः नर्सिंग होम का दो दिन का बायोमेडिकल कचरा कितना होना चाहिये था, क्योंकि सिरिंज, इंजेक्शन, रूई, पट्टी, प्लास्टिक बोतलें, डिलीवरी से निकला प्लेसेंटा (जोकि एक दिन में ही काफी बदबूदार हो जाता है), खून की थैली, पेट्री डिश, ट्यूबिंग, कैथेटर, कांच की बोतलें, शीशियां, धारदार धातु वाला कचरा, खाली या एक्सपायर्ड कीटाणुनाशक पदार्थ की बोतलें, सुई, ब्लेड, खून, मवाद, शारीरिक व रासायनिक कचरा इत्यादि ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं, जिनको खुले में ले जाने पर सम्पर्क में आये लोग गम्भीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

क्या ये सब मात्र 2-3 किलो ही था? जब बुन्देलखण्ड न्यूज संवाददाता ने इनकी लाॅग-बुक देखी तो उसमें मनमाने ढंग से कचरा दर्ज पाया गया। गाड़ी चालक ने यह भी बताया कि हम हर प्राइवेट क्लीनिक, अस्पताल व पैथोलाॅजी जाते हैं और जहां कचरा नहीं मिलता तो वहां एक-दो किलो दर्ज कर लाॅग-बुक में डाॅक्टर से हस्ताक्षर करा लेते हैं।

एमपीसीसी कम्पनी के झांसी स्थित कार्यालय में जब हमने फोन किया तो हमारी बात असिस्टेंट मैनेजर हर्ष चक्रवर्ती से हुई, जिन्होंने गाड़ी के खुला होने पर अनभिज्ञता जताई और इस बात को साबित करने की नाकाम कोशिश की कि गाड़ी का पूरा वीडियो देखने के बाद ही गाड़ी इस कार्य में लगायी गयी थी। परन्तु जब हमने उन्हें ये बताया कि हमारे पास इस बात का सबूत वीडियो में है, तो जाकर उन्होंने माना कि ऐसा हो सकता है। कल से ही इस बारे में ठोस कार्यवाही करने की बात की। लेकिन अभी तक जो घोर लापरवाही चल रही थी, उस बात से पल्ला झाड़ते हुए आगे से ऐसी लापरवाही न होने की ही बात करने लगे।

मतलब जब पकड़ लिया तो आगे से गलती नहीं होगी, ये बात करना क्या पुराने अपराधों, भ्रष्टाचार या लापरवाही पर पर्दा डाल सकता है क्या? सीधे-सीधे बात करें तो लोगों की आंखों में धूल झोंककर व सिस्टम का फायदा उठाकर ऐसे लोग अपना उल्लू सीधा करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी आखिर धृतराष्ट्र क्यों बना हुआ है?

जानलेवा व खुलेआम कानून की उल्लंघन
बायो-वेस्ट को संबंधित एजेंसी के सुपुर्द करने के बजाय खुले में फेंकने व जलाने से जहां आम आदमी को संक्रमण का खतरा रहता है वहीं, नशेड़ी प्रवृति के युवक इस कचरे से सीरिंज उठाकर नशे के लिए इस्तेमाल करते हैं। जिससे एड्स व अन्य जानलेवा रोगों के संक्रमण का खतरा रहता है। अस्पतालों, क्लीनिक, लैब, सर्जरी, चिकित्सा अनुसंधानों से निकलने वाला बायो-वेस्ट जानलेवा साबित हो सकता है। इस कचरे में संक्रमित खून की पट्टियां, इंजेक्शन, दवाई व आॅपरेशन के द्वारा चीर-फाड़ से निकला अपशिष्ट आदि होता है। इस वेस्ट को सावधानी पूर्वक ठिकाने लगाना होता है।

यह अस्पताल में संक्रमण का कारण बन सकता है। इस वेस्ट को बायो मेडिकल इंजीनियर की देखरेख में भी निष्पादित किया जाना चाहिए। दूसरी और ऐसी लापरवाही कानून की भी उल्लंघना है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत बायोमेडिकल कचरा के प्रबंधन, निस्तारण व परिवहन में लापरवाही एक बड़ा जुर्म है, जिसके लिए भिन्न-भिन्न धाराओं में सजा का भी प्राविधान है।

रिकाॅर्ड रखना जरूरी, जुर्माने का भी प्रावधान
अस्पताल को कानून के तहत बायो-मेडिकल वेस्ट का प्रबंधन करना होता है। इस प्रकार के वेस्ट का बाकायदा एक रजिस्टर मेंटेन करना होता है। अगर वेस्ट का रिकाॅर्ड सही ढंग से नहीं रखा जाता है अथवा जलाया जाता है, तो इसको लेकर सीधे अस्पताल प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है।

अस्पताल हो या कचरा ले जाने वाले वाहन, इन सभी में चार प्रकार के बैग या सेक्षन में कचरा एकत्र करने की गाइडलाइन षासन द्वारा स्वीकृत की गयी है।

चार रंग के बैग अनिवार्य
पीला बैग - गीला कूड़ा जिसमें रक्त से सनी हुई काॅटन, पीओपी, रूई, गंदगी, मानवीय उत्तक, अंग और शारीरिक भाग जीवाणु विज्ञान और बायोटेक्नोलोजी वेस्ट डाले जाते हैं।

नीला बैग - इसमें तेजधार ब्लेड, सर्जिकल ब्लेड, कांच, सूईयां आदि को एयर प्रूफ बोतल में डालकर निष्पादित किया जाना जरूरी है।
लाल बैग - इस बैग एवं डस्टबिन में प्लास्टिक व रबड़ का कचरा डालना चाहिए। सभी प्लास्टिक की बोतलों को काटकर डालना अनिवार्य है। इनमें नाक व पेट की नली, कैथिटर, मूत्र नली व बैग, सक्शन नली, शरीर से तरल निकालने में प्रयुक्त नली, आईवी सैट, ब्लड सैट व ग्लूकोज बोतल शामिल हैं।

काला बैग - इस बैग में कागज व गत्ता आदि को डाला जाना चाहिए। आउट डेटिड मेडिसिन आदि भी इस बैग में गिराई जा सकती हैं। बचा हुआ खाना व फलों के छिलके सहित इंफेक्शन रहित वस्तुएं डाली जा सकती हैं।

बायोमेडिकल कचरा और पर्यावरणीय संकट
बायोमेडिकल कचरा हमारे-आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते हैं। इससे न केवल और बीमारियाँ फैलती हैं बल्कि जल, थल और वायु सभी दूषित होते हैं। ये कचरा भले ही एक अस्पताल के लिये मामूली कचरा हो, लेकिन भारत सरकार व मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया के अनुसार यह मौत का सामान है। ऐसे कचरे से इंफेक्शन, एचआईवी, महामारी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ होने का भी डर बना रहता है।

क्या कहते हैं जिम्मेदार
इस संबंध में जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने बुन्देलखण्ड न्यूज संवाददाता से बताया कि हमारे यहां बायोमेडिकल कचरा अस्पताल के पीछे भंडार कक्ष में रखा जाता है और एकत्र किए गए इस कचरे को गाड़ी ले जाती है। उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज किया कि बोतल व सिरिंज कबाड़ की दुकान में बेची जाती है। जब उनसे कहा गया कि बायोमेडिकल कचरा खुली गाड़ी में कैसे ले जाया जा सकता है, तो इस पर उन्होंने चुप्पी साध ली।

वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड झांसी के रीजनल आॅफिसर निरंजन शर्मा ने बताया कि बायोमेडिकल कचरा झांसी के प्लांट में नष्ट किया जाता है। जब उनसे कहा गया कि यह जानलेवा कचरा खुली गाड़ी में कैसे जमा किया जाता है तो इस सवाल पर उन्हांेने भी टालमटोल करते हुए सिर्फ इतना कहा कि इसका जवाब बांदा रीजनल आॅफिसर दे सकते हैं। जब प्रदूषण बोर्ड बांदा के रीजनल आॅफिसर से बात करने की कोशिश की गई तो उनका मोबाइल स्विच आॅफ मिला।

कुल मिलाकर बात करें तो कम्पनी व अस्पतालों की सांठगांठ से हर माह करोड़ों रूप्ये का चूना तो लगाया ही जा रहा है साथ ही लोगों की जान के साथ जो खिलवाड़ किया जा रहा है, वह कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। आष्चर्य यह कि प्रषासन की नाक तले यह सब हो रहा है और प्रषासन सब जानते हुए भी मौन बनने का नाटक कर रहा है।?

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