लोस चुनाव : पहले आम चुनाव में उप्र में थी 17 डबल सीटें, एक सीट से चुने जाते थे दो सांसद
आजादी के बाद देश में हुए पहले चुनाव में कई सीटें ऐसी थी, जिन पर दो सांसद चुने जाते थे...
 
                                लखनऊ। आजादी के बाद देश में हुए पहले चुनाव में कई सीटें ऐसी थी, जिन पर दो सांसद चुने जाते थे। इन्हें डबल सीट कहा था। इन दोनों सीटों में से एक सीट सामान्य और दूसरी आरक्षित यानी एससी-एसटी वर्ग के लिए हुआ करती थी। उल्लेखनीय है, ऐसी व्यवस्था इसलिए लागू की गई थी, ताकि आरक्षित वर्ग को भी प्रतिनिधित्व मिल सके। हालांकि विरोध के बाद साल 1962 में इस व्यवस्था को खत्म कर दिया गया।
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देश में पहले आम चुनाव 1952 में कराए गए। चुनाव के बाद 17 अप्रैल 1952 को पहली लोकसभा का गठन किया गया और जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। इस चुनाव में कुल लोकसभा सीटों की संख्या 489 थी, जिसमें कांग्रेस ने 364 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में 89 लोकसभा सीट ऐसी थीं, जिन पर दो-दो सांसद जीते थे। यानी एक संसदीय सीट पर दो सांसद। वर्ष 1957 के आम चुनाव में 90 सीटों पर दो-दो उम्मीदवार देशभर से चुनाव जीते थे। पहले आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में कुल 17 डबल सीटें थी।
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क्यों होते थे ऐसे चुनाव?
दरअसल, 1952 में आरक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक सीट पर दो-दो सांसदों का फॉर्मूला अपनाया गया। दिलचस्प बात यह है कि इन सीटों पर जनता को भी दो-दो वोट डालने का अधिकार दिया जाता था। हालांकि कोई भी मतदाता अपनी दोनों वोट एक ही उम्मीदवार को नहीं दे सकता था। इस बाद वोटों गिनती के दौरान सामान्य वर्ग के जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते थे,उसे विजयी घोषित कर दिया जाता था। इसी तरह आरक्षित वर्ग के जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिलते थे, उसे सांसद चुन लिया जाता था।
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उप्र में पहले आम चुनाव में डबल सीटें
1952 के पहले आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में कुल सीटें 86 थी। इनमें 52 सिंगल सीटें और 17 डबल सीटें थी। सिंगल सीट से एक और डबल सीट से दो प्रत्याशी चुने जाते थे। उप्र में सहारनपुर, बुलंदशहर, अलीगढ़, जालौन, बांदा, उन्नाव, हरदोई, शाहजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ, प्रतापगढ़, फैजाबाद, जौनपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर, बस्ती और आजमगढ़ डबल सीट थीं। सभी डबल सीटें कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीती थी।
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दूसरे आम चुनाव में बढ़ गई डबल सीट
दूसरे आम चुनाव में उप्र में कुल सीटें 86 थी। लेकिन इस बार सिंगल सीटें 52 से घटकर 50 हो गई। वहीं डबल सीटें 17 की जगह 18 हो गई। यानी सिंगल सीट से 50 और डबल सीट से 36 सांसद चुने गए। वहीं इस चुनाव में डबल सीटों के क्षेत्र भी बदल गया। उप्र में सहारनपुर, बुलंदशहर, शाहजहांपुर, अलीगढ़, हमीरपुर, इटावा, फूलपुर, मिर्जापुर, जौनपुर, आजमगढ़, गोरखपुर, बस्ती, बाराबंकी, फैजाबाद, रायबरेली, उन्नाव, हरदोई और सीतापुर डबल सीट थी।
जब तीसरे नंबर पर रहने वाला प्रत्याशी बना सांसद
डबल सीट की व्यवस्था के दौरान ऐसा भी हुआ जब जब तीसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवार को विधायक चुना गया। दरअसल जब उप्र की आजमगढ़ सीट दूसरे आम चुनाव में चुनाव हुआ तो तीसरे नबंर पर रहने वाले कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ प्रसाद को सांसद चुना गया। पहले नंबर पर कालिका सिंह को 138247 और दूसरे नंबर पर रहने वाले प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल को 119478 वोट मिले। जबकि तीसरे नंबर पर रहने वाले विश्वनाथ प्रसाद को 103239 वोट मिले। पहले नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी कालिका सिंह सामान्य वर्ग से आते थे, इसलिए उनको सांसद चुना गया। दूसरे नंबर पर रहने वाले प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल भी सामान्य वर्ग से थे। चूंकि एससी-एसटी वर्ग का भी सांसद चुनना था तो विश्वनाथ प्रसाद को सांसद चुना गया। आजमगढ़ की तरह रायबरेली, हरदोई और हमीरपुर की डबल सीट पर भी तीसरे नंबर पर रहे प्रत्याशी सांसद चुने गए। देशभर में इस व्यवस्था का खूब विरोध हुआ। यह व्यवस्था साल 1962 के चुनाव में खत्म कर दी गई।
हिन्दुस्थान समाचार
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