हिमांचल प्रदेश की स्ट्राबेरी से बदलेगी बुन्देली किसानों की तकदीर

दलहन-तिलहन के लिए बेहतर बुंदेली माटी मोटे अनाजों की पैदावार के लिए भी प्रचलित है..

हिमांचल प्रदेश की स्ट्राबेरी से बदलेगी बुन्देली किसानों की तकदीर
स्ट्राबेरी खेती (फाइल फोटो)

दलहन-तिलहन के लिए बेहतर बुंदेली माटी मोटे अनाजों की पैदावार के लिए भी प्रचलित है। बदलते समय के साथ खेती का तरीका भी काफी बदल चुका है।

बुंदेलखंड में पानी संकट को देखते हुए कम सिचाई वाली फसलों पर जोर है। इसी के बीच ठंडे क्षेत्रों में पैदा होने वाली स्ट्राबेरी को यहां स्थान देने की तैयारी शुरू हो चुकी है।

इसमें अब एक नया अध्याय स्ट्राबेरी का जुड़ने जा रहा है। कृषि विश्वविद्यालय ने इसकी खेती की शुरुआत कर दी है।सूखे बुंदेलखंड में यूं तो किसानों की आय दोगुनी करने को सरकार कई स्तर पर प्रयास कर रही है।

इसमें अब एक नया अध्याय स्ट्राबेरी का जुड़ने जा रहा है।  हालांकि बुंदेलखंड इसकी खेती से अछूता रहा है। लेकिन यहां कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इसकी शुरुआत कर दी है।

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फिलहाल एक बीघे से भी कम रकबे में इसकी खेती की गई है। हिमांचल प्रदेश से इसके रनर (पौध) मंगाकर इन्हें लगाया गया है। हालांकि अभी बुंदेलखंड के किसानों के बीच खेती के रूप में यह नहीं पहुंची। लेकिन विश्वविद्यालय का कहना है।

कि उनके यहां इसकी खेती की शुरुआत कर दी गई है। जल्द ही इसे बुंदेली किसानी में शामिल कराया जाएगा। इस बारे में कृषि विश्वविद्यालय के फल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.एके श्रीवास्तव ने बताया कि यह 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान में ग्रोथ करती है।

strawberry ki kheti

जिसे सितंबर से अक्टूबर के मध्य लगाया जाता है। करीब तीन माह में यह तैयार हो जाती है। स्ट्राबेरी उत्पादन के मामले में काफी बेहतर है।

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डॉ. श्रीवास्तव बताते हैं कि पहाड़ी इलाकों में इसकी न्यूनतम पैदावार प्रति हेक्टेअर पांच से सात टन है। बढिया से पैदावार की जाए तो उत्पादकता दस टन प्रति हेक्टेअर तक ली जा सकती है। बुंदेलखंड में भी यही औसत उत्पादन निकलने की उम्मीद है। बुंदेलखंड में यूं तो ज्यादातर गर्मी होती है।

सर्दी के मौसम में ठंड तेज होती है इसलिए स्ट्राबेरी का उत्पादन बेहतर साबित हो सकता है। कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा.यूएस गौतम,बुंदेलखंड में स्ट्राबेरी की संभावनाओं को देखते हुए कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा शोध कार्य किए जा रहे हैं।

इन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है। शोध के माध्यम से यहां की जलवायु के हिसाब से उपयुक्त प्रजाति को चिन्हित करेंगे। छोटे से लेकर बड़े पैमाने पर स्ट्राबेरी की खेती का हर संभव प्रयास होगा।

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