विदेशों में मोरिंगा की मांग बढ़ी, बुंदेली किसानों को सुनहरा अवसर, जानिये औषधि गुण और फायदे
धान गेहूं जैसी परंपरागत फसलों में बढ़ती लागत और कम आमदनी के चलते बुंदेलखंड में खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है ऐसे में अगर कम पानी..
धान गेहूं जैसी परंपरागत फसलों में बढ़ती लागत और कम आमदनी के चलते बुंदेलखंड में खेती से किसानों का मोहभंग हो रहा है ऐसे में अगर कम पानी में होने वाली मोरिंगा की खेती किसान करें तो मात्र 10 महीने में एक लाख रुपए कमा सकते हैं। इस फसल के पत्तों की मांग विदेशों में हो रही है।
भारत में पहली हरित क्रांति 70 के दशक में आई जहां खाद्यान्न की कमी को देखते हुए मेक्सिको से गेहूं आयात किया गया और उसके बाद हरित क्रांति हुई पंजाब और पश्चिमी यूपी ने इस अवसर का लाभ उठाया और गेहूं के सबसे बड़े उत्पादक बन गए।
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अब देश गेहूं में आत्मनिर्भर बन गया लेकिन इधर कुछ वर्षों से गेहूं को बदनाम कर दिया गया क्योंकि गेहूं में ग्लूटेन और अन्य विषैले तत्व बढ़ गए जो बीमारी को बढ़ा रहे हैं इसलिए खाद्य सूची से गेहूं बाहर रखा जा रहा है । स्वभाविक है कि अब दूसरी हरित क्रांति का समय आ गया है।
वर्तमान में कोविड-19 के कारण किन्नू ,संतरे मीठे नींबू मोरिंगा, ड्रैगन कस्टर्ड, उष्णकटिबंधीय फल, काले चावल और बाजरा जैसी फसलों की मांग बढ़ रही है इसलिए बुंदेलखंड के किसानों को मोरिंगा जैसी फसलों की रेस में शामिल होना चाहिए जो कम पानी में हो जाता है और कम लागत में आमदनी ज्यादा देता है।प्रदेश सरकार भी प्रदेश में सहजन की खेती को बढ़ावा दे रही है।
सहजन की बाग एक बार लगाने पर 5-8 साल तक फसल मिलती है। सहजन की पत्तियां और फलियों के साथ बीज की भी काफी मांग रहती है। सहजन की खेती अभी तक आंध्रप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में ज्यादा होती थी, लेकिन देश में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ने के साथ सरकार कई योजनाओं के जरिए इन्हें यूपी, झारखंड जैसे राज्यों में भी बढावा दिया जा रहा है।
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झारखंड में झारखंड स्टेट लाइवलीवुड मिशन के तहत समूह से जुड़ी महिलाओं को सहजन के पौधे दिए गए हैं तो उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिशा-निर्देशन में बुंदेलखंड के जनपद बांदा में समूह से जुड़ी महिलाओं को 10 हजार सहजन के पौधे दिए गए हैं।
यूरोपीय बाजार में मोरिंगा के पत्तों के पाउडर की मांग
कोविड के बाद की दुनिया में यूरोपीय बाजार में मोरिंगा के पत्तों के पाउडर की बड़ी मांग है और दुनिया की 80ः मांग भारतीय किसानो से पूरी होती है। इस फसल की सुंदरता यह है कि 4 महीने के बाद (किसान बोने के बाद) किसान मोरिंगा के पत्तों को ले सकते हैं और फिर प्रत्येक दो महीनों के बाद पत्तियों को तोडा जाता है। फिर उन पत्तियों को छाया में सुखाया जाता है, फिर आप बेच सकते हैं।
सहजन वानस्पतिक नाम मोरिंगा
सहजन वानस्पतिक नाम "मोरिंगा ओलिफेरा" एक बहु उपयोगी पेड़ है। इसे हिन्दी में सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि नामों से भी जाना जाता है। इस पेड़ के विभिन्न भाग अनेकानेक पोषक तत्वों से भरपूर पाये गये हैं इसलिये इसके विभिन्न भागों का विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है।
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ब्लड प्रेशर व कैंसर की बीमारी में रामबाण
सहजन की पत्तियां और इसमें अदरक डालकर बनाई गई चाय ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करती है।सहजन में पॉलीफेनोल्स अधिक मात्रा में पाया जाता है जिसमें कैंसर से लड़ने के गुण होते हैं। इसलिए इसका सेवन करने से आप कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से कोसों दूर रहेंगे। सहजन के लगभग सभी अंग (पत्ती, फूल, फल, बीज, डाली, छाल, जड़ें, बीज से प्राप्त तेल आदि) खाये जाते हैं।
एशिया और अफ्रीका में कच्ची फलियाँ खायी जाती हैं
कम्बोडिया, फिलीपाइन्स, दक्षिणी भारत, श्री लंका और अफ्रीका में पत्तियाँ खायी जाती हैं। विश्व के कुछ भागों में नयी फलियाँ खाने की परम्परा हैख्2, जबकि दूसरे भागों में पत्तियाँ अधिक पसन्द की जातीं हैं। इसके फूलों को पकाकर खाया जाता है और इनका स्वाद खुम्भी (मशरूम) जैसा बताया जाता है। अनेक देशों में इसकी छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारम्परिक दवाएँ बनायी जाती है। जमैका में इसके रस से नीली डाई (रंजक) के रूप में उपयोग किया जाता है।
दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है। मोरिंगा या सहजन आदि नामों से जाना जाने वाला सहजन औषधीय गुणों से भरपूर है। इस में 300 से अधिक रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 90 तरह के मल्टीविटामिन्स, 45 तरह के एंटी आक्सीडेंट गुण, 35 तरह के दर्द निवारक गुण और 17 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं।
7 माह में पौधे में आ जाती हैं फलिया
बांदा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ अनिकेत ने बताया कि सहजन की खेती के लिए विश्वविद्यालय में प्रयोग किया जा रहा है।यह पौधा मात्र 40 -42 दिन यानी 7 माह में तैयार हो जाता है और 7 माह में ही पौधे में फलियां आने लगती हैं।यह फलियां सब्जी में इस्तेमाल होती हैं और हर मौसम मैं फलिया 30 रुपए किलो तक बिकती हैं ।लोग इसकी पत्तियों की सब्जी भी बनाते हैं और इसका पाउडर हर मेडिसिन में इस्तेमाल किया जाता है ।
दक्षिण भारत में हर सब्जी में सहजन की फलियों का इस्तेमाल किया जाता है।आमतौर पर यह हरे रंग का होता है लेकिन कुछ पौधों में लाल रंग की फलियां भी पाई जाती है उन्होंने बताया कि इस पौधे पत्तियों से लेकर हर चीज इस्तेमाल की जाती है।
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यूरोप में मोरिंगा कैप्सूल की मांग
राजकोट (गुजरात) के विशाल छाबड़ा बताते हैं कि इस पौधे से मल्टीविटामिन सुपर फूड कैप्सूल बनते हैं यह कैप्सूल बीज सुखाकर पाउडर बनाकर बनाया जाता है।कैप्सूल 250 व 500 एमजी के होते हैं।उन्होंने बताया कि इस पौधे का पाउडर लेने के लिए सप्लायर्स भारत में आते हैं जिन्हें तैयार किया गया पाउडर दिया जा सकता है।
बुंदेलियों को प्रोत्साहित किया जाएगा
बांदा जनपद के निवासी एडीसी भोपाल (आईपीएस) राजा बाबू सिंह का कहना है कि इस पौधे की उपयोगिता को देखते हुए बुंदेलखंड के किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा इसके लिए किसानों को निशुल्क पौधे मुहैया कराए जाएंगे ।
उन्होंने कहा कि इसी तरह कम पानी में होने वाले उपयोगी पौधों के बारे में किसानों को अवगत कराया जा रहा है और प्रयोग के तौर पर ऐसे उपयोगी पौधों को (पचनेही) बांदा स्थित फार्म हाउस में लगाया जा रहा है ताकि किसान इन पदों का प्रयोग अपने खेतों में कर सकें।
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