मौन साधकों ने 48 घंटे के व्रत के लिए जंगल में डेरा डालकर खेली लट्ठमार दिवाली

हमीरपुर समेत बुन्देलखंड क्षेत्र में दीपावली त्योहार में दीये जलने के बाद परेवा को वृन्दावन की तर्ज पर श्रीकृष्ण की याद...

मौन साधकों ने 48 घंटे के व्रत के लिए जंगल में डेरा डालकर खेली लट्ठमार दिवाली

हमीरपुर समेत बुन्देलखंड क्षेत्र में दीपावली त्योहार में दीये जलने के बाद परेवा को वृन्दावन की तर्ज पर श्रीकृष्ण की याद में भक्तों की मौन साधना करने की परम्परा सैकड़ों साल पुरानी है जो उसी आस्था और विश्वास के साथ आज भी जारी है।

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बुन्देलखंड के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, उरई, झांसी और ललितपुर के अलावा एमपी से लगे तमाम इलाकों में मौन पंख व दिवाली नृत्य के साथ गांव-गांव में यह विशेष अनुष्ठान श्रीकृष्ण के दीवाने करते हैं। बुजुर्गों के मुताबिक यह अनुष्ठान सहज नहीं है। इसलिए लोगों को कई धार्मिक, सामाजिक नियमों से बंधना होता है। जो भी भक्त मौन साधना करते हैं उसे लगातार 14 सालों तक मास-मदिरा से दूर रहना होता है। यदि कोई नियम तोड़ता है तो अनुष्ठान का पुण्य व्यर्थ चला जाता है।

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मौन साधना के एक दिन पूर्व अमावस्या को किसी नदी सरोवर में समूह के साथ स्नान, दान करना भी जरूरी होता है। बिना मोर पंख के साधना करने की मनाही भी रहती है। श्रीकृष्ण के दीवानों को मौन साधना के दिन नये वस्त्र पहनने पड़ते हैं। गायों के एक दिन के आहार के लिए दान भी देना होता है। पूरे दिन मौन व्रत रखना होता है।

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बताया कि मौन साधकों को इच्छानुसार सभी धार्मिक स्थलों एवं समाज के लोगों को प्रसाद वितरित करना पड़ता है। बुधवार को मौन साधकों ने गांवों के बाहर जंगल में पहले गाय के बछड़े को कंधे में उठाकर मंदिर ले गए, फिर पूजा करने के बाद उसे ज्वार के खेत में छोड़ा। इसके बाद मौन साधकों ने वृन्दावन की तर्ज पर लट्ठमार दिवाली खेली, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ भी उमड़ी।

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  • भूल से मौन व्रत तोड़ने पर पिलाया जाता है गोमूत्र

मनीराम, अभिषेक यादव, विनय यादव, दीपक यादव समेत अन्य तमाम मौन साधकों ने बताया कि बुन्देलखंड में दीपावली पर्व के दौरान मौन चराने की परम्परा सदियों पुरानी है। इस परम्परा का गांव-गांव निर्वहन किया जाता है। इस कठिन व्रत का शुभारंभ कर इस बार मौन साधकों ने 48 घंटे का व्रत रखा है। मौन साधक जंगलों में यह कठिन व्रत रखते हैं। व्रत के दौरान जूते-चप्पल के बिना उसे जंगलों से वापस लौटकर दोबारा गौ पूजा कर मौन तोड़ना होता है। यदि इस बीच कोई भूल वश मौन तोड़ देता है तो अन्य मौन साधक मोर पंखों से उसकी हल्की पिटाई करते हैं। साथ ही उसे गोमूत्र ग्रहण करने को मजबूर किया जाता है।

  • 14 सालों तक मौन साधक करते हैं कठिन व्रत

विनीत, उमाकांत व संस्कृत विद्यालय के पूर्व प्राचार्य बलदेव प्रसाद शास्त्री ने बताया कि इस बार मौन साधकों ने 48 घंटे तक कठिन व्रत रखा है। बताया कि मौन साधक अपने साथ मोर पंख का एक विशाल संग्रह लेकर चलते हैं। यह कठिन व्रत 14 सालों तक करने की परम्परा है। व्रत के अंत में मथुरा जाकर कालिंदी (यमुना नदी) में स्नान के साथ गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करके इस व्रत का समापन किया जाता है। बताया कि यह कठिन व्रत नहीं बल्कि श्रीकृष्ण भक्ति की एक तपस्या है। यह परम्परा श्रीकृष्ण भक्ति से जुड़ी हुई है जो सदियों बीतने के बाद भी कायम है।

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