आधुनिकता में खो रही धरोहर, क्षेत्र की पहचान बटुए अब नजर नहीं आते

महोबा जिले में अपने कलात्मक एवं विशिष्ट तरीके के निर्माण शैली के लिए ख्यात महोबा के बटुआ उद्योग को आधुनिक वाॅलेट और पर्स..

आधुनिकता में खो रही धरोहर, क्षेत्र की पहचान बटुए अब नजर नहीं आते
बटुए (wallet)

महोबा जिले में अपने कलात्मक एवं विशिष्ट तरीके के निर्माण शैली के लिए ख्यात महोबा के बटुआ उद्योग को आधुनिक वाॅलेट और पर्स की नजर लग गई है। आधुनिकता ने न केवल महोबा के इस कलात्मक हस्तशिल्प बटुआ उद्योग को लील लिया है बल्कि एक बड़े समुदाय को इस काम से डोर कर दिया है । 

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  • बटुआ ग्रामीण महिलाओं व पुरुषों सभी की प्राथमिक जरूरत थे ,  शादी विवाह में विशेषतौर पर इनकी आवश्यकता रही है ।

कई दशकों  पहले तक बटुआ महिलाओं से लेकर पुरुषों तक हर किसी की जरूरत के साथ- साथ पसंद भी थे। महोबा जिले में  कुलपहाड़ व महोबा कस्बे में पाटकार समुदाय बटुआ बनाने के उस्ताद थे उनके बनाए हुये बटुए अपनी कलात्मकता के लिए दूर दूर तक मशहूर थे।

पुरुषों के द्वारा इन बटुओं का इस्तेमाल सुपारी , तम्बाकू , सरौता , लौंग , इलायची रखने के लिए व महिलायें इन बटुओं का इस्तेमाल रुपए पैसे रखने के लिए करती थीं। शादी विवाह में विशेष तौर पर दुल्हन से लेकर उनकी भाभियों को बटुए दिए जाते थे। 

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  • एक अनोखी तकनीक के कारण कोई भी व्यक्ति  आसानी से नहीं खोल सकता बटुओं का लाॅक । 

मखमल के रंग बिरंगे कपड़े , गोटा , सलमा- सितारे , धागा व डोरी बटुआ बनाने की मुख्य सामग्री होती है। एक हुनरमंद हस्तशिल्पी आसानी से दो घंटे में आकर्षक बटुआ तैयार कर देता था। बटुआ के अंदर कई पाॅकेट होती हैं। बाहर से मजबूत व रंगबिरंगा कवर के अलावा बटुआ खोलने व लाॅक करने के लिए डोरी होती है।

बटुए (wallet)

कुलपहाड़ के बटुओं के लाॅक इतने जोरदार होते थे कि बटुआ बनाने वाला कारीगर या दुकानदार जब तक ग्राहक को लाॅक खोलना नहीं सिखाएगा तब तक कोई बटुआ को खोल नहीं सकता था। इसलिए दूर दूर से आने वाले रिश्तेदारों को  उपहार स्वरूप बटुआ भेंट में दिया जाता था। 

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  • मुस्लिमों में आज भी बटुओं का चलन है 

भले बटुओं के 90 फीसदी बाजार पर पर्स , वाॅलेट और महिलाओं के बैग्स ने कब्जा कर लिया हो लेकिन आज भी गाहे - बगाहे बटुए बिकते रहते हैं। गांवों के लोग और मुस्लिमों में बटुओं केे लेन - देन का अभी भी चलन है। विशेषतौर पर विवाह में मुस्लिम जरूर बटुआ खरीदते हैं।

बाजार से बटुआ गायब नहीं हुए हैं लेकिन खरीदार अब पहले जैसे नहीं रहे। इसलिए बटुओं का बाजार भी दम तोड़ने की कगार पर पहुंच गया है। विक्रेता कपिल पाटकार के मुताबिक नई पीढ़ी को बटुआ आउटडेटेड लगते हैं इसलिए वो इन बटुओं को नहीं खरीदते हैं।

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