बुन्देलखण्ड जैविक उत्पाद के हब के रूप मे विकसित हो, तो अन्नाप्रथा से मुक्ति - डा. नरेन्द्र प्रताप सिंह

बुन्देलखण्ड की प्रमुख समस्याओ में अन्नाप्रथा है जो किसानो के लिये अभिशाप भी कहा जाता है। कृषि के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न शोध के..

बुन्देलखण्ड जैविक उत्पाद के हब के रूप मे विकसित हो, तो अन्नाप्रथा से मुक्ति - डा. नरेन्द्र प्रताप सिंह
डा. नरेन्द्र प्रताप सिंह (Dr. Narendra Pratap Singh)

बुन्देलखण्ड की प्रमुख समस्याओ में अन्नाप्रथा है जो किसानो के लिये अभिशाप भी कहा जाता है। कृषि के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न शोध के परिणामों से किसी भी कृषि जनित समस्या का समाधान अवश्य सम्भव है। अन्नाप्रथा इस क्षेत्र के लिये अभिशाप नही वरदान साबित हो सकती है। देश और विदेश मे बढती हुई जैविक उत्पाद की मांग हमे इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने को मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

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यह बात बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय बांदा के नवनियुक्त कुलपति प्रो. नरेन्द प्रताप सिंह ने प्रेस कान्फ्रेंस मे कही। उन्होने कहा कि बुन्देलखण्ड जैविक उत्पाद के हब के रूप मे विकसित होता है तो इस क्षेत्र के लिये वरदान साबित होगा।

कहा कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र को उत्तम बनाने के लिये हम सभी का प्रसास जरूरी है। इस क्षेत्र के उत्तम हुए बिना हम उत्तम प्रदेश की कल्पना नही कर सकते। यह क्षेत्र उत्तम तभी होगा जब हम इसके विकास के लिये हर उस क्षेत्र को विकसित करे जिससे इस क्षेत्र की पहचान बनती हो।

बुन्देलखण्ड के संस्कृति, उत्पाद, खानपान तथा प्रतिभा की ब्राण्डिग आवश्यक है। मेरे और मेरी टीम द्वारा तीन साल मे किये गये कार्य को क्षेत्र के लोग विशेष तौर पर कृषक 30 वर्षो तक अनुभव करे ऐसा प्रयास रहेगा। विश्वविद्यालय की शिक्षा, शोध एवं प्रसार विकसित हो और सूचक के रूप मे पहचान बनाये जिससे प्रगति को देखा जा सके।

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शिक्षा के क्षेत्र मे सफल छात्र, कृषि उद्यमी सूचक हो शोध के क्षेत्र मे, तकनिकी के रूप मे तथा प्रसार के क्षेत्र मे सूचना ग्रहण करने को विभिन्न विधियां विकसित हो जिससे कृषक एवं अन्य जन मानस लाभांवित हो सके। इस संस्थान मे धर्म, जाति तथा क्षेत्र से उपर उठकर कार्य करना ही मेरी कार्य शैली होगी। इस क्षेत्र के विकास के लिये हम श्रमिक बनकर नेतृत्व प्रदान करेगे और तभी हम आगे बढ सकते है। 

कृषि विश्वविद्यालय बांदा यहां कि कृषि की दशा और दिशा बदलने मे मील का पत्थर साबित हो रहा है। वैज्ञानिको के सहयोग से दलहन और तिलहन के उत्पादकता के साथ साथ उत्पादन मे वृद्धि संभव है। दलहन के क्षेत्र मे मेरे द्वारा किये गये कार्य तथा अनुभव इस क्षेत्र के विकास मे अग्रणी भूमिका निभायेगा। वर्तमान मे चना का उत्पादन पूरे देश मे दो गुना हुआ है।

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भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न प्रजातियो के साथ साथ तकनिकी का प्रसार यहां के कृषको के समृद्धि के द्वार खोलेगा। बुन्देलखण्ड परिक्षेत्र के कृषक अपनी जोत के अनुसार फसलो का चुनाव करें तथा क्षेत्रानुकूल तकनिकी को अपनाकर खेती को सिर्फ जीवकोपार्जन का साधन ही नही बल्कि समृद्धि का आधार भी बना सकते है।

डा. नरेन्द्र प्रताप सिंह (Dr. Narendra Pratap Singh)

बाँदा कृषि एव प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बाँदा मे शिक्षा,शोध और प्रसार के क्षेत्र मे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के रूप मे कार्य करने के लिये आगे बढेगा। जिससे तीनो क्षेत्रो मे गुणवक्ता युक्त कार्य किया जा सके। शिक्षा को और सुदृढ बनाने के लिये शिक्षा से संबंधित नई तकनिकी अपना कर छात्रों को प्रायोगिक ज्ञान पर विशेष बल दिया जायेगा जिससे वह कृषि के क्षेत्र मे उद्यमी बन सके। उद्यमिता विकास को तकनिकी सहयोग के साथ साथ इन्क्युबेशन सेंटर द्वारा सहयोग प्रदान किया जायेगा।

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देश के 75 विश्वविद्यालय मे अगले 10 स्थानो मेें से इस विश्वविद्यालय का नाम आ सके इसके लिये हम सभी सतत् रूप से प्रयास करंेगे। क्षेत्र की दशा तथा वातावरण के अनुकूल दलहन, तिलहन, गेहुँ एवं भेड बकरी से संबंधित देश के विभन्न अग्रणी संस्थानो के अनुसंधान परियोजनाओ को लाया जायेगा जिससे इस क्षेत्र का चौहमुखी विकास हो सके। 

उन्होने कहा कि अन्नाप्रथा की समस्या को देखते हुए पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय को शुरू करने का भी प्रयास किया जायेगा। कृषक उपयोगी तकनिकी समय से कृषको के पास पहुँच सके इसके लिये कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं संबंधित विभागो को पूरे दायित्व से कार्य करने को निर्देशित किया जायेगा। विश्वविद्यालय मे आने वाले दिनो मे दीक्षांत समारोह तकनिकी विस्तार को एक किसान मेला आयोजित किया जायेगा। बुन्देलखण्ड में कृषि जनित समस्याओ के समाधान के लिए एक ब्रेनस्टॉर्मिग कराया जायेगा जिससे समस्याओ का उचित एवं सुगम हल प्राप्त हो सके।

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