प्याज की खुदाई व भण्डारण से संबन्धित महत्वपूर्ण बातो को जानिए

वर्तमान परिस्थिति को देखते हुये कृषि क्रियायें ससमय पूर्ण करना एक चुनौती हो गयी हैं। रबी की प्रमुख फसलों..

प्याज की खुदाई व भण्डारण से संबन्धित महत्वपूर्ण बातो को जानिए
प्याज कृषि

वर्तमान परिस्थिति को देखते हुये कृषि क्रियायें ससमय पूर्ण करना एक चुनौती हो गयी हैं। रबी की प्रमुख फसलों की या तो कटाई हो चुकी हैं या चल रही हैं। बुन्देलखण्ड के कुछ जिलांे मंे बहुतायात में कृषक प्याज की खेती करते है। प्याज से समय समय पर तथा बाजार के अनुरूप विपणन करने से किसान अच्छी आय प्राप्त कर सकता है।

इसके लिये आवश्यक है प्याज की खुदाई व भण्डारण से संबन्धित महत्वपूर्ण बातो पर ध्यान दिया जायें। प्याज शीघ्र खराब होने वाली फसल है अतः खुदाई के उपरान्त उचित प्रबंधन द्वारा हानि को कम किया जा सकता है तथा भण्डारण क्षमता मे वृद्धि की जा सकती।

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प्याज की खुदाई जिस समय प्याज के गर्दन के आस-पास के उत्तक नरम होने शुरू हो जाय, प्रत्तियां गिरने को हो जाय एवं अपना रंग बदल दे फसल तैयार समझी जाती है। जब 50 प्रतिशत पत्तियां गिर जाय तो इसके एक सप्ताह बाद खुदाई करनी चाहिए।  प्याज अधिक दिन तक सुरक्षित रह सके इसके लिये उसका पकना व सुखना आवश्यक हैं।

सुखाने का उद्देश्य बाहरी छिलके से एवं गर्दन के पास से अधिक नमी को निकालना जिससे बिमारी के रोगाणु प्रभावित न कर सके। पकाना (क्योरिंग) एक अतिरिक्त प्रक्रिया है जिससे छिलके के रंग के विकास मे सहायता मिलती है और गांठो के भाण्डरण से पहले प्याज के कन्द की गर्मी निकालने के लिए, क्योरिंग प्रक्रिया उपयोगी होती है।

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उत्तर भारत मे रबी मौसम मे गाठों को उन्ही की पत्तियों से ढककर 3-5 दिन तक खेत मे क्योरिंग करते है फिर 2.0-2.5 से भी छोड़कर पत्त्यिां काट देते है और बाद मे छाया मे 7-10  दिन तक खेत मे क्योरिंग करते है। सुखाने एवं पकाने के लिए प्याज मे विन्ड-से विधि सर्वाधिक उपयुक्त होती है।

क्योरिंग अगर 10-12 दिन तक छाया मे किया जाय तो सूखे बाहरी कई छलके विकसित हो जाते है और वे ज्यादा देर तक भण्डारित किये जा सकते है। मोटी गर्दन वाले कटै-फटे या चोट खाए, रोग ग्रस्त एवं कीटो से प्रभावित सडे़-गले तथा अुकुरित कदो को छाट कर अलग कर दिया जाता है। छटाई के पश्चात प्याज का आकार के आधार पर श्रेणीकरण करते है।

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प्याज का भण्डारण विशेष रूप से निर्मित किये गये भण्डार-ग्रह मे किया जाता है जिसमे चारो ओर से हवा के आवागमन की उचित एवं पर्याप्त व्यवस्था होती है। भारत के विभिन्न भागों मे उपलब्ध ’’प्याज भण्डार-गृह’’ लगभग एक समान ही होते है अन्तर केवल फर्श एवं छत का होता है जो कि स्थानीय स्रोतो एवं परिस्थितियों पर आधारित होता है।

भण्डारण में हानि कम करने हेतु कुछ आवश्यक बातंे निम्न हैं- भण्डारण योग्य प्याज की प्रजाति का चयन करें, खाद एवं उर्वरक संतुलित मात्रा मे प्रयोग करे, अधिक नत्रजन न दे, सिचाई व्यवस्था उचित करे, सूक्ष्म सिचाई प्रणाली को प्राथमिकता दे, खुदाई के 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बन्द कर दे।

संस्तुति किय गये कीटनशको का प्रयोग खडी फसल मे खुदाई से पूर्व ही करें, सस्तुति किये गये कीटनाशाको का प्रयोग खडी फसल मे खुदाई से पूर्व ही करे, फसल की खुदाई पूर्ण परिपक्वता पर करे, गर्दन को गाठ के ऊपर 2.5 सेमी छोड़कर काटे, गाठों को ऊचाई से कठोर धरातल पर न फेंके/गिरायें, भण्डारित प्याज को सूर्य के सीधे प्रकाश तथा बरसात से सुरक्षा दे। अधिक जानकारी हेतु कृषक भाई मोबाइल नंण् 9936887652 पर सपर्क कर सकते है।

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