विकास की बाट जोहता बुंदेलखंड किस दल को कितना रहेगा याद

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग तय प्लान के अनुसार सात चरणों में होने वाले विधानसभा चुनावों..

विकास की बाट जोहता बुंदेलखंड किस दल को कितना रहेगा याद

  • चुनावी घोषणापत्रों में क्या होगा बुन्देलखण्ड के विकास का जिक्र

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का बिगुल बज चुका है। चुनाव आयोग तय प्लान के अनुसार सात चरणों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर चुका है। सभी पार्टियां अपने अपने उम्मीदवारों के नामों की सूची को क्रमबद्ध ढंग से जारी करने में लगी हैं। दूसरी ओर सभी पार्टियां चुनाव घोषणा पत्रों को भी अंतिम रूप देने में जुटी हुई हैं। इन्हीं घोषणा पत्रों को लेकर सभी की निगाहें बुंदेलखंड पर लगी हुई है कि प्रमुख राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों में बुंदेलखंड को कितना तवज्जो देते हैं। 

चुनाव आते ही हमेशा राजनीतिक दलों को बुन्देलखण्ड याद आने लगता है। बाबजूद इसके बदहाली का पहला नाम बुंदेलखंड ही रहा है। जिसे आजादी के बाद से सभी राजनीतिक दलों ने हमेशा छलने का काम किया है। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में बुंदेलों ने जागरूकता जिस तरह से रणनीतिक मतदान किया उससे सभी राजनीतिक दलों के होश उडे हुए हैं एवं पहली बार इस बात की पूरी संभावना जताई जा रही है कि घोषणापत्रों में पार्टियां अलग से बुंदेलखंड का जिक्र अवश्य करेंगी। 

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पहाडी व पठारी बुंदेलखंड , यूपी के नक्शे में प्रदेश के दक्षिण में बसा है। यूपी व एमपी सीमा पर अवस्थित बुंदेलखंड आबादी , जिलों की संख्या, सीटों की संख्या के लिहाज से बहुत छोटा भूभाग है। क्योंकि आजादी के बाद बुंदेलखंड राज्य का निर्माण न करना पडे इसलिए इसे दो हिस्सों में बांटकर दो राज्यों यूपी व एमपी में समाहित कर दिया गया था। यूपी के हिस्से के बुंदेलखंड में दो कमिश्नरी झांसी व चित्रकूट धाम मंडल बांदा हैं। जिनमें  सात जिले आते हैं। जिनकी आबादी सवा करोड से थोडा अधिक है। यहां पर 19 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें आजादी के बाद से मिला जुला मतदान होता रहा है। बुंदेलखंड के बारे में कहा जाता रहा है कि बुंदेलों ने अकसर सत्ता के विरोध में मतदान किया है इसलिए बुंदेलखंड पर सरकारों की कभी भी मेहरबानी नहीं रही है।

विषमताओं , विसंगतियों व विडम्बनाओं से जूझ रहे बुंदेलखंड में पेयजल , जलापूर्ति , सिंचाई , उद्योग धंधों का अभाव , बेरोजगारी , कृषि , जमीनों पर दबंगों के अवैध कब्जे , जर्जर सडकें , गुणवत्ता विहीन शिक्षा , निर्माण कार्यों में व्यापक भ्रष्टाचार , दस्यु समस्या जैसी समस्यायें दशकों तक मुंह बाये खडी रही हैं। योगी की सरकार ने बुंदेलखंड  एक्सप्रेस वे , झांसी - खजुराहो फोर लेन , के निर्माण के अलावा बुंदेलखंड की अधिकांश सडकों का कायाकल्प कर दिया है। हर घर जल हर घर नल की महत्वाकांक्षी घर घर पाईपलाइन योजना का काम तेजी से चल रहा है। ऐसी संभावना है कि इस योजना के साकार होते ही बुंदेलियों को कुओं , तालाबों , हैंडपम्प से पानी भर भरकर लाने व पेेयजल संकट से निजात मिल जाएगी। 

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सिंचाई के तमाम प्रोजेक्ट जो लंबे अरसे से लंबित पडे थे उन परियोजनाओं को क्रियान्वित कर योगी सरकार ने बडा काम किया है। इनमें अर्जुन सहायक परियोजना शामिल है। केन - बेतवा नदी जोडो परियोजना को हरी झंडी मिल चुकी है। यह देश की पहली नदी जोडो परियोजना है जिसकी शुरुआत  बुंदेलखंड से होने जा रही है। यदि यह परियोजना सफल होती है तो देश में जल संकट से निपटने का पुख्ता फार्मूला सरकार के हाथ लग जाएगा। पर्यटन विकास की बुंदेलखंड में अपार संभावनाएं हैं। एवं यह देश व दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर अपनी जगह बना सकता है। चित्रकूट को फ्री जोन घोषित करके सीमा विवाद का पटाक्षेप हो गया है। यहां पर पर्यटन के लिहाज से बडा स्कोप है। चित्रकूट के टेबल टाप हवाई अड्डे को तत्काल चालू किए जाने की जरूरत है। झांसी को भी हवाई सेवा से जोडे जाने की जरूरत है जिसका लाभ यूपी व एमपी दोनों राज्यों के लोगों को मिलेगा। 

औद्योगिक दृष्टि से बुंदेलखंड बदहाल है। यदि बुंदेलखंड का औद्योगिक विकास किया जाता है तो श्रमिकों का पलायन रुकेगा। साथ ही बुंदेलखंड भी विकसित होगा। कृषि के क्षेत्र में यहां सबसे ज्यादा काम किए जाने की जरूरत है। वेयर हाउसों का निर्माण कराए जाने के साथ साथ यहां पर कोल्ड स्टोरेज चेन को भी विकसित किए जाने की जरूरत है। बुंदेलखंड में सहकारी क्षेत्र सबसे बदहाली का क्षेत्र है जो सत्तारूढ पार्टी के नेताओं के राजनीतिक पुनर्वास का माध्यम बना हुआ है। तमाम राज्यों में सहकारिता के क्षेत्र से किसानों व कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन आया है। लेकिन बुंदेलखंड में सहकारिता का क्षेत्र ऐसा है जहां गंभीरता से काम किए जाने की जरूरत है। बुंदेलखंड में सोलर एनर्जी के क्षेत्र में विकास की भरपूर संभावनाएं हैं।

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इसके लिए विशेष नीति बनाए जाने की जरूरत है। आजादी के समय बुंदेलखंड इमली , खैर , बेर , तेंदु पत्ता आदि की पैदावार के लिए विख्यात था। वनौषधि के लिए यहां की जलवायु सर्वथा उपयुक्त है। सिंचाई , लघु सिंचाई , कृषि , चकबंदी , पशु पालन , भूमि संरक्षण, कृषि विज्ञान केन्द्र व मंडी समितियां बुंदेलखंड में अपनी भूमिका का सम्यक निर्वहन करने में नाकाम रही हैं। जिन पर कडी निगरानी के साथ इन विभागों की विशेष देखरेख की जरूरत है। ये विभाग बुंदेलखंड में सफेद हाथी बनकर रह गए हैं। जो कागजी कार्यवाहियों के लिए ज्यादा जाने जाते हैं। 

शिक्षा व स्वास्थ्य बुंदेलखंड की कमजोर नस है। जिस पर बातें तो बहुत होती हैं जबकि हकीकत में शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों मामलों में बुंदेलखंड बदहाल और बेहाल है। पृथक बुंदेलखंड राज्य तो शिगूफा से ज्यादा कुछ नहीं लगता है।  बुंदेलखंड पर सभी पार्टियों की नजर तो है लेकिन देखने की बात यह है कि कौन कौन से राजनीतिक दलों के पास बुंदेलखंड के लिए कोई कार्य योजना , कार्यक्रम या नीतियां हैं या केवल चुनावों में बरगलाने के लिए राजनीतिक दलों को बुंदेलखंड याद आता है।

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