बुंदेलखंड में पशुपालन के लिए यह नस्ल उपयोगी, भदावरी नस्ल भैंस भी फायदेमंद

बुन्देलखण्ड में उद्यान व वानिकी के महत्व को देखते हुये सभी कृषि विज्ञान केन्द्र उद्यान व वानिकी फसलों पर भी अन्य फसलों की..

बुंदेलखंड में पशुपालन के लिए यह नस्ल उपयोगी, भदावरी नस्ल भैंस भी फायदेमंद

बांदा,  

बुन्देलखण्ड में उद्यान व वानिकी के महत्व को देखते हुये सभी कृषि विज्ञान केन्द्र उद्यान व वानिकी फसलों पर भी अन्य फसलों की तरह तकनीकी का प्रसार करें। इसे बढ़ावा देने के लिये सभी कृषि विज्ञान केन्द्र हाई टेक नर्सरी स्थापित करें। पशुपालन में थारपारकर नस्ल बुन्देलखण्ड के लिये उपयोगी है। इसके अतिरिक्त लाल सिन्धी नस्ल भी यहाँ अच्छा उपयोगी हो सकती है। जालौनी नस्ल की भेंड कृषि विज्ञान केन्द्र, जालौन में रखा जाय जिससे उसका प्रसार हो सके। पशुपालन में भदावरी नस्ल की भैंस भी अच्छा उत्पादन दे सकती हैं। 

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यह सुझाव कृषि विश्वविद्यालय बांदा के कुलपति प्रो. नरेन्द्र प्रताप सिंह ने प्रसार निदेशालय द्वारा आयोजित द्वितीय प्रसार परिषद के बैठक में दिया। प्रो. सिंह ने कहा दलहन एवं तिलहन की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों को एक कृषि विज्ञान केन्द्र से अन्य कृषि विज्ञान केन्द्रों में भी कृषकों के लिये उपलब्ध कराया जाय। सभी कृषि विज्ञान केन्द्र प्रसार निदेशालय के नेतृत्व में एक लम्बी अवधि के लिये रूपरेखा एवं योजना बनाकर कार्य करें, जो बुन्देलखण्ड के विकास के लिये आवश्यक है।

सभी जनपदों के जनसंख्या, कृषि कार्य, प्रमुख फसलें एवं सम्बन्धित अन्य जानकारी के बारे में सूचनायें संकलित कर कार्य करें। प्रो. सिंह ने सभी कृषि विज्ञान केन्द्र के केन्द्राध्यक्षों से कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्र से जुड़े कृषकों से उनके अनुभव से अगली रणनीति तैयार करें। नई तकनीकी एवं नई प्रजाति जल्द से जल्द कृषक समूह में कैसे पहूँचे इसके लिये हमारी कोशिश होनी चाहिये।

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प्रसार परिषद की बैठक में विश्वविद्यालय के निदेशक प्रसार व परिषद के सदस्य सचिव प्रो. एन. के. बाजपेयी ने सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों की प्रगति आख्या एवं आगामी योजनाओं को प्रस्तुत किया। प्रो. बाजपेयी ने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्रों में प्रसार गतिविधियों के साथ-साथ दस अलग अलग शोध परियोजनायें संचालित हो रही हैं। दक्षता विकास कार्यक्रम में महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ युवाओं को दक्ष बनाने के साथ-साथ रोजगारोन्मुखी बनाया जा रहा है। 

दक्षता प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत दुग्ध उत्पादन, मशरूम, नर्सरी, उच्च गुणवक्ता युक्त बीजोत्पादन विषयक प्रशिक्षण दिये गये हैं। सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा लगभग 880 हे0 क्षेत्रफल में दलहन व तिलहन में प्रदर्शन 94.8 हे0 में अनाज एवं मोटे अनाज वाली फसलों में तकनीकी प्रसार के लिये किया गया। तकनीकी सहायक कार्यक्रम के अन्तर्गत एकीकृत न्यूट्रीशन प्रबन्धन पर 25, एकीकृत रोग प्रबन्धन पर 70, एकीकृत पेस्ट प्रबन्धन पर 66, प्रजाति मूल्यांकन पर 66, रोग प्रबन्धन पर 10 तथा पोषण प्रबन्धन पर 61 कार्यक्रम आयोजित किये गये। प्रो0 बाजपेयी ने बताया कि सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा लगभग 1721.44 कु0 दलहन तथा 1021.04 कु0 गेंहूँ व धान के उच्च गुणवक्ता युक्त बीज का उत्पादन कर कृषकों को उपलब्ध कराया गया।

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इसके अलावा सब्जी, फूल, फल, वानिकी व औषधीय पौधों के लगभग 391933 पौध रोपण सामाग्री वितरित की गयी है। 2477 प्रसार कार्यक्रम आयोजित हुये जिससे 155966 कृषक लाभान्वित हुये। सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों में 22 फसलों को न्यूट्री गार्डन में लगाने हेतु लगभग 16008 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया। आदिवासी सब परियोजना के तहत झाँसी, जालौन, महोबा व ललितपुर के आदिवासी कृषकों को प्रशिक्षित कर स्वावलम्बी बनाने का कार्य किया गया। प्रो0 बाजपेयी ने कहा कि प्रसार गतिविधियों को और अच्छा करने हेतु मा0 सदस्यों के सुझाव भविष्य में लागु किये जायेंगे।

प्रसार परिषद के  सदस्य डा. एस. एस. सिंह, निदेशक प्रसार, रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी ने अपने सुझाव में बताया कि बुन्देलखण्ड में उर्द, गेंहूँ फसलचक्र काफी प्रचलित है। इन फसलों की अच्छी प्रजाति के प्रसार की आवश्यकता है। बुन्देलखण्ड की मृदा में कार्बनिक पदार्थ की कमी है, जिसको बढ़ानें हेतु जागरूकता एवं प्रयास आवश्यक है। धान वाले क्षेत्रों में सीधे बीज बुआई हेतु तथा 110 दिन के भीतर तैयार होने वाली प्रजाति को प्रचलित करने की जरूरत है। बुन्देलखण्ड में औद्यानिक फसलों की सम्भावनायें बहुत ज्यादा है।

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बुन्देलखण्ड में अंजीर, डैगन फ्रूट तथा स्ट्राबेरी कृषक आय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हरे मटर की मांग को देखते हुये कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रक्षेत्र पर बीज उत्पादन किया जा सकता है जिससे मांग पूरी हो सके। प्रसार परिषद के  सदस्य व जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर की पूर्व निदेशक प्रसार,  डा. (श्रीमति) ओम गुप्ता ने भी अपने अनुभव साझा किये। उन्होने बताया कि युवाओं के लिये रोजगारोन्मुखी अल्प अवधि का दक्षता प्रशिक्षण शुरू करें। 

बैठक में सभी जनपदों के कृषक प्रतिनिधियों, विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालय के अधिष्ठातागण, सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों के केन्द्राध्यक्ष, कृषि प्रसार विभाग के विभागाध्यक्ष व कृषक सदस्य के रूप में उपस्थित रहे। बैठक में निदेशक शोध, सह निदेशक प्रसार डा. आनन्द सिंह व सहायक निदेशक प्रसार, डा. पंकज कुमार ओझा भी उपस्थित रहे तथा सह निदेशक प्रसार, डा. नरेन्द्र सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया।

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