वैज्ञानिको ने सुझाए वन संसाधनों के आधुनिक उपयोग के नये तरीके

बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बांदा के वानिकी महाविद्यालय में प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के लिए वन..

वैज्ञानिको ने सुझाए वन संसाधनों के आधुनिक उपयोग के नये तरीके

बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बांदा के वानिकी महाविद्यालय में प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के लिए वन प्रबंधन पर 21 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ने 10 दिन पूरे किए। प्रशिक्षण कार्यक्रम का दूसरा विषय वन संसाधनों के व्यावसायिक महत्व पर प्रशिक्षण 7 मार्च से 11 मार्च के दौरान आयोजित किया गया। विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों के चौदह प्रख्यात प्रोफेसरों ने इसमें स्थायी वन संसाधन प्रबंधन और आजीविका के अवसरों पर अपने व्याख्यान दिए। 

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डीएआई ब्रुसेल्स लाइबेरिया में लाइसेंसिंग और सत्यापन सलाहकार डॉ शिव पांसे ने भारतीय परिदृश्य में वन प्रमाणीकरण को अपनाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। यह न केवल हमारे प्राकृतिक वन के स्थायी प्रबंधन में मदद करेगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके उत्पादों पर उत्तम रिटर्न भी देगा। केरल वन अनुसंधान संस्थान के सेवानिवृत्त मुख्य वैज्ञानिक डॉ. टी. दामोदरन ने भारत में बांस की क्षमता पर चर्चा की।

उन्होंने बताया कि यद्यपि भारत में बांस की खेती के तहत 16 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र है चीन की तुलना में 6-7 मिलियन हेक्टेयर अधिक है, लेकिन चीन बांस व्यापार में विश्व में अग्रणी है। उन्होंने बताया कि बांस के कई उपयोग हैं जो टिकाऊ उत्पादों आजीविका विकल्पों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करते हैं। 

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डॉ. विपिन चावला वैज्ञानिक भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान बंगलौर ने बांस में नए नवाचारों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि 2012 में बांस का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लगभग 2 अरब डॉलर का था जो अब और बढ़ रहा है और इसका अधिकांश हिस्सा पश्चिमी देशों द्वारा आयात किया जाता है। डॉ मनोज दुबे अतिरिक्त निदेशक भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, बैंगलुरू ने कहा कि आजकल 153 मिलियन मीटर क्यूब की मांग है लेकिन भारतीय वन केवल 83 मिलियन मीटर क्यूब की आपूर्ति कर सकता है इसलिए लकड़ी की मांग और आपूर्ति में बहुत बड़ा अंतर है। 

वन अनुसंधान संस्थान देहरादून की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ संगीता गुप्ता ने लकड़ी के उपयोग में लकड़ी के शरीर रचना विज्ञान के महत्व पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक लकड़ी में अद्वितीय गुण होते हैं इसलिए उपयोग करने से पहले लकड़ी की पहचान करना हमेशा आवश्यक होता है। उन्होंने प्रतिभागियों से कहा कि यह हमारे स्वदेशी सागौन की शारीरिक रचना है जो आयातित सागौन की तुलना में बेहतर स्थायित्व और कीट के खिलाफ प्रतिरोधी प्रदान करती है। डॉ साधना त्रिपाठी, वरिष्ठ वैज्ञानिक, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने सभी वाणिज्यिक और गैर टिकाऊ लकड़ी के लिए संरक्षक उपचार का उपयोग करने पर जोर दिया है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मोहम्मद नासिर ने किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. ऐश्वर्या माहेश्वरी डॉ कौशल सिंह, डॉ अरबिंद कुमार गुप्ता ने प्रशिक्षण के सुचारू संचालन में योगदान दिया।

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