एआई को भी मात देगा श्रद्धालुओं का ये जुगाड़, अब कुम्भ में कोई बिछड़ेगा नहीं

महाकुम्भ में कई श्रद्धालु एक रंग की टोपी, शर्ट, अलग—अलग रंग और डिजाइन वाले झंडे लेकर आए हैं। कुछ लोग मेले में एक साथ बने रहने के लिए रस्सी पकड़कर घूम रहे हैं।

एआई को भी मात देगा श्रद्धालुओं का ये जुगाड़, अब कुम्भ में कोई बिछड़ेगा नहीं


महाकुम्भ नगर । हिन्दी फिल्मों और आमजीवन का एक प्रसिद्ध डायलॉग आपने जरूर सुना होगा कि कुम्भ में बिछड़े हुए अब इतने दिन बाद मिले हैं। हालांकि महाकुम्भ प्रयागराज में अत्याधुनिक तकनीक से बिछड़ों को अपनों से मिलाने का काम बखूबी किया जा रहा है। लेकिन इन सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने महाकुम्भ की विशाल जनसमूह में अपनो से न बिछड़ने का जुगाड़ अपने तरीके से कर लिया है।

महाकुम्भ में कई श्रद्धालु एक रंग की टोपी, शर्ट, अलग—अलग रंग और डिजाइन वाले झंडे लेकर आए हैं। कुछ लोग मेले में एक साथ बने रहने के लिए रस्सी पकड़कर घूम रहे हैं। गौरतलब है कि श्रद्धालुओं की सहायता के लिए बाकायदा जगह-जगह पर 'खोया पाया केंद्र' बनाए गए हैं। यहां बिछड़े लोगों को फिर से मिलाने की पूरी कोशिश की जा रही है।

संगम स्नान के लिए सुरेश कुमार 17 सदस्यों के साथ सोनीपत हरियाणा से आए हैं। उनके साथ बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सब शामिल हैं। समूह को एक साथ रखने के लिये समूह के सभी एक लाइन में रस्सी पकड़कर घूम रहे हैं। सुरेश कुमार ने बताया, 'भीड़ और धक्का मुक्की में अक्सर बच्चों के खोने का खतरा बना रहता है। इसलिए हम लोग रस्सी पकड़कर चल रहे हैं।' सुरेश कुमार रस्सी पकड़कर आगे चल रहे हैं, बच्चे बीच में हैं और आखिर में परिवार का वरिष्ठ सदस्य हैं।

सुरेश कुमार की तरह उड़ीसा से आये एक ग्रुप ने पीले रंग की टोपियां पहनी हुई हैं। ​भीड़ में इधर उधर होने या खो जाने की स्थिति में ये लोग टोपी के रंग से एक दूसरे का आसानी से पहचान लेते हैं। पंजाब से युवाओं की एक टोली ने लाल रंग की खास डिजाइन वाली टी—शर्ट और कैप पहन रखी है। दूर से ही ग्रुप के सदस्य पहचान में आ जाते हैं। रोपड़ से प्रीतपाल सिंह ने कहा, 'भीड़ में इधर उधर भटकाव हो जाता है। इसलिए हम लोगों ने मेले में आने से पहले ही ये डिसाइड कर लिया था कि हम एक रंग के कपड़े पहनकर मेले में जाएंगे।' ग्रुप के सदस्य रिंकू ने बताया, 'एक रंग के कपड़े पहनने से समूह एक तो दिखाई देता ही है, वहीं किसी सदस्य के खो जाने या भटकने पर पहचान आसानी हो जाती है।'

मेला क्षेत्र में कई समूह आपको झंडा पकड़े नजर आएंगे। समूह के सदस्य झंडे को देखकर अपने साथियों को पहचान लेते हैं। पड़ोसी देश नेपाल के नेपालगंज से संगम स्नान के लिए आठ लोगों की टोली ने बताया कि, हम लोग पहली बार स्नान के लिए आये हैं। यहां बहुत भीड़ है, इसलिए हम लोग झंडा लेकर चल रहे हैं, जिससे भीड़ में भटकने से बचा जा सके।

उत्तराखण्ड के पौड़ी का एक समूह भी पवित्र संगम में स्नान के लिए महाकुम्भ आया है। इन लोगों ने पीले रंग का विशेष डिजाइन वाला झंडा उठा रखा है। ग्रुप के सदस्य दूर से ही झंडा देखकर इकट्ठे हो जाते हैं। ग्रुप के भुवन रतूड़ी ने बताया, 'मेले में बहुत भीड़ है। मैं 2019 के मेले में आया था। उस समय हमारा एक सदस्य हमसे बिछड़ गया था। इसलिए इस बार हम लोगों ने खास डिजाइन का झंडा लेकर चलने का फैसला किया था।'

गौरतलब है कि, महाकुम्भ में श्रद्धालुओं आना लगातार जारी है। खासकर जो ग्रामीण परिवेश से स्नान करने श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, उनमें ऐसे लोगों की संख्या काफी है, जिनके पास मोबाइल की सुविधा नहीं है। कुछ को एक-दूसरे का हाथ छूटने के बाद बिछड़ने का दर्द झेलना पड़ रहा है। हालांकि श्रद्धालुओं की सहायता के लिए बाकायदा जगह-जगह पर 'खोया पाया केंद्र' बनाए गए हैं। यहां बिछड़े लोगों को फिर से मिलाने की पूरी कोशिश की जा रही है।

(हि.स.)

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