बसपा और भाजपा के बीच है कड़ा मुकाबला, सपा संघर्ष को त्रिकोणात्मक बना रही है
हमीरपुर विधानसभा सीट में मतदान 20 फरवरी को होना है, यहां पर मुख्य राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के बीच घमासान मचा हुआ है..
अनिल शर्मा (Anil Sharma)
- बुंदेलखंड में 19 में से एक भी सीट क्षत्रिय समाज को ना देने के कारण भाजपा को कई जगह हो रहा नुकसान
हमीरपुर विधानसभा सीट में मतदान 20 फरवरी को होना है, यहां पर मुख्य राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के बीच घमासान मचा हुआ है। यहां मुद्दे तो गायब है, सिर्फ जातीय जोड़-तोड़ के बीच ही चुनाव होना है। यदि जातीय समीकरण को देखा जाए तो इस विधानसभा क्षेत्र के सबसे ज्यादा मतदाता दलित समाज के हैं, जो लगभग 65 हजार हैं। इसके बाद ब्राह्मण समाज है जिनकी संख्या लगभग 50 हजार है, इसी तरह मुस्लिम समाज के मतदाताओं की संख्या लगभग 40 हजार है।
जबकि यादव समाज के मतदाताओं की संख्या 36 हजार, निषाद बिरादरी के लगभग 35 हजार, प्रजापति समाज के लगभग 40 हजार, कुशवाहा बिरादरी के 22 हजार, वैश्य समाज के 20 हजार, कोरी-खटीक-बसोर-धोबी-धानुक-बाल्मीकि समाज के मतदाताओं की संख्या लगभग 40 हजार है। जबकि पाल बिरादरी के मतदाता 12 हजार और आरख जाति के मतदाता 12 हजार हैं।
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इस चुनाव में बड़ी बात भाजपा के निवर्तमान विधायक युवराज सिंह को टिकट न देना है, जबकि क्षेत्र में उनकी अच्छी व साफ छवि है। भाजपा के कार्यकर्ताओं में इसे लेकर खासा रोष फैला है। इतना ही नहीं, भाजपा नेतृत्व ने बुंदेलखंड की कुल 19 सीटों में से एक भी सीट ठाकुर बिरादरी के नेता को नहीं दी है, इसके कारण ठाकुर समाज में भी रोष व्याप्त है। इसे देखकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने क्षत्रिय समाज को यह कहकर सांत्वना देने की कोशिश की है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं और केंद्र में रक्षामंत्री जो पूर्व में प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके राजनाथ सिंह हैं। इसलिए क्षत्रिय समाज की अगुवाई यह दोनों नेता कर रहे हैं, इससे क्षत्रिय समाज को अपना सम्मान समझना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद बुंदेलखंड में क्षत्रिय समाज का रोष थमता दिखाई नहीं दे रहा है।
इन सब बातों के बीच सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा ने जिस मनोज प्रजापति को हमीरपुर से अपना प्रत्याशी बनाया है, वह पूर्वमंत्री शिवचरण प्रजापति के पुत्र हैं। शिवचरण प्रजापति ने वर्ष 1989 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और हार गए थे। बीच में तीन बार विधायक हुए, एक बार समाजवादी पार्टी से भी विधायक बने। हालांकि इसमें भी महत्वपूर्ण ये है कि प्रजापति परिवार की पहचान सवर्ण विरोधी है। वे आज सवर्णों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा में आ गए हैं जिसे भाजपा के कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे हैं। इतना ही नहीं भाजपा के बाहुबली विधायक अशोक चंदेल से वर्ष 2017 में मनोज प्रजापति सपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव हार चुके हैं तो वहीं दूसरी बार वर्ष 2019 में हमीरपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी युवराज सिंह ने भी उन्हें हराया था।
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लेकिन इसके बावजूद हमीरपुर से भाजपा का टिकट मनोज प्रजापति को दिया जाना भाजपा के कार्यकर्ताओं और संघ के स्वयं सेवकों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है। लेकिन इसकी सीधी वजह यह बताई जा रही है कि चूंकि पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के आशीर्वाद से भाजपा के विधायक रहे बृजेश प्रजापति भी श्री मौर्या के साथ भाजपा छोड़कर सपा में चले गए थे, इसलिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भाजपा से हमीरपुर में दो-दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके सपा नेता मनोज प्रजापति को भाजपा में लाकर उसे टिकट देकर प्रजापतियों के कोटे की बुंदेलखंड में भरपाई करने की कोशिश की है। अब यह कोशिश कितनी सफल होगी या ये दांव भाजपा को उल्टा पड़ेगा, यह तो 10 मार्च को चुनाव परिणाम के दिन ही पता चलेगा।
वैसे हमीरपुर में बसपा प्रत्याशी रामफूल निषाद, भाजपा प्रत्याशी मनोज प्रजापति, सपा प्रत्याशी रामप्रकाश प्रजापति एवं कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमारी चंदेल के बीच मुकाबला है। लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तिथि और नजदीक आती जाएगी वैसे-वैसे यह मुकाबला बसपा प्रत्याशी रामफूल निषाद और भाजपा प्रत्याशी मनोज प्रजापति के बीच होता नजर आने लगेगा। जबकि सपा प्रत्याशी राम प्रकाश प्रजापति इसे त्रिकोणात्मक चुनाव बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। जातीय आंकड़ों के आधार पर देखा जाए तो बसपा के प्रत्याशी रामफूल निषाद के पास अपनी जाति का निषाद वोट 35 हजार है जबकि बसपा का आधार वोट दलित समाज, जिसकी संख्या लगभग 65 हजार है। इसी तरह भाजपा के प्रत्याशी मनोज प्रजापति का अपनी जाति का आधार वोट 40 हजार है लेकिन उसमें सपा प्रत्याशी राम प्रकाश प्रजापति भी बंटवारा करेंगे। पर वह कितने प्रतिशत प्रजापति वोट का बंटवारा कर पाते हैं, यह चुनाव परिणाम ही बताएंगे। इसके अलावा भाजपा प्रत्याशी मनोज प्रजापति को जो वोट मिल सकता है उसमें ब्राह्मण मतदाताओं, जिनकी संख्या लगभग 50 हजार है, वैश्यों की संख्या 20 हजार है। इसी तरह राठौर साहू वोट भी हैं, जो भाजपा के हैं।
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भाजपा प्रत्याशी मनोज प्रजापति के समर्थकों का कहना है वर्ष 2017 में सपा प्रत्याशी के रूप में उन्हें 60 हजार वोट मिले थे, जबकि वर्ष 2019 में उन्हें 58 हजार वोट मिला था। हालांकि वह दोनों बार चुनाव हार गए थे, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि यदि भाजपा में उन्हें 20 हजार और वोट मिल जाएं तो वे आसानी से चुनाव जीत जाएंगे। लेकिन देखने वाली बात यह है कि पिछले दो चुनावों में उन्हें जो वोट मिला उसमें सपा का आधार वोट यादव और मुस्लिम भी शामिल था, जो इस बार उन्हें नहीं मिलेगा। हां, इतना जरूर है कि इस बार मनोज प्रजापति को भाजपा का ब्राह्मण वोट अधिकांश संख्या में मिलेगा जो उनके लिए संजीवनी की तरह होगा। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमारी चंदेल की बात करें तो ठाकुर बिरादरी उनके लिए एकजुट होने का मन बनाए है, लेकिन मुस्लिम समाज का वोट उसे ही मिलेगा जो भाजपा प्रत्याशी को हरा रहा होगा, फिर वह चाहे सपा हो या बसपा।
वैसे भी ठाकुर समाज का वोट, जो 40 हजार है, वह पूरा का पूरा राजकुमारी चंदेल को मिलने नहीं जा रहा। क्योंकि कुछ ठाकुर योगी आदित्यनाथ के भी भक्त हैं। इसलिए कुछ प्रतिशत ठाकुरों का वोट भाजपा को भी मिल सकता है। यदि ठाकुर और मुस्लिमों का वोट जो लगभग 80 हजार है, यदि इसका 70 फीसदी मिल जाए तो ही राजकुमारी चंदेल मुकाबले में आ सकती हैं। लेकिन मुस्लिम मतदाता वोट पड़ने के एक रात पहले तक यह देखेगा कि भाजपा को बसपा, सपा या कांग्रेस में से कौन प्रत्याशी हरा रहा है, इसके बाद ही वह उसके साथ जाएगा जो प्रत्याशी भाजपा प्रत्याशी को हरा पाएगा। बहरहाल मतदान आते-आते यह मुकाबला बसपा और भाजपा के बीच सिमटता हुआ दिखाई देगा। जबकि सपा प्रत्याशी उसे यादवों के 36 हजार तथा मुस्लिमों के 40 हजार और कुछ प्रतिशत अपने प्रजापति वोटों के साथ इस संघर्ष को मजबूत करने में जुटा हुआ है।
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