दक्षिण भारत जाते समय बांदा के रामनिवास में रुके थे श्री राम

राजा दशरथ ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को जब 14 वर्ष का वनवास किया। भगवान राम चित्रकूट के वनों में रखे थे रुके थे और दक्षिण की ओर जाते समय बांदा के निम्मी पार से होकर गए थे और यहां से जाने से पहले कुछ दिन जिस स्थान पर  ठहरे वहां आज रामनिवास मंदिर बना हुआ है और इस मंदिर का संरक्षण अयोध्या के महंत नृत्य गोपालदास तारा किया जा रहा है...

दक्षिण भारत जाते समय बांदा के रामनिवास में रुके थे श्री राम
दक्षिण भारत जाते समय बांदा के रामनिवास में रुके थे श्री राम

इस बारे में मंदिर के सचिव विजय गुप्ता  बताते हैं कि बांदा और अयोध्या का शुरू से ही गहरा जुड़ाव रहा है। श्री राम को बनवास देते समय यह नहीं कहा गया था कि चित्रकूट में जाकर रहना तो फिर दशरथ के पुत्र राम लक्ष्मण ने चित्रकूट को ही क्यों चुना। उनके राज्य के निकट गोरखपुर, बस्ती आदि  वन ,नेपाल की तराई आदि थे तो वहां क्यों नहीं गए। चित्रकूट यानी बांदा आने का क्या आकर्षण रहा होगा। इस पर रामायण के पन्नों ने उत्तर दिया कि अयोध्या का बांदा से सीधा संपर्क था क्योंकि महर्षि वाल्मीक और बामदेव की तपोभूमि चित्रकूट बांदा थी तो कदाचित अयोध्या कर्मभूमि थी। बालपन से ही रामचंद जी और उनके भ्राताओं को इस जनपद के बारे में इन दोनों ऋषियों से ज्ञान प्राप्त होता रहा होगा। उन्हे यह ज्ञात हो गया था कि तप करने के लिए बांदा चित्रकूट आदर्श स्थान है। साथ ही यह उन लोगों के लिए भी आदर्श स्थान हैं जो किसी कारणवश अन्य राज्यों से भी निष्कासित होते हैं। इसीलिए भगवान राम वनवास के बाद दक्षिण कौशल वर्तमान सुल्तानपुर बेल्हा वर्तमान प्रतापगढ़ व प्रयागराज से गुजरने वाली पगडंडियों से होते हुए चित्रकूट के घने जंगलों में आश्रय लिया और जब दक्षिण की ओर जाने लगे तब बांदा निम्नी पार में शरण ली थी जहां श्री राम निवास मंदिर बना हुआ। वह बताते हैं कि‘एवमस्तु करि रमानिवासा, हरसि चले कुंभज ऋषि पासा’। अरण्यकांड की यह चैपाई शहर स्थित श्री रामनिवास मंदिर की गवाह है। अयोध्या के बाद इस मंदिर में ही प्रभु राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और हनुमान की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

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मंदिर के पुजारी चेतन दास बताते हैं कि शहर से लगभग चार किलोमीटर दूर रामनिवास मंदिर है। पहले यह बीहड़ क्षेत्र था।  यह पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व का मंदिर है। मान्यता है कि वनवास में चित्रकूट जाते समय श्रीराम इस मंदिर स्थल पर कुछ दिन रुके थे। वामदेव और सुतीक्ष्ण ऋषि से मिलने के बाद प्रभु राम अगस्त ऋषि से मिलने गए थे। वामदेव ऋषि बांबेश्वर पर्वत पर निवास करते थे और ऋषि सुतीक्ष्ण का आश्रम केन नदी तट के पास था। अगस्त ऋषि से मिलने जाते समय भगवान राम ऋषि सुतीक्ष्ण को मार्गदर्शक के रूप में साथ ले गए थे।इन्हीं पौराणिक महत्व से यह मंदिर सीधे अयोध्या से जुड़ता है।

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कमेटी के सदस्य प्रदीप जडिया का कहना है कि इस मंदिर में महंत की नियुक्ति से लेकर देखरेख का जिम्मा अयोध्या के मणिराम छावनी मंडल पर है। छावनी के महंत/रामजन्म भूमि ट्रस्ट के ट्रस्टी महंत नृत्य गोपालदास महाराज ने वर्ष 2017 में पागल बाबा (चित्रकूट) को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया है। इसके पूर्व फलाहारी महाराज (अब गोलोकवासी) नियुक्त थे। पुजारी के मुताबिक लगभग 500 वर्ष पूर्व मंदिर की स्थापना हुई थी। अयोध्या के बाद यह पहला मंदिर है जहां राम, उनके तीनों भाई, देवी सीता और हनुमान की प्रतिमाएं स्थापित हैं।  श्रीराम निवास सेवा समिति के सचिव विजय गुप्ता (सीए) ने बताया कि राम जन्मभूमि पूजन के दिन 5 अगस्त को राम निवास मंदिर में भी दीपमाला उत्सव मनाया जाएगा। सैकड़ों दीप से मंदिर परिसर जगमगाएगा।

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