भारत और चीन: यदि युद्ध हुआ तो कौन जीतेगा?
जब से भारत और चीन के बीच युद्ध जैसे हालात बने हैं अधिकतर लोग यह प्रश्न पूछ रहे हैं कि यदि युद्ध हुआ तो कौन जीतेगा? कई लोग मुझसे भी यह प्रश्न कर चुके हैं। अपने सीमित ज्ञान से हर व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर पाने या देने का प्रयास करता दिखाई दे रहा है। परंतु सच्चाई यह है कि बड़ा से बड़ा रक्षा विशेषज्ञ या कई सौ रक्षा विशेषज्ञ इकट्ठा होकर भी यह नहीं कह सकते कि कौन जीतेगा? क्योंकि युद्ध "अंकों" और अंकगणित से नहीं जीते जाते। फिर भी कुछ अंक और अंकगणित जान लेना उचित होगा।
चीन एक महाशक्ति है और भारत भी। चीन, 12 ट्रिलियन डॉलर की दुनिया की नंबर दो अर्थ व्यवस्था है (19 ट्रिलियन डॉलर के साथ अमेरिका प्रथम स्थान पर है) और 3 ट्रिलियन डॉलर के साथ भारत पांचवें स्थान पर (जापान और जर्मनी के बाद) पर है। परन्तु PPP (purchase power parity) के मापदंड से भारत 12 trillion dollars के साथ, चीन (27 trillion) और अमेरिका (20 trillion) के बाद दुनिया की तीसरी महाशक्ति है। दोनों की जनसंख्या लगभग बराबर हो चुकी है। जबकि भारत में नौजवानों की संख्या अधिक है। इस तरह कर्मशील (work force) सम्पदा में भारत दुनिया का पहला देश है। चीन के पास सबसे बड़ी सेना (21 लाख) है (सबसे बड़ी है, सबसे शक्तिशाली नहीं) और भारत के पास दूसरी सबसे बड़ी (14 लाख)। परंतु युद्ध सिर्फ इन्हीं समीकरणों से जीते-हारे नहीं जाते। बहुत कुछ ऐसा युद्ध के दौरान होता है या हो सकता है, जिसकी किसी ने कभी कल्पना नहीं की होती और जो, युद्ध किस तरफ जाएगा, इसके लिए बहुत बड़ा निर्णायक कारक (factor) होता है।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इटली, जर्मनी और जापान की तिकड़ी, जिसे धुरी राष्ट्र (axis forces) कहा जाता था, प्रारंभ में बहुत तेजी से जीत रहे थे। जर्मनी ने ब्रिटेन और रूस को छोड़कर लगभग सारा यूरोप जीत लिया था। इधर जापान के विजय के डंके बज रहे थे। चीन और कोरिया को रौंदता हुआ जापान बर्मा और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में प्रवेश कर चुका था। उस समय अमेरिका युद्ध में नहीं था। लेकिन अकेले अमेरिका के युद्ध में प्रवेश के बाद सारी परिस्थितियां बदल गई। हिरोशिमा और नागासाकी पर क्रमशः 6 और 9 अगस्त 1945 को एटम बम गिराए जाने के बाद तो युद्ध एक तरफा हो गया। जापान ने हथियार डाल दिए। हिटलर ने आत्महत्या कर ली। इस तरह से धुरी राष्ट्र जीते हुए युद्ध को हार गए। इसलिए यह किसी भी रक्षा विशेषज्ञ के लिए कह पाना असंभव है कि भारत और चीन का युद्ध हुआ तो कौन जीतेगा।
लेकिन दुनिया के जो थिंकटैंक हैं, जो रक्षा विषयों पर लगातार शोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि भारत किसी भी तरह से चीन से कम नहीं है। इनमें से कुछ कारणों का विश्लेषण मैं यहां करने का प्रयास कर रहा हूं:
विशेषज्ञों के अनुसार भारत की वायु सेना (Air Force) चीन की वायुसेना से हांलांकि आकार (size or number) में छोटी है परन्तु निस्संदेह श्रेष्ठ (superior) है। भारत के लड़ाकू विमान भी चीन के लड़ाकू विमानों से सुपीरियर है। भारत की वायु सेना में अमेरिका, रूस, इजरायल और ब्रिटेन जैसे टेक्नोलॉजिकली सुपीरियर देशों के सर्वश्रेष्ठ लड़ाकू विमान है। भारत के पास बहुत ही एडवांस देशों की इन्वेंटरी है। इस तरह की विविधता (variety) इतना भेदन शक्ति (penetrative power) और versatility चीन की वायुसेना में नहीं है। इसके अलावा भारत के पास अमेरिका का बना हुआ multirole ग्लोबमास्टर और रूस का बना हुआ सबसे बड़ा मालवाहक जहाज IL-76 (गजराज) है। हमारे पायलटों की ट्रेनिंग चीन के पायलटों से बहुत ज्यादा सुपीरियर है। अधिकतर विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की वायु सेना चीन की वायुसेना से अधिक श्रेष्ठ (superior) है। और यही चीन की चिंता भी है।
जहां तक थल सेना की बात है यह सच है कि चीन की थल सेना भारत की थल सेना से काफी बड़ी (लगभग डेढ़ गुना) है। मगर उसके साथ हमें यह भी देखना पड़ेगा कि चीन की सीमाएं भी भारत से 3 गुना ज्यादा बड़ी है। सारी सेना चीन सिर्फ तिब्बत और अरुणाचल में भारत के विरुद्ध ही तो नहीं लगा देगा? उसके अलावा चीन की सेना की एक बहुत बड़ी कमजोरी है कि वह एक compulsory military force है, जहां लोगों को जबरन सेना में भर्ती किया गया है; चाहे वह सेना में कार्य करने की इच्छुक हो या नहीं। जबकि भारत की सेना एक volunteer military force (स्वैच्छिक सेना) है, जिसमें सिर्फ वही लोग आते हैं जो अपनी इच्छा से सेना में सेवा करना चाहते हैं। उनके ऊपर समाज या सरकार का कोई दबाव नहीं होता। सच्चाई तो यह है कि भारत के नौजवानों के सेना में प्रवेश के लिए बहुत ही कठोर मापदंड बनाए गए हैं, ताकि प्रतियोगिता कठिन हो। उसके बाद भी भर्ती की रैलियों में भारी भीड़ के कारण कई बार स्थिति बेकाबू हो जाती है और वहां पर पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ता है। एक वॉलंटरी मिलिट्री ऑर्गेनाइजेशन होने के कारण भारत की सेना का मनोबल बहुत ऊंचा रहता है।
दूसरी बात यह है कि 1962 के बाद चीन ने कोई भी युद्ध किसी भी देश से नहीं जीता। वस्तुत: बहुत कम ही युद्ध चीन ने लड़े। सितंबर-अक्टूबर 1967 में हुए दूसरे भारत-चीन युद्ध में चीन की सेना भारत के हाथों बहुत बुरी तरह पराजित हुई थी। सिक्किम में "नाथू ला" और "चो ला" दर्रों पर कब्जे के लिए हुए युद्ध में चीन की सेना को मुंह की खानी पड़ी थी। लेकिन क्योंकि यह बहुत लंबे समय तक चलने वाला युद्ध नहीं था इसलिए इसका जिक्र बहुत कम जगह पर किया जाता है। चीन की हार का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भारतीय सेना ने जहां 88 वीर खोये थे वहीं चीन की सेना के 340 जवान मरे थे और चीन को वह स्थान भी पूरा खाली करना पड़ा था जो उसने अनधिकृत रूप से कब्जा कर लिया था।
इसी तरह 1979 में कम्बोडिया को लेकर हुए चीन-वियतनाम युद्ध में चीन बहुत बुरी तरह से हारा। चीन के 40000 सैनिक मारे गए। चीन की सेनाओं को वहां से withdrawal करना पड़ा।
भारत और चीन की सेना में तीसरा अंतर यह है कि चीन की सेना ने 1967 और 1979 को छोड़कर कोई युद्ध नहीं लड़ा। जबकि भारतीय सेना लगातार युद्ध लड़ रही है: नियंत्रण रेखा पर ( on LOC) पाकिस्तानियों के साथ और देश के अंदर कश्मीरी आतंकवादियों के साथ। भारत की एक तिहाई सेना हमेशा युद्ध में रहती है। हमारी सेना की ट्रेनिंग बहुत ही उत्कृष्ट है। सम्मिलित युद्धाभ्यासों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया और रूस जैसे देश हमारी सेना की रणनीति, युद्धनीति और सूझबूझ का लोहा मानते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति सेना में भारत की सेना को सर्वश्रेष्ठ सेना में गिना जाता है।
यहां एक दिलचस्प घटना का जिक्र करना आवश्यक है। दक्षिणी सूडान के जू़बा शहर में भारत और चीन दोनों की सेनाएं अलग-अलग क्षेत्रों में शांति स्थापना के लिए नियुक्त की गई थी। सूडान के विद्रोही सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के उन शिविरों पर हमला बोल दिया जहां पर संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वयंसेवक/स्वयंसेविकायें, विस्थापितों की देखभाल, चिकित्सा सेवा/सुश्रुषा के लिए रह रहे थे। इन विद्रोहियों ने वहां पर स्वयंसेवी महिलाओं के साथ बलात्कार किया और कईयों को मार डाला। इनकी रक्षा का दायित्व चीनी सेना का था। लेकिन चीनी सेना उनकी रक्षा करने के बजाय वहां से भाग निकली। इतना ही नहीं उन्होंने अपने सारे हथियार भी पीछे छोड़ दिए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वयंसेवकों और स्वयं चीनी सेना के सैनिकों की सुरक्षा के लिए कौन आगे आया था?
जी हां। आपका अनुमान बिल्कुल सही है- भारतीय सेना। भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट की सातवीं बटालियन (7 कुमाऊं) जो रिजर्व में थी, उन्होंने न सिर्फ विद्रोहियों को वहां से मार कर भगाया और स्वयंसेवकों की रक्षा की बल्कि चीनी सैनिकों को भी बचाया। यह घटना बहुत पुरानी नहीं है। यह घटना जुलाई 2015 की है। भारत की सेना की इमेज पूरे संसार में एक बहुत ही पेशेवर सेना यानी प्रोफेशनल आर्मी की है भारत की सेना जहां-जहां गई है उसने विजय और सम्मान पाया है।
एक चौथा महत्वपूर्ण अंतर दोनों में यह हैं कि चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी (one child policy) के कारण हर परिवार में सिर्फ एक संतान है जिसे बहुत पैंपर (pamper) करके पाला पोषा गया है। उसने कठिन जीवन नहीं देखा है वह मरने से भी बहुत डरता है और उसके मां-बाप भी एक संतान होने के कारण अपने बच्चे को किसी हालत में खोना नहीं चाहते जबकि भारत के अधिकतर परिवारों में दो या दो से अधिक बच्चे हैं। इसका तात्पर्य है बिल्कुल न निकाला जाए कि अगर दो से दो या दो से अधिक बच्चे हैं तो उनके जान की कीमत कम है। मगर निश्चित रूप व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो यह एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक और सामाजिक बिंदु है जो भारत के पक्ष में है।
विजय के लिए सबसे आवश्यक तत्व है विजय की प्रबल इच्छा (will to win).
Walter D Wintle की ये पंक्तियां स्पष्ट कर देंगी की विजय किसकी होगी:
If you think you are beaten, you are;
If you think you dare not, you don't.
If you'd like to win, but you think you can't,
It is almost a cinch you won't.
If you think you'll lose, you've lost;
For out in this world we find
Success begins with a person's will
It's all in the state of mind.
If you think you're outclassed, you are;
You've got to think high to rise.
You've got to be sure of yourself before
You can ever win the prize.
Life's battles don't always go
To the stronger or faster man;
But sooner or later the person who wins
Is the one who thinks he can!
जय हिंद।
मेजर सरस त्रिपाठी