एमएलसी चुनाव : बुन्देलखण्ड में सत्तारूढ़ दलों के प्रत्याशियों से शिक्षकों का मोहभंग?
उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर हो रहे शिक्षक स्नातक एमएलसी चुनाव में सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी एक बार फिर शिक्षकों और स्नातकों से संपर्क कर वोट मांग रहे हैं
उत्तर प्रदेश में 11 सीटों पर हो रहे शिक्षक स्नातक एमएलसी चुनाव में सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी एक बार फिर शिक्षकों और स्नातकों से संपर्क कर वोट मांग रहे हैं,वही इस बार बुन्देलखण्ड में शिक्षक हो या स्नातक सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशियों से बेहद नाराज हैं क्योंकि यह चुनाव जीतने के बाद नजर नहीं आते है।
शिक्षकों का मानना है कि दलीय प्रत्याशियों ने शिक्षकों का कभी भला नहीं किया है। भाजपा सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेई ने 1 जनवरी 2004 को पुरानी पेंशन खत्म कर दी थी अब वर्तमान सरकार ने सामूहिक बीमा समाप्त कर दिया, आठ भत्ते भी खत्म कर दिए गए और डिग्री धारक स्नातकों से नौकरी देने के बजाय पकोड़ा तलने की नसीहत दी जा रही है।
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कोरोना के नाम पर महंगाई भत्ता बंद कर रखा है और इसी सरकार ने जांच के नाम पर बुजुर्ग शिक्षकों प्रोफेसरों तक को लाइन में खड़ा करके बेइज्जत किया है।इतना ही नहीं इसी सरकार ने 50 वर्ष की उम्र पर शिक्षकों कर्मचारियों को जबरन रिटायर करना शुरू कर दिया।
शिक्षक समाजवादी पार्टी को भी जमकर कोस रहे है।इनका मानना है कि इसी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में 1 अप्रैल 2005 को पुरानी पेंशन खत्म कर दी थी और 7 दिसंबर 2016 को पुरानी पेंशन की मांग कर रहे शिक्षकों पर बर्बर लाठीचार्ज चार्ज करवाई थी। जिसमें एक शिक्षक को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।इसी तरह शिक्षक, कांग्रेस को भी अछूत मानने से परहेज नहीं कर रहे है।
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इस बारे में उनका कहना है कि इसी पार्टी ने एन एनपीएस के अध्यादेश को 2013 में कानून बनाकर शिक्षकों कर्मचारियों के साथ धोखा किया। इस पार्टी की भी कई राज्यों में सरकार है किंतु उन राज्यों में भी पुरानी पेंशन लागू नहीं की जा रही है यह वही पार्टी है जो निजीकरण का विरोध नहीं करती बल्कि और बढ़ावा दे रहे हैं।
इन दलों से शिक्षकों का मोहभंग हो गया शिक्षकों ने आरोप लगाया कि जो प्रत्याशी चुनकर गए उन्होंने उन्होंने शिक्षकों के हित में कुछ नहीं किया। जब सदन में रहते पुरानी पेंशन खत्म की गई तब वह मौन बने रहे। आठ भत्ते, सामूहिक बीमा, विद्यालयों को अनुदान लेने की व्यवस्था की समाप्त की गई तब भी चुप रहे ।50 वर्ष के शिक्षकों या कर्मचारियों को रिटायर्ड किया जा रहा है लेकिन वह मौन बने हुए हैं ।
इनके सदन में रहते 15 पॉलिटेक्निक और 50 से ज्यादा राजकीय डिग्री कॉलेजों का निजीकरण कर दिया गया। बुन्देलखण्ड में वर्तमान एमएलसी 3 बार से जीत रहे हैं लेकिन वह भी शिक्षकों के बीच नहीं आए न उन्होंने कोई विशेष मांग उठाई। इन्इे भी शिक्षक पसंद नहीं कर रहे हैं। अन्य एमएलसी,वित्तविहीन शिक्षकों की न तो सेवा नियमावली बनवा पाए और न ही मानदेय दिलवा पाए।इनके सदन में रहते ही सभी जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय बीएसए कार्यालय भ्रष्टाचार के अड्डे बन गए।
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शिक्षकों का आरोप है कि जीते हुए प्रत्याशियों के रहते सदन में अल्पसंख्यक विद्यालयों के विशेषाधिकार छिन गए, जो लाठीचार्ज में शहीद डॉक्टर राम आशीष सिंह को देखने तक नहीं आए जबकि सभी एमएलसी लखनऊ में ही मौजुद थे न शोक प्रकट किया और न ही उनके परिवार को अपने निधि से एक रुपए की मदद की।
शिक्षक और स्नातकों का दलीय प्रत्याशियों से मोह भंग हो जाने के बाद चुनाव मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशियों की ओर उनका रुख साफ नजर आ रहा है।