कृष्ण जिंदगी को उत्सव की तरह जीते थे
@सौरभ द्विवेदी, विश्लेषक
मेरा एक मित्र है। उसने जीवन मे बहुत संघर्ष किए थे। उसके सामने संघर्षों का जखीरा अकल्पनीय रूप से टूट पड़ता था। जैसे सांसे चलती हैं , वैसे ही संघर्षों के साथ वह जीवन जी रहा था। हमेशा एक ही जुगत मे कि कब और कैसे पैसा कमाया जाए !
लेकिन उसकी एक खूबी थी। वह सबसे बड़ी खूबी थी कि वह बेईमानी से पैसा नहीं कमाना चाहता था। उसने पैसे कमाने के वे रास्ते नहीं तय किए जिन रास्तों पर आमतौर पर लोग चलते हैं। उसने अपने शौक के साथ न्याय किया और पैसा कमाने के लिए कुछ और ही सोचता रहा।
तमाम संघर्षों के साथ भावनात्मक संघर्षों के दौर से भी गुजरा। भावनात्मक संघर्ष का दौर यदा-कदा हमेशा शुरू हो जाता। चूंकि समय ने उसे अधिक भावुक बना दिया। बाहर की दुनिया में वह सशक्त और समृद्ध भी नजर आता ! उसके कार्य - व्यवहार व नाम से कोई शीघ्र सोच नहीं सकता कि इन जैसों के पास कोई समस्या होगी ?
पर समस्या का क्या ? समस्या वैसे ही है जैसे भावनाओं का अंबार हृदय में समाहित रहना। भाव विहीन व्यक्ति ठीक वैसे ही है , जैसे नृत्य करती हुई कोई नर्तकी नियमतः उत्तम नृत्य कर रही हो पर नृत्य के अनुरूप भाव ना हों तो वह नृत्य प्रभावशाली नहीं होता। भावनाएं प्रकृति से मिलती हैं और भावनाओं से लेखन मे भी जान डाल दी जाती है।
मेरा मित्र जीवन के तमाम आयाम मे संघर्ष को पार करता हुआ एक ऐसी आदर्श स्थिति मे आया कि उसने महसूस किया , अब ज्यादा से ज्यादा धन कमाया जा सकता है। और वह धन कमाकर अपने कार्यों को सुखद अंजाम दे सकता है। जिससे समाज और राष्ट्र के प्रति कुछ करने का बोध हो सकेगा।
जैसे ही उम्मीद का पारा चढ़ने लगा वैसे ही लाकडाउन ने एक बार फिर " लाक " कर दिया। जैसे उसके व्यवसाय मे रंगत चढ़ती महसूस हुई कि अचानक से सबकुछ ठप्प , एक बार पुनः " जीरो " की ओर ढलने लगा।
असल बात यह भी थी कि मित्र की जिंदगी में उनका सहयोग नहीं था। जो आमतौर पर सामान्य युवाओं को परिजनों से मिल जाता है। बेशक मित्र मे दृढ इच्छाशक्ति हो और आदर्श लोक व्यवहार से अच्छा कर सके , पर उसके सामने समस्या ही यही थी कि उसके विचारों और कार्यों को पैसा कमाने के साथ समझने वाला आसपास में कोई नहीं था।
मित्र को शिकायत रहती कि मुझे दूर - दूर तक लोग समझ लेते हैं , महसूस कर लेते हैं पर ऐसा क्या है ? जो घर की मुर्गी दाल बराबर चरितार्थ हो रही है। वैसे पहली सीढ़ी से तीन , चार और पांच - दस सीढ़ी के बाद छत आ जाती है फिर इंसान सेंसेक्स जैसी उंचाई पर पहुंच कर पहली - दूसरी सीढ़ी के संघर्ष को भुलाने लगता है।
सबकुछ भूलकर आगे बढ़ने का वक्त एक बार फिर महसूस होते ही प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू लगा दिया। एक - दो दिन बाद जिंदगी लाकडाउन हो गई , छोटा सा हाल के वर्ष मे शुरू हुआ व्यवसाय लाकडाउन हो गया !
वो मित्र गरीबी रेखा मे नहीं आता। वो मित्र रजिस्टर्ड मजदूर नहीं है। उसने प्रधान से सांठगांठ करके कोई मनरेगा का जाॅब कार्ड भी नहीं बनवा रखा है और ना ही गैरजरूरी लाभ ले सका !
वह मध्यमवर्गीय परिवार से है। वह बड़े नाम वाला भी है। मध्यमवर्गीय परिवार भी बड़े नाम वाला है। जिन पर सामान्य लोगों को भ्रम रहता है कि पैसा ही पैसा है। जैसे कि मेरे मित्र से एक दिन एक शख्स ने कहा अरे आप लोगों के पास पैसे की कमी है ? असंभव भले आपके पास व्यक्तिगत कुछ कमी हो पर परिवार मे पैसा ही पैसा है।
ऐसा ही सरकार भी सोचती है। मध्यमवर्गीय को ब्याज मे कमी आने से लाभ मिल जाता है। टैक्स मे राहत मिलने से मध्यमवर्गीय को राहत पैकेज मिल जाता है। सरकार मध्यमवर्गीय परिवार की अन्य समस्याओं पर सोचने का दिल - दिमाग ही नहीं रखती। कि उन परिवारों मे युवा भारत के युवाओं मे और कौन सी समस्या हो सकती है ?
यही वजह है कि मेरा युवा मित्र संघर्ष की जिंदगी जी रहा है। पुनः एक बार लाकडाउन ने उसके बिजनेस को लाक कर दिया है। पुनः जीरो से शुरूआत करेगा पर हकीकत यह भी है कि सड़े हुए सिस्टम मे बैंक भी बिना कमीशन - जुगाड़ के जल्दी उसका मददगार नहीं होगा।
मेरे मित्र को इसलिए परमात्मा पर भरोसा है। चूंकि उसने जिंदगी के अंधकार मे परछाईं ही सही पर कुछ महसूस किया फिर भौतिक दुनिया में भौतिक लोगों के बीच अवसरों के रसायन में अकल्पनीय मदद प्राप्त की , जिसे वह प्रकृति नामक शक्ति की देन ही महसूस करता है। यह भी सच है कि वह पूजा - पाठ करने मे अख्खड़ आदमी है। उसका विश्वास ही जिंदगी और ईश्वर पर विश्वास है।
अब लाकडाउन मे रियायत मिल रही है। उन रियायतों के साथ पुनः उसकी उम्मीद जगी है कि चलो फिर एक बार कुछ आय हो सकेगी पर संक्रमण का खतरा अभी भी बना हुआ है। इस खतरे के साथ नया संघर्ष शुरू हुआ है।
मेरे मित्र जैसे अनेक मित्र होंगे और हैं। ऐसे युवा हैं जो बैंक के जरूरी कागजात पूरा करने मे असमर्थ हैं। या फिर परिवार मे पहले से कोई कर्ज है , जो बड़ों ने भरा नहीं ! अब इस आपदा के समय इनकम लाकडाउन होने के बाद अनलाक कैसे हो ? अनलाक होकर कोई अडानी - अंबानी की तरह का सपना कैसे पाले ? कोई बात नहीं अपनी तरह का सपना कैसे देखे ?
जिंदगी मे वैसे भी तमाम संघर्षों वाली और अवसाद वाली आपदाएं आती हैं पर यह आपदा सभी आपदाओं पर भारी है। अतः इस आपदा को मानवीय समझ से समाप्त किया जा सकता है। सरकार को एक-एक व्यक्ति पर काम करना चाहिए और लोगों मे उत्साह भरना चाहिए। वर्ष मे अनेक उत्सव होते हैं पर जिंदगी एक उत्सव हो जाए और ऐसा संभव है , चूंकि कृष्ण जिंदगी को उत्सव की तरह ही जीते थे।
अवसाद से लोग मरें उससे बेहतर है कि बदलती व्यवस्था के साथ वायरस फैलने की तीव्र गति से अधिक तीव्र गति में जिंदगियों को बचाने का प्रयास होना चाहिए। मेरे मित्र जैसी जिंदगियों का भी ख्याल रखा जाए तो लोकतंत्र का अर्थ और समाज का भावार्थ समझ आ जाए।