पराली को जलाने की बजाय जैविक खाद बना रहे बांदा के किसान
पंजाब के खेतों की जलती पराली ने दिल्ली व एनसीआर की हवा को दमघोंटू बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इस प्रकार की समस्या अमूमन..
पंजाब के खेतों की जलती पराली ने दिल्ली व एनसीआर की हवा को दमघोंटू बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इस प्रकार की समस्या अमूमन खरीफ मौसम के अंत में देखने को मिलती है। खेतों में सलों व खरपतवारों के अवशेष पराली और अन्य कचरे से छुटकारा पाने के लिए किसान सबसे आसान उपाय इसमें आग लगा देना अपनाते हैं।
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खेतों में आग लगाकर इसे नष्ट करने से पर्यावरण प्रदूषित होता है और जमीन की उर्वरता नष्ट हो जाती है। खेत की उर्वरा शक्ति नष्ट न हो, इसके लिए बांदा के किसान मोहम्मद असलम ने डिस्क हैरो, मोल्ड पलाऊ, रोटावेटर से फसल अवशेष को मिट्टी में मिला कर जैविक खाद तैयार की है। इस फायदा उनकी फसलों को ही हो रहा है। वे अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं।
बुंदेलखंड जैविक कृषि फार्म छनेहरा लालपुर के मो. असलम ने बताया कि इन सभी समस्याओं के समाधान हेतु पिछले कई वर्षों से हम अपने खेतों में फसल अवशेषों में आग नही लगाते है, बल्कि डिस्क हैरो, मोल्ड पलाउ तथा रोटावेटर जैसे अन्य उपकरणों की सहायता से फसल अवशेष को मिट्टी में मिला देते है तथा सिंचाई के पानी के साथ जीवामृत, खलियो की खाद, वेस्टडीकंपोजर आदि का प्रयोग करके इस वेस्ट कचरे को, गुणवत्तापूर्ण जैविक खाद में परिवर्तित करते है।
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इसके साथ ही फसल अवशेषों को पशुओ के गोबर व मूत्र के साथ मिलाकर केंचुओं के माध्यम से उच्च गुणवत्तायुक्त वर्मीकम्पोस्ट तथा नाडेप कम्पोस्ट बनाकर अपने खेतों में प्रयोग करते है।
धान के खेतों में फसल कटाई के बाद बची हुई धान की पराली को बिना जलाए जीरो टिलेज सीड ड्रिल व सुपर सीडर / हैप्पी सीडर जैसे बहुत ही उपयोगी उपकरणों की सहायता से धान कटाई के तुरंत बाद सीधे गेंहू फसल की बुआई कर पराली का उपयोग गेंहू फसल की मल्चिंग में किया जा रहा है। जिसके कारण हमारी फसल में तुलनात्मक खरपतवार कम लगते है, जल का वाष्पन कम होने के कारण सिंचाई का पानी कम लगता है व भूमि में लंबे समय तक नमी उपस्थित रहती है। इसके साथ ही पराली के अपघटन से हमारी फसल को प्राकृतिक खाद भी मिलती है।
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उन्होने किसानों को सलाह दी है कि कि आप भी इस तरह की छोटी छोटी लेकिन अति महत्वपूर्ण युक्तियों को अपनाकर अपने फसल अवशेषों को आग में जलाकर नष्ट न करें, बल्कि छोटे से प्रयास से इन फसल अवशेषों को उच्च क़्वालिटी की खाद में बदले।
इस तरह से हमारे किसान साथी पराली अथवा फसल अवशेष जलाने संबंधी बनाये गए विशेष कानून का उल्लंघन भी न करे बल्कि इन फसल अवशेषों को गुणवत्तापूर्ण उर्वरकों में बदल कर स्वयं भी लाभान्वित हो तथा अपने दूसरे किसान साथी को भी जागरूक कर अपने पर्यावरण को भी स्वच्छ रखे।
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