बिजली के अभाव में अंधेरे में होता है, महिला चिकित्सालय में इलाज, जनरेटर बने शोपीस
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मरीजों के समुचित इलाज के लिए बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। इन दावों पर तब सवाल खड़े होते हैं..
बांदा,
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मरीजों के समुचित इलाज के लिए बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। इन दावों पर तब सवाल खड़े होते हैं। जब मरीजों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं। ऐसा ही मामला जनपद बांदा में देखने को मिला। जहां के महिला चिकित्सालय में प्रसव के लिए गर्भवती कराह रही होती है। उसी समय बिजली गुल हो जाती है और तब मजबूरन डॉक्टर को वैकल्पिक व्यवस्था करके डिलेवरी कराने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस दौरान जिम्मेदार जनरेटर तक नहीं चलाते हैं।
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जिला मुख्यालय में स्थित जिला महिला चिकित्सालय अगर बिजली गुल हो जाती है तो मरीजों और तीमारदारों को भीषण गर्मी में परेशानी का सामना करना पड़ता है। बारिश के मौसम में कहीं कोई बड़ी फाल्ट हो जाती है। तो कई कई घंटे बिजली गुल हो जाती है। इस दौरान अस्पताल का जनरेटर शो पीस बना रहता है। अगर इस दौरान डिलेवरी के केस आते हैं तो उन्हें भी अंधेरे में वैकल्पिक व्यवस्था करके निपटाया जाता है।
बृहस्पतिवार की रात भी ऐसा ही हुआ। फीडर में फाल्ट आने के कारण लगभग 2 घंटे तक बिजली गुल रही। मरीज गर्मी से परेशान रहे हाथ का पंखा लेकर हिलाते रहे। वही इस दौरान कई डिलेवरी केस भी आए जिन्हें अंधेरे में ही मोबाइल की रोशनी में डिलेवरी कराने के लिए मजबूर होना पड़ा। जनरेटर चलाने के बारे में पता करने पर जानकारी हुई कि विभाग के पास डीजल के लिए बजट ही नहीं है।
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वही तीमारदार बाबू खा ने बताया की वह अपने घर की डिलेवरी करवाने आया है। पर यह लाइट नहीं आ रही है। उसके मरीज को अंधेरे में लेटना पड़ रहा है। जनरेटर होने के बाद भी यहां मरीजों को अंधेरे का सामना करना पड़ता है। क्या करे कहा जाए किससे कहे, कोई सुनने वाला नहीं है। इसी तरह गोएरा मुगली गांव से डिलेवरी लेकर आई चुन्नी ने बताया की अस्पताल में लाइट न होने से महिलाओ को बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
अंधेरे में डिलेवरी करवाना पड़ती है। जिससे जच्चा बच्चा दोनो को ही दिक्कत होती है। ऊपर से ये उमस भरी गर्मी पर अस्पताल में कोई सुविधा नहीं है। जनरेटर होने के बाद भी नही चलाया जाता है। इस बारे में महिला चिकित्सालय की सीएमएस सुनीता सिंह से बात करने की कोशिश की गई। लेकिन उन्होंने फोन रिसीव करना मुनासिब नहीं समझा। कुल मिलाकर विभाग के जिम्मेदार इस बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करने में बचते हुए नजर आए।
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