ब्रिटिश शासन में खींची गयी फतेहपुर - सागर रेल परियोजना की लकीर, फाइलों में कैद होकर रह गयी
बांदा जनपद के अतर्रा, कस्बे के रेलवे स्टेशन को जंक्शन का आधार बना ब्रिटिश शासन में फतेहपुर रेल सागर परियोजना की..
बांदा जनपद के अतर्रा, कस्बे के रेलवे स्टेशन को जंक्शन का आधार बना ब्रिटिश शासन में फतेहपुर रेल सागर परियोजना की एक ऐसी लकीर खींची गयी जिसके मूर्त रूप लेने के बाद उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के कई जनपद जीवन रेखा कही जाने वाली रेल लाइन से सीधे जुड़ जाते, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका में यह परियोजना जंग खा गयी है। उसके बाद की कई परियोजनाओं में जहां रेल गाड़ियां फर्राटे भर रही हैं वहीं यह फाइलों में कैद होकर रह गयी है।
ब्रिटिश हुकुमत ने क्षेत्रीय बदहाली को देखते हुये सन 1913 में अतर्रा को जंक्शन बना सागर से फतेहपुर तक रेल लाइन बिछाने का प्रस्ताव किया था। सन 1917 में दो सर्वे करा अंतिम प्रोजेक्ट के रूप में उत्तर प्रदेश - मध्य प्रदेश राज्यों को जोड़ते हुये गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर से कमासिन-बबेरू-बिसंडा-पुनाहुर-अतर्रा-नरैनी-करतल में निशानदेही के रूप में पत्थर गाड़ दिये तथा आवागमन का कोई अन्य साधन न होने पर मध्य प्रदेशके सागर से जोड़ने की स्वीकृति प्रदान कर दी गयी। बताया जा रहा है कि इसके लिये भूस्वामियों को मुआवजा तक दे दिया गया था।
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तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के सदस्य पं.दुर्गाप्रसाद वैद्य द्वारा रेलवे बोर्ड को स्वीकृति हेतु जनवरी 1923 में अनुमति हेतु प्रार्थनापत्र दिया गया था। सन 1927 में मेसर्स सपूर जी गाडवोल एण्ड कंपनी बांबे को रेल लाइन बिछाने का ठेका दिया गया।
उस समय 31 लाख 78 हजार 49 रुपया अनुमानित लागत तय की गयी। ठेकेदार कंपनी ने अतर्रा रेलवे स्टेशन के केन नहर तक खाली पड़ी जमीनों में नई रेल लाईन बिछाने के उपकरण, पटरियां आदि रख दी।
सन 1936 में पटरी बिछाने को मिट्टी डालने का काम शुरु हो गया। इसी बीच सन 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया। सारे विकास कार्य रोक दिये गये। फौज के लिये अतर्रा में रखे उपकरण अन्यत्र भेज दिये गये।
युद्ध जब समाप्त हुआ ,पर सागर-फतेहपुर रेल परियोजना पूरी तरह जंग खा गयी। जबकि देश स्वतंत्र होने के बाद उसी समय शुरु हुयी ललितपुर-सिंगरौली में काम शुरु है। स्थानीय जागरुक लोगों ने पत्र भेज रेल मंत्रालय से उक्त परियोजना शुरु कराने की सभी से अपील की है।
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