खुश रहना है तो मन्दाकिनी बचाओ

Jun 8, 2020 - 18:45
Jun 9, 2020 - 16:45
 0  1
खुश रहना है तो मन्दाकिनी बचाओ
मन्दाकिनी नदी

चित्रकूट की पावन धरा पर बहने वाली मन्दाकिनी नदी को आप जरा गौर से देखिए। उसके तट पर आरती के वक्त देखिये या सुबह सूर्य की रोशनी में। मां मन्दाकिनी अपने बेटों की ओर कातर निगाहों से देख रही हैं। उनका शरीर बीमारियों की चपेट में आ गया है। मां की काया कमजोर हो गई है, उनके आँचल से होकर बहने वाली जल धारा टूट गई है। मां मन्दाकिनी की गोद में उसके बहू-बेटों ने ही कचरा, मल-मूत्र भर दिया है। रोजाना मां के हिस्से की जमीन पर भी कुछ बेटों ने कब्जा जमा लिया है। भला ऐसा कोई करता है, जैसा हमने किया है? जो मन्दाकिनी मां सदियों से हमारी परवरिश करती आ रही हों,  जिन्होंने हमें जीवन के लिए जरूरी जल दिया हो, अपनी लहरों से हम सब पर प्यार लुटाया हो, ऐसी मन्दाकिनी मां के साथ हमको अपने व्यवहार पर पश्चाताप जरूर होना चाहिए।  जिस मन्दाकिनी के दर्शन मात्र से मन में हर्ष और खुशियां हिलोरें मारने लगती हो, न सिर्फ चित्रकूट बल्कि दूरदराज तक समृद्धि की फसल लहलहाती रही हो, वही मां मन्दाकिनी अब अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। ऐसे में हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि मां के इलाज के लिए बेहतर दवा का इंतजाम करें।

इसके लिए जरूरी है कि मां के निकट कुछ देर बैठें। देखें कि आखिर वो उदास क्यों हैं? जैसे ही हम उनके पास आना जाना शुरू करेंगे, उनका इलाज शुरू हो जाएगा। कामदगिरि की परिक्रमा के पहले या बाद में जब भी वक्त मिले, मां मन्दाकिनी के तट पर आइये। उनके आंचल में बहने वाले जल की धारा को देखिए। यह धारा मलिन हो गई है। उसमें कूड़ा है, पालीथीन है, कचरा है। उसके तट पर बसे घरों-दुकानों, धर्मस्थलों से बहकर आई गन्दगी है। हमें इसे रोकना होगा। मां के इलाज का यह दूसरा कदम है।

पहला उनके पास बैठना, दूसरा कचरा हटाना और कचरा न डालना। अब जरा तीसरे कदम की तरफ बढिए। आप जिले का नक्शा पलटिये या बुजुर्गों से पूछिए जो मन्दाकिनी के विशाल और चैड़े पाट को देख चुके हैं। मां की जमीन पर शहर में जो कब्जा-अतिक्रमण हुआ है उसे देखिये और संकल्प लीजिये कि आप न तो मां मन्दाकिनी के तट पर कब्जा करेंगे और न मां मन्दाकिनी को दूर से ही अपना जल अर्पण करने वाले गांव-गिराव के तालाबों पर। हो सके तो इस कब्जे का विरोध कीजिये।

मां मन्दाकिनी के हक की लड़ाई के लिए हमें मन में दृढ़ता लानी होगी, यह हमारा कर्तव्य है कि किसी के अधिकार के संरक्षण के लिए सामाजिक और वैधानिक सँघर्ष करें। सदियों से जो मां हमें पालती पोषती आ रही हैं, उनके हक की जमीन उन्हें वापस मिलनी चाहिए।  यह मन्दाकिनी के हक में आपका तीसरा कदम होगा। चैथी बात ये कि मन्दाकिनी के तट पर, उससे दूर कहीं पर भी जहां स्थान दिखेय एक पौधा मां के नाम पर रोपिये।

चित्रकूट शहर में, शहर के बाहर या उस शहर में जहां से आप मन्दाकिनी दर्शन के लिए गए हों... आपका लगाया पौधा जहां पर होगा वहीं से बारिश की बूंदे सहेजकर भूजल भंडार में वृद्धि करेगा। इस तरह यह पौधा भी मन्दाकिनी मां को जल अर्पण करेगा। मां के आंचल में जलधारा का रहना जरूरी है, अन्यथा वेंटीलेटर पर आ चुकी मां का जीवन बचना मुश्किल हो जाएगा। मां के आंचल में भरे कचरे को निकालकर, उसमें नया कचरा डालने से रोककर, पौधे लगाकर, जमीन पर अतिक्रमण रोककर आप मां का सही इलाज शुरू कर सकते हैं। माँ मन्दाकिनी जरा सी स्वस्थ होंगी तो फिर से हम सब पर उनकी कृपा बरसेगी।

न सिर्फ चित्रकूट के नागरिकों को बल्कि समूचे बुन्देलखण्ड के नागरिकों को मन्दाकिनी के हक में सबसे पहले उठ खड़े होने की आवश्यकता है। जैसे ही मां का आशीर्वाद लेने के लिए डोर के प्रदेशों से आने वाले नागरिको तक यह खबर पहुँचेगी, सब मन्दाकिनी मां के लिए खड़े होने लगेंगे।

युगों युगों से मन्दाकिनी मां न सिर्फ जल की अविरल धारा के साथ बहती आईं हैं, बल्कि अपनी धारा के अंदर भी जलीय जीवों को पालती पोषती आईं हैं। शुभ की प्रतीक मछलियां हों, कछुए हों या दूसरे जीव और वनस्पतियां। जब से मन्दाकिनी की धारा कमजोर हुई उसके अंदर रहने वाले जलीय जीव मृतप्रायः हो गए। आसमान पर उड़ते हुए परिंदे दूर दूर से आकर इसी मन्दाकिनी के जल से प्यास बुझाते आये हैं, पर अब हाल खराब हैं। मन्दाकिनी के उद्गम स्थल से लेकर अंतिम छोर तक सघन जंगल और औषधीय वृक्ष थे जिन्हें हमने विकास के नाम पर अपने लालच के लिए काट डाला। यही वृक्ष तो मां के निकट रहने वाले उसके सबसे प्रिय बेटे थे, यही वृक्ष तो आसमान से बारिश कराने में सहायक थे। इन्ही के कारण तो बारिश की बूंदे धरती के पेट में जाती थीं और वही मन्दाकिनी की लहरों को भूजल के रूप में समृद्ध करती थीं।

हम इस रिश्ते को समझ क्यों नहीं पाए? इस पर भी जरा गौर कीजियेगा। मां और उसकी सन्तानों के बीच जैसे ही सम्वाद खत्म होता है, मुश्किलें आती हैं। यही हुआ मां बीमार हुई और बच्चे व्याकुल। अब मन्दाकिनी के तट पर न वो खुशहाली रह गई है न सम्पन्नता। जिस घर की देखरेख करने वाली मां बीमार हो। उसे प्रदूषण की बीमारी हो गई हो उस घर में विपन्नता के सिवाय और हो भी क्या सकता है? हमें इस सच को समझना होगा।

मां का इलाज के लिए साझी कोशिश करनी होगी। जब तक चित्रकूट का समाज मां की पीड़ा नहीं समझेगा, सरकार सक्रिय होने वाली नहीं। राज और समाज दोनो मिलकर मां का इलाज शुरू करें। यह वक्त की जरूरत है। एक बार फिर से मां मंदाकिनी अपने पूरे वेग से बहें, उनकी धारा स्वच्छ धवल हो। उनके आँचल में कछुआ रहें, मछली रहें, घास-फूस रहे... किनारे पर वृक्ष झूमे तो न सिर्फ चित्रकूट के नर नारी खुशहाल होंगे वरन पशु पक्षी भी निहाल हो जाएंगे।

यह कोई मुश्किल काम नहीं है। और अगर मां के इलाज के लिए कुछ मुश्किलें उठानी भी पड़ें तो पीछे नहीं हटना चाहिए। हमें देखा है कि चित्रकूट में मन्दाकिनी मां के कुछ सम्वेदनशील बेटे उनकी सेवा में जुटे हैं। उनका इलाज करना चाहते हैं। अब जरूरी है कि चित्रकूट की पावन धरा पर रहने वाले तमाम लोगों को एक साथ जुटें। सामूहिक कोशिश ही समग्र खुशहाली लाएंगीं। उम्मीद है कि भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने वाले चित्रकूट में अब माँ मन्दाकिनी का इलाज तेजी से होगा और हम सब फिर से उनकी लहरों में अठखेलियां कर पाएंगे।

- बृजेन्द्र प्रताप सिंह

(लेखक छोटी नदियां बचाओ अभियान के संयोजक हैं)

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0
admin As a passionate news reporter, I am fueled by an insatiable curiosity and an unwavering commitment to truth. With a keen eye for detail and a relentless pursuit of stories, I strive to deliver timely and accurate information that empowers and engages readers.