उत्तर प्रदेश में गाय की गोबर से दीये ही नहीं, बन रही दिवाल की घड़ियां

उत्तर प्रदेश गोसेवा आयोग की पहल से अब प्रदेश में गाय की गोबर से दीये ही नहीं, बल्कि गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, गोबर के लट्ठे, गमले और दीवाल..

उत्तर प्रदेश में गाय की गोबर से दीये ही नहीं, बन रही दिवाल की घड़ियां
उत्तर प्रदेश में गाय की गोबर से दीये और घड़ियां..

गोबर से बनी चीजें खरीदते हैं तो आप एक गाय की करते हैं सहायता

उत्तर प्रदेश गोसेवा आयोग की पहल से अब प्रदेश में गाय की गोबर से दीये ही नहीं, बल्कि गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, गोबर के लट्ठे, गमले और दीवाल की घड़ी भी बनाई जा रही है। इसके अलावा गाय के गोबर और मूत्र से सौन्दर्य वर्धक वस्तुएं भी बनाई जा रही है। गाय के उत्पादों से बनी चीजों का गिफ्ट पैक भी तैयार किया जा रहा है। जिसे आप दीपावली पर किसी को भी दे सकते हैं। ये वस्तुएं सादी और रंगीन दोनों तरह से हैं।

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उक्त बातें उत्तर प्रदेश गोसेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो.श्याम नंदन सिंह ने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में बतायी।

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना से प्रेरित होकर हमने भी सोचा कि गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाए। लेकिन कैसे? गोशालाओं में गायों के पास दो चीजें हैं-एक गोबर और दूसरा मूत्र।

तब हमने गोबर से दीयों को बनाने की बात सोची और उसको व्यवहार में भी लाए। उसी का परिणाम रहा कि पिछले साल दीपावली पर गोमती तट स्थित झूलेलाल पार्क में गाय के गोबर से बने एक लाख दीपक प्रज्जवलित किए गए। इस साल भी पार्क में छोटी दीपावली पर एक लाख दीये जलाए जायेंगे।

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उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से दीये बनाने की सोच उ.प्र. गोसेवा आयोग की है। उसी सोच का नतीजा है कि आज गाय के गोबर से बने दीये न केवल लखनऊ में ही बल्कि कानपुर, मथुरा और दूसरे शहरों में भी दीपावली पर प्रज्जलित हो रहे हैं।

उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि इन सब चीजों के बिक्री से अब यूपी की गौशालाएं आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ रही हैं। अब गौशालाओं को हर चीज के लिए सरकार की ओर नहीं देखना पड़ता है। उन्होंने बताया कि गोबर से बनी चीजें हल्की, मजबूत और कम दाम की भी हैं। कहा कि अगर गोबर की बनी कोई चीज आप खरीदते हैं तो आप गाय के जीवन के लिए सहायता कर रहे हैं।

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प्रो. श्याम नंदन सिंह ने बताया कि गोबर उत्पादों की बिक्री बढ़ी है। अब श्मशान घाट पर भी गोबर के बने लट्ठे मिलते हैं। जो लकड़ी की अपेक्षा कम मूल्य के होते हैं। इससे एक फायदा यह भी कि पेड़ को कटने से बचाया जा सकता है। गोबर के लट्ठे जलते भी अच्छे से है।

उत्तर प्रदेश में गाय की गोबर से दीये और  घड़ियां..

उन्होंने बताया कि वन विभाग से बात कि की रोपने वाले पौधों जड़ों को ढकने के लिए पन्नी की जगह पर गोबर के बने गमलों को इस्तेमाल करें। गमले सहित पौधों को सीधे खेतों या गमलों में रोपा जा सकता है। गोबर का गमला खाद का काम भी करेगा।

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उन्होंने बताया कि यह सब काम स्वयं सहायता समूह की महिलाएं कर रही हैं। जिससे उनको भी रोजगार मिल रहा है और उनकी आर्थिक स्थिति सुधर रही है। पिछले साल 25 हजार महिलाओं को इससे आमदनी हुई थी।

प्रो. सिंह ने बताया कि एक साल में तो इसका काफी प्रचार हुआ है। अब यहां भी कान्हा उपवन के अलावा मलिहाबाद व अन्य जगहों पर गाय के गोबर से बनी चीजें मिलती हैं। इसके अलावा विकास दीपोत्सव, खादी मेला सहित दूसरे अन्य मेलों में गाय के गोबर से बनी वस्तुओं के स्टॉल लग रहे हैं।

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हि.स

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