राष्ट्रीय संगोष्ठी में कर्म की अवधारणा पर हुई चर्चा, प्रस्तुत किए शोध पत्र
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय एवं अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान लखनऊ के संयुक्त...

चित्रकूट। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय एवं अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जयंती के अवसर पर कर्म की अवधारणा, भगवान बुद्ध व लोकमान्य तिलक के परिप्रेक्ष्य विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का कुलपति प्रो शिशिर कुमार पांडेय ने उद्घाटन किया।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति ने अंग्रेजी शासन के समय बाल गंगाधर तिलक के योगदान को विभाजन कार्य नीतियों के खिलाफ एक आध्यात्मिकवादी सोच का परिचायक बताया। वर्तमान समय में कर्म की अवधारणा को व्यक्त करते हुए कहा कि आज के समय के रूपांतरण के लिए भगवान बुद्ध के विचारों को अपनाया जाना अत्यंत आवश्यक है। मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ महेंद्र कुमार उपाध्याय ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। जिसमें उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध तथा बाल गंगाधर तिलक जी के योगदान को हम अध्यात्म और वर्तमान युग के समन्वय कारी दृष्टि के रूप में देख सकते हैं। जिला कृषि अधिकारी आर पी शुक्ला ने कर्म की अवधारणा को दार्शनिक आधार पर विवेचित किया। उद्घाटन सत्र के अंत में धन्यवाद ज्ञापन अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष डॉ शशिकांत त्रिपाठी ने किया। संगोष्ठी के संयोजक डॉ हरिकांत मिश्र ने सभी अतिथियों का परंपरागत स्वागत किया। इस सत्र के पश्चात प्रथम तकनीकी सत्र का प्रारंभ हुआ। जिसकी अध्यक्षता श्रीलंका से आए डॉ वेनजुलमपटये पुण्यासार ने की। इस तकनीकी सत्र में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के निदेशक डॉ राकेश सिंह ने कहा कि अच्छे विचारों से ही अच्छे समाज का निर्माण होता है। यह बुद्ध का मूल मंत्र है। निश्चित रूप से बाल गंगाधर तिलक के विचार आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक है। कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के सदस्य डॉ तरुणेश कुमार मिश्र ने कहा कि कर्म की परिधि में पुनर्जन्म का अत्यंत महत्व है। उन्होंने कर्म के रूपांतरण के लिए आत्म बल के महत्व को स्पष्ट किया। विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्षा ने गीता में चार प्रकार के कर्मों को विवेचित करते हुए विस्तृत व्याख्या की। तकनीकी सत्र के अंत में अध्यक्षता करते हुए डॉ वेनजुलमपटये पुण्यासार ने जातक कथाओं तथा विनय पिटक की अवधारणा को व्यक्त करते हुए कर्म की अवधारणा को स्पष्ट किया। द्वितीय तकनीकी सत्र में शिक्षा संकाय के डॉ, निहार रंजन मिश्र, संस्कृत विभाग की प्रभारी डॉ प्रमिला मिश्रा, डॉ शांत कुमार चतुर्वेदी, डॉ अरविंद कुमार, डॉ दलीप कुमार, डॉ अमिता त्रिपाठी, डॉ रवि प्रकाश शुक्ला, डॉ सुनीता श्रीवास्तव, डॉ शशिकांत त्रिपाठी, डॉ रीना पांडेय ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। संगोष्ठी में विभिन्न शोधार्थियों सहित 25 से अधिक शोध पत्रों का वाचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन शिक्षा विभाग की प्रभारी डॉ नीतू तिवारी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक डा हरिकांत मिश्र ने किया।
What's Your Reaction?






