दीपावली में दीवारों पर सुराती बनाने की लुप्त हो रही है परंपरा   

बुन्देलखण्ड में तीज त्योहारों में सदियों से चली आ रही परंपराएं धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं, इन्हीं में से एक है दीवार पर बनाई जाने वाली लक्ष्मी, विष्णु की प्रतीक मानी जाने वाली सुराती..

दीपावली में दीवारों पर सुराती बनाने की लुप्त हो रही है परंपरा   

बुन्देलखण्ड में तीज त्योहारों में सदियों से चली आ रही परंपराएं धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। इन्हीं में से एक है दीवार पर बनाई जाने वाली लक्ष्मी, विष्णु की प्रतीक मानी जाने वाली सुराती की परंपरा जो लोग भूलते जा रहे हैं। 

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बुन्देलखण्ड में जो त्यौहार मनाए जाते हैं उनमें अधिकांश त्यौहार देश के अन्य हिस्सों में मनाए जाने वाले तीज त्योहारों से कुछ अलग होते हैं। यहां ज्यादातर तीज त्यौहार लोक मान्यताएं और परंपराओं पर आधारित होते हैं। इन्हीं में से एक है घर की चैखट पर कील ठोकवाने की परंपरा, इसके पीछे मान्यता थी कि दीपावली के दिन गोधूलि बेला में घर के दरवाजे पर मुख्य द्वार पर लोहे की कील ठोकने से साल भर बलाएं घर में नहीं आ पाती।

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इसके अलावा इससे जुड़ी एक अन्य मान्यता भी थी। इसके बारे में बताया जाता है कि लोहे की कील ठोकवाने का मतलब दीपावली पर लोहे को सम्मान देना है। लोहे से कृषि यंत्रों का निर्माण होता है दिवाली के बाद रबी की फसल की बुवाई शुरू होती है।जिसमें यह यंत्र काम आते हैं लेकिन यह परंपरा अब गांव में लोग भूलते जा रहे हैं। इसी तरह दीपावली की पूजा के लिए दीवार पर सुराती बनाने की परंपरा भी धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। यह परंपरा सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित के रह गई है, नई पीढ़ी इन परंपराओं से दूर होती जा रही हैं।

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सुराती के बारे में चर्चा करते हुए पत्रकार संगीता सिंह ने बताया कि बुन्देलखण्ड मे सुराती स्वास्तिको को जोड़कर बनाई जाती है। ज्यामिति आकार में दो आकृति बनाई जाती हैं जिनमें 16 घर की लक्ष्मी की आकृति होती है जो महिला के सोलह सिंगार दर्शाती है। नौ घर की भगवान विष्णु की आकृति नवग्रह का प्रतीक होती है। सुराती के साथ गणेश, गाय, वछडा व धन के प्रतीक सात घोड़ों के चित्र भी बनाए जाने की परंपरा है लेकिन अब यह नजर नहीं आती है।

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इसी प्रकार दीपावली पर बुंदेलखंड के गांव में हाथ से बने लक्ष्मी गणेश के चित्र या फिर हाथ की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा का भी विशेष महत्व है, जिन्हें बुंदेली लोक भाषा में पाना कहा जाता है यह चितेरी कला का हिस्सा है।कई घरों में आज भी परंपरागत रूप से इन चित्रों के माध्यम से लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा भी लुप्त होती जा रही है।

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