भरोसे का बड़ा बैंक, बाँदा अर्बन को ऑपरेटिव बैंक

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए वहां के बैंकों की भूमिका अहम होती है...

Jun 10, 2020 - 20:51
Apr 10, 2021 - 13:24
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भरोसे का बड़ा बैंक, बाँदा अर्बन को ऑपरेटिव बैंक
बाँदा अर्बन को ऑपरेटिव बैंक

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए वहां के बैंकों की भूमिका अहम होती है। भारतीय बैंकिंग व्यवस्था ने भी इस देश को मजबूत आधार दिया है। सरकार और आर.बी.आई. के निर्देशानुसार सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपना प्रसार कर रहे हैं। बैंकिंग सेवा में जनता का सबसे ज्यादा विश्वास सरकारी बैंकों में रहा है या फिर सहकारी बैंकों में। सहकारी बैंकों पर लोगों ने अपना विश्वास बनाया है।

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ऐसे में कोई भी अलग सहकारी बैंक खोल कर उपभोक्ताओं का विश्वास जीतना आसान नहीं है, लेकिन इस मुश्किल काम को दिनेश दीक्षित ने न सिर्फ आसान बनाया है बल्कि उपभोक्ताओं का विश्वास भी जीता। यही वजह है कि पिता द्वारा शुरू किए गए बैंक को दिनेश दीक्षित ने छोटे और किसानों का बैंक बना दिया है। यहां सरकारी बैंकों की तुलना में जल्दी और आसानी से उपभोक्ताओं के काम हो जाते हैं।

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दिनेश के पिता कौशल किशोर दीक्षित ने छोटी सी पूंजी में बैंक शुरू किया था, नाम रखा ‘बाँदा अर्बन कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड।अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने बैंक का टर्नओवर 5 करोड़ तक पहुंचाया। इसी दौरान उनके बेटे दिनेश ने पिता का हाथ बटाना शुरू किया। बेटे की काम के प्रति लगन और मेहनत देखकर पिता ने उन्हें जीएम यानि महाप्रबन्धक बना दिया। जीएम बनने के बाद भी मृदुभाषी दिनेश दीक्षित के स्वभाव में परिवर्तन नहीं आया और अपने सरल स्वभाव से पहले अपने स्टाफ का दिल जीता और फिर ग्राहकों को अपना बनाने में विलंब नहीं किया।

दिनेश बताते हैं ”मैं जीएम होने के बाद भी स्वयं मार्केटिंग करता हूं। बड़े ग्राहकों के बजाय ऐसे छोटे ग्राहकों से सम्पर्क करता हूं जो 500 रुपये में खाता खोलकर मेरे बैंक के ग्राहक बन सकते हैं। अपनी इसी कार्यशैली से मैंने ग्राहकों की संख्या बढ़ाई है।“ आज बाँदा जैसे छोटे जिले में 20 सरकारी और प्राइवेट बैंक है। इन बैंकों के बीच में बाँदा अर्बन बैंक भी है, जिसकी शहर में दो शाखाएं चल रही हैं।

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बिजनेस आइडिया -

बैंकिंग सेवा दिनेश को पिता से विरासत में मिली। दिनेश बताते हैं, ”मैंने 2005 में बैंक का कामकाज सम्भाला तो टर्नओवर 5 करोड़ था, जो अब बढ़कर लगभग 100 करोड़ तक पहुंच गया है। इसमें सरकारी फंड नहीं है और 97 फीसदी रिटेल ग्राहक हैं। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि पिता जी की उंगली पकड़ कर ही बैंकिंग सेवा में आगे बढ़ने का मौका मिला।“

चुनौती-

किसी भी काम को करने मंे तरह-तरह की परेशानियां होती है, अनेक बाधाएं आती हैं। जिस समय पिता जी ने बैंक की स्थापना की उस समय चिटफण्ड कम्पनियां व कुछ निजी बैंकों द्वारा ग्राहकों को ठगी का शिकार बनाया था। ऐसे में ग्राहक बैंक में खाता खोलने को तैयार नहीें होते थे। इस चुनौती से निपटने के लिए हमने बैंक में ग्राहकों को बेहतर सुविधाएं दी और समय से पहले काम किया। अगर उन्हें 6 बजे बुलाया तो 5.30 बजे तक उनका काम पूरा किया जिससे हमारे बैंक के प्रति उनका विश्वास बढ़ा और ग्राहक संख्या में भी इजाफा होने लगा। ग्राहकों को बैंक में घर जैसा माहौल मिल रहा है। जीएम व कर्मचारियों से सीधे संवाद में किसी तरह की असुविधा नहीं है।

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स्ट्रगल स्टोरी- 

नोटबंदी के दौरान सबसे ज्यादा संघर्ष रहा। हमारे बैंक में (चेस्ट ब्रांच) नहीं थी जिसके माध्यम से इमरजेंसी में ग्राहकों का भुगतान कर सकते थे। यहीं वजह थी कि ग्राहकों की मांग के मुताबिक भुगतान संभव नहीं था, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। पूरे 60 दिन तक मैं स्वयं सवेरे निकलता था और सभी बैंकों में जाकर अधिकारियों व कर्मचारियों से मिलता जुलता और जब मैं अपने बैंक आता था तो ईश्वर की कृपा से ग्राहकों के लिए पर्याप्त पैसा मिल जाता था। 60 दिनों में शहर के सभी बैंकों में इस बात का रोना रहा कि बैंक में पैसा नहीं है लेकिन ऐसा कभी नहीं रहा जब ग्राहक कोे यह कहकर लौटा दिया गया हो कि आज पैसा नहीं है।

टर्निंग प्वाइंट-

वर्ष 2007-08 में सूखा पड़ा था। सरकार किसानों को दैवी आपदा धन बांटना चाहती थी, दुर्भाग्य से सारे बैंक बंद थे ऐसे में किसानों की 25 लाख की चेक बांटनी टेढ़ी खीर था। मुझसे इस बारे में तहसीलदार ने बात की मैं चेक बांटने को तैयार हो गया। हमारे पास 2000 के आसपास चेक बुक थीं कुछ और चेक बुकों का जुगाड़ कर रविवार को बैंक खोलकर चेक बनाये और सोमवार के दिन समय से किसानों को चेक मिल गए। बाद मं 15 करोड़ रूपये का दैवी आपदा का अनुदान बांटने के लिए अर्बन बैंक को चुना गया। हमारे यहां से अनुदान की चेक बांटने से कोई कमीशनखोरी नहीं हुई, सीधे किसानों को लाभ मिला।

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समय से बिना किसी छलकपट के चेक मिलने से आसपास के ग्रामीणों का बैंक के प्रति विश्वास बढ़ता चला गया। हमारे बैंक में धन वितरण के दौरान किसी तरह का लड़ाई झगड़ा नहीं होता था। यही वजह है कि हमारी पहचान आम लोगों के साथ-साथ किसानों में बढ़ती चली गयी। आज स्थिति यह है कि अर्बन बैंक किसी की पहचान का भूखा नहीं है। बैकिंग सेवा में शिखर तक पहुंचने में आपसी व्यवहार, सद्भाव व छोटे-बड़े लोगो का प्यार काम आया और भविष्य में भी यह रिश्ता बरकरार रहे इसके लिए ग्राहकों के प्यार स्नेह व आशीर्वाद का आकांक्षी हूं।                                                            

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