देहरी पर दवाई और डिजिटल युग की सच्चाई
शनिवार को बांदा में एक मीडिया हाउस द्वारा "देहरी पर दवाई की सच्चाई: डिजिटल युग में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा" विषय पर एक...
ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटल युग की चुनौतियां और संभावनाएं
बांदा। शनिवार को बांदा में एक मीडिया हाउस द्वारा "देहरी पर दवाई की सच्चाई: डिजिटल युग में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा" विषय पर एक राउंडटेबल चर्चा का आयोजन किया गया। इस चर्चा में ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटलीकरण के प्रभाव, चुनौतियों और संभावनाओं पर विस्तार से बात की गई।
कार्यक्रम में आशा कार्यकर्ता, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और समाजसेवी सहित विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रमुख वक्ताओं ने भाग लिया। चर्चा में डिजिटल उपकरणों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, प्रशिक्षण की कमी और सामाजिक पूर्वाग्रह जैसे मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
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मुख्य बिंदु:
डिजिटल उपकरण: दोहरी तलवार
शबीना मुमताज़ (मानवाधिकार इकाई) ने कहा, "डिजिटल कौशल की कमी आशा कार्यकर्ताओं के सशक्तिकरण में बाधा बन रही है। यदि उन्हें सही प्रशिक्षण और समर्थन मिले, तो यह बदलाव उनके आत्म-सम्मान और कामकाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।"
सामाजिक और सुरक्षा चुनौतियां
महेंद्र कुमार (मित्र बुंदेलखंड संस्था) ने बताया कि तकनीकी प्रगति के बावजूद सामाजिक पूर्वाग्रह कायम हैं। उन्होंने कहा, "आशा कार्यकर्ताओं को फ़ोन पर बातचीत के दौरान अक्सर अभद्र टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है, जो उनके काम में बाधा डालती हैं।"
स्वास्थ्य सेवाओं में तकनीकी सुधार
डॉ. अर्चना भारती (PHC डॉक्टर) ने बताया कि टेली-मेडिसिन और डिजिटल ट्रैकिंग ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार किया है। उन्होंने कहा, "डिजिटल उपकरणों ने काम को आसान बना दिया है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग को आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित और सहयोग प्रदान करने की आवश्यकता है।"
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डिजिटल प्रशिक्षण में कमियां
आशा कार्यकर्ता आरती ने कहा, "हमें डिजिटल उपकरणों पर काम करने का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला, लेकिन हमने खुद से यह कौशल सीखा।" उनकी यह बात डिजिटल प्रशिक्षण की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती है।
समस्या-समाधान दृष्टिकोण
महेंद्र कुमार ने सुझाव दिया कि आशा ऐप में एक समस्या-समाधान फीचर होना चाहिए ताकि केवल डेटा संग्रह तक सीमित न रहकर यह प्रक्रिया मानवीय दृष्टिकोण पर केंद्रित हो सके।
समाज की वास्तविकता और टेक्नोलॉजी का संतुलन
चर्चा के दौरान एक ग्रामीण महिला ने बताया कि उनके गांव में पीएचसी न होने के कारण गर्भावस्था में ही उनके दो बच्चों की मृत्यु हो गई। इसने स्वास्थ्य सेवाओं में बुनियादी ढांचे की कमी की गंभीरता को उजागर किया।
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चर्चा का समापन
कार्यक्रम का समापन खबर लहरिया की एडिटर-इन-चीफ कविता बुंदेलखंडी द्वारा पैनल और दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुए हुआ।
यह राउंडटेबल चर्चा दर्शाती है कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटलीकरण ने कई सुधार किए हैं, लेकिन सामाजिक बाधाओं, प्रशिक्षण की कमी और सुरक्षा चिंताओं को दूर करना अभी भी अनिवार्य है। डिजिटल युग का वास्तविक लाभ तभी संभव है जब यह सभी के लिए समान रूप से सुलभ और प्रभावी हो।