जाने महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर कैसे चढ़ाए जाते है बेलपत्र
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का व्रत...
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रिय वस्तुओं धतूरा, शमी, अपामार्ग, बेलपत्र के साथ कई चीजों चढ़ाई जाती है। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाना काफी शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार अगर शिवलिंग में विधिवत तरीके से बेलपत्र अर्पित की जाए तो, आपकी इच्छा जरूर पूर्ण होती है।
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बता दें कि, बेलपत्र को संस्कृत में 'बिल्वपत्र' कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार माना गया है कि, बेलपत्र और जल भगवान शंकर के मस्तिष्क को शीतल करता रहता है। पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं।
जानिए शिवलिंग में किस तरह चढ़ाए जाते है बेलपत्र?
शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि बेलपत्र चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों के अलावा संक्रांति के समय और सोमवार को नहीं तोड़ना चाहिए। स्कंदपुराण के अनुसार अगर आपको बेलपत्र नहीं मिल रहे हैं तो शिवलिंग में चढ़े हुए पत्रों को धोकर दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं।
शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने का सही तरीका
शिवलिंग पर हमेशा उल्टा बेलपत्र अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए। अगर आपके पास समय हैं तो चंदन ने बेलपत्र में राम लिख सकते हैं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए की बेल पत्र कही से कटा न हो।
बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं। जितने अधिक बेलपत्र होंगे, उतने ही उत्तम माने जाते हैं। शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए। कई लोगों की आदत होती हैं कि अपने बेलपत्र चढ़ाने के लिए दूसरों के हटा देते हैं। पुराण के अनुसार बिल्कुल भी ऐसा नहीं करना चाहिए। हमारे धर्मशास्त्रों में कई ऐसे निर्देश दिए गए हैं कि, जिससे धर्म का पालन करते हुए पूरी तरह प्रकृति की रक्षा भी हो सके। इसी कारण देवी-देवताओं को अर्पित किए जाने वाले फूल और पत्र को तोड़ने से जुड़े कुछ नियम बनाए गए है।
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हमे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए। कई लोगों की आदत होती हैं कि अपने बेलपत्र चढ़ाने के लिए दूसरों के हटा देते हैं। पुराण के अनुसार बिल्कुल भी ऐसा नहीं करना चाहिए।
अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि क्वचित्।।
ये श्लोक स्कंदपुराण से लिया है इसका अर्थ है की कभी भी बेलपत्र को टहनी सहित नहीं तोड़ना चाहिए। बल्कि बेलपत्र चुन-चुनकर तोड़ना चाहिए। जिससे कि वृक्ष को नुकसान न पहुंच सके। इसके साथ ही बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए।
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