फाइलों से निकलकर धरातल पर आने वाली है केन बेतवा लिंक परियोजना, 44 हजार करोड की पहली किस्त जारी
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की सरकार में मंजूर हुई, केन बेतवा लिंक परियोजना पिछले 17 सालों...
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की सरकार में मंजूर हुई, केन बेतवा लिंक परियोजना पिछले 17 सालों से फाइलों में दौड़ रही है। अब इस परियोजना के धरातल पर उतरने की संभावना तेज हो गई है। इसी माह भूमि हस्तांतरित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इस सिलसिले में केंद्र में मोदी सरकार ने 44000 करोड़ राशि की पहली किस्त जारी कर दी है।
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17 साल पहले मंजूर हुई इस परियोजना में एमपी और यूपी के 21 गांव प्रभावित हो रहे हैं। दोनों राज्यों में लंबे अर्से तक इस पर सहमति नहीं बन पाई। केंद्र सरकार के दखल के बाद दोनों राज्यों में समझौता हुआ। उधर इस परियोजना के खिलाफ आदिवासी बाशिंदे और कई संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। परियोजना के अंतर्गत आने वाले गांव खाली कराए जाएंगे। परियोजनाओं के मुख्य बांध ढोढन के निर्माण के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व की 6017 हेक्टेयर वन भूमि जा रही है। इसमें 4141 हेक्टेयर भूमि कोर एरिया में शामिल है। वन विभाग को इस भूमि के बदले दूसरी राजस्व भूमि देकर भरपाई की जा रही है।
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इसी सिलसिले में एमपी सरकार ने इसी वर्ष 31 जनवरी को भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी और अब सरकार ने अधिसूचना का गजट भी जारी कर दिया है। एक सप्ताह के भीतर भूमि हस्तांतरित होने की संभावना है। भूमि हस्तांतरित होते ही ढोढन बांध सहित अन्य काम शुरू हो जाएंगे। इस बीच एमपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में भ्रमण पर आए जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने केंद्र सरकार द्वारा केन बेतवा परियोजना के लिए 40000 करोड़ की पहली किस्त जारी किए जाने की पुष्टि की है।
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केन-बेतवा लिंक परियोजना मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बड़े भू-भाग की तस्वीर बदलने वाली है। परियोजना पूरी होने से दोनों राज्यों के बुंदेलखंड इलाके की करीब 10 लाख हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो सकेगी और 62 लाख लोगों को पीने का साफ पानी मिल सकेगा। बतातें चलें कि केन-बेतवा लिंक परियोजना में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 12 जिले आते हैं। मध्य प्रदेश के 9 जिलों में पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिले हैं। करीब साढ़े नौ लाख किसानों को फायदा पहुंचेगा। रोजगार के अवसर बढ़ाने और पलायन दूर करने में यह परियोजना काफी कारगर साबित होगी। यह उम्मीद भी जताई जा रही है कि किसानों की स्थिति में सुधार और आय में भी वृद्धि होगी।